रविवार, 1 दिसंबर 2024
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जिस साईं मंदिर में हनुमान प्रतिमा नहीं वह मंदिर अधूरा...

जिस साईं मंदिर में हनुमान प्रतिमा नहीं वह मंदिर अधूरा... | sai temple shirdi
आपने कुछ माह पहले एक ऐसा फोटो देखा होगा जिसमें हनुमानजी एक पेड़ उखाड़कर सांई बाबा के पीछे दौड़ते हैं और सांई बाबा भागते हुए नजर आ रहे हैं। इस पोस्टर में हनुमानजी सांई बाबा को पेड़ के तने से पीटते हुए नजर आते हैं। यह फोटो या पोस्टर शंकराचार्य सरस्वती ने प्रचारित किया था। इस विवादित पोस्टर को सांई बनाम हनुमान पोस्टर कहा गया।...लेकिन आज हम आपको सांई और हनुमाजी के बीच के संबंधों के बारे में बता रहे हैं। शंकराचार्य सरस्वती द्वारा जारी पोस्टर तो हकीकत नहीं है लेकिन यहां एक किताब के हवाले से लिखे गए तथ्‍यों पर गौर किया जा सकता है।
 
शिरडी के सांई मंदिर के प्रांगण में सभी लोगों ने हनुमानजी की प्रतिमा और उनके मंदिर को जरूर देखा होगा। सांई बाबा का जहां जन्म हुआ था वहां भी एक हनुमानजी की प्रतिमा विराजमान है। आखिर क्या है इसका रहस्य?
 
सांई के जन्म स्थान पाथरी (पातरी) पर एक मंदिर बना है। मंदिर के अंदर सांई की आकर्षक मूर्ति रखी हुई है। यह बाबा का निवास स्थान है, जहां पुरानी वस्तुएं जैसे बर्तन, घट्टी और देवी-देवताओं की मूर्तियां रखी हुई हैं। इन्हीं मूर्तियों में एक मूर्ति हनुमानजी की भी है।
 
मंदिर के व्यवस्थापकों के अनुसार यह सांई बाबा का जन्म स्थान है। उनके अनुसार सांई के पिता का नाम गोविंद भाऊ और माता का नाम देवकी अम्मा है। कुछ लोग उनके पिता का नाम गंगाभाऊ बताते हैं और माता का नाम देवगिरी अम्मा। कुछ हिन्दू परिवारों में जन्म के समय तीन नाम रखे जाते थे इसीलिए बीड़ इलाके में उनके माता-पिता को भगवंत राव और अनुसूया अम्मा भी कहा जाता है। सांई के चले जाने के बाद उनके परिवार के लोग शायद हैदराबाद चले गए थे और फिर उनका कोई अता-पता नहीं चला। 
 
शशिकांत शांताराम गडकरी की किताब 'सद्‍गुरु सांई दर्शन' (एक बैरागी की स्मरण गाथा) अनुसार सांई का परिवार हनुमान भक्त था। उनके माता पिता के पांच पुत्र थे। पहला पुत्र रघुपत भुसारी, दूसरा दादा भूसारी, तीसरा हरिबाबू भुसारी, चौथा अम्बादास भुसारी और पांचवें बालवंत भुसारी थे। सांई बाबा गंगाभाऊ और देवकी के तीसरे नंबर के पुत्र थे। उनका नाम था हरिबाबू भूसारी।
 
सांई बाबा के इस जन्म स्थान के पास ही भगवान पांडुरंग का मंदिर है। इसी मंदिर के बाईं और देवी भगवती का मंदिर है जिसे लोग सप्तश्रृंगीदेवी का रूप मानते हैं। इसी मंदिर के पास चौधरी गली में भगवान दत्तात्रेय और सिद्ध स्वामी नरसिंह सरस्वती का भी मंदिर है, जहां पवित्र पादुका का पूजन होता है। लगभग सभी मराठी भाषियों में नरसिंह सरस्वती का नाम प्रसिद्ध है।
 
थोड़ी ही दूरी पर राजाओं के राजबाड़े हैं। यहां से एक किलोमीटर दूर सांई बाबा का पारिवारिक मारुति मंदिर है। मारुति अर्थात हनुमानजी का मंदिर। सांई बाबा का परिवार हनुमान भक्त था। वे उनके कुल देवता हैं। यह मंदिर खेतों के मध्य है, जो मात्र एक गोल पत्थर से बना है। यहीं पास में एक कुआं है, जहां सांई बाबा स्नान कर मारुति का पूजन करते थे। मान्यता अनुसार सांई बाबा पर हनुमानजी की कृपा थी।
 
सांई के पिता वेदपाठी थे। उनके सान्निध्य में हरिबाबू (सांई) ने बहुत तेजी से वेद-पुराण पढ़े और वे कम उम्र में ही पढ़ने-लिखने लगे। बहुत कम उम्र में सांई को पाथरी के गुरुकुल में उनके पिता ने भर्ती किया ताकि यह कर्मकांड सीख ले और कुछ गुजर-बसर हो। यहां ब्राह्मणों को वेद- पुराण आदि पाठ पढ़ाया जाता था। गुरुकुल में सांई को वेदों की बातें पसंद आईं, लेकिन वे पुराणों से सहमत नहीं थे और वे अपने गुरु से इस बारे में बहस करते थे। गुरु उनके तर्कों से परेशान रहते थे। अंत में हारकर गुरु ने कहा- एक दिन तुम गुरुओं के भी गुरु बनोगे। सांई ने वह गुरुकुल छोड़ दिया। गुरुकुल छोड़कर वे हनुमान मंदिर में ही अपना समय व्यतीत करने लगे, जहां वे हनुमान पूजा-अर्चना करते और सत्संगियों के साथ रहते थे।
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