ऋषि याज्ञवल्क्य कौन थे, जानिए उनके बारे में 7 खास बातें
राजा जनक के काल में ऋषि याज्ञवल्क्य नाम के एक महान ऋषि थे। आओ जानते हैं इन महान ऋषि के बारे में 7 रोचक बातें।
1. कहते हैं कि याज्ञवल्क्य ऋषि ब्रह्मा के अवतार थे। ब्रह्मा ने यज्ञ में पत्नी सावित्री की जगह गायत्री को स्थान देने पर सावित्री ने क्रोधवश इन्हें श्राप दे दिया था जिसके चलते वे कालान्तर में याज्ञवल्क्य के रूप में चारण ऋषि के यहां उत्पन्न हुए। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार ये देवरात के पुत्र थे।
2. याज्ञवल्क्य वेदाचार्य महर्षि वैशम्पायन के शिष्य थे। इसके अलावा उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से सूर्यदेव से भी ज्ञान प्राप्त किया था।
3. ऋषि याज्ञवल्क्य की दो पत्नियां थीं- मैत्रेयी और कात्यायनी।
4. याज्ञवल्क्य जी को जब वैराग्य प्राप्त हुआ तो उन्होंने घर बार त्यागने की सोच। उन्होंने मैत्रेयी से कहा कि मैं तुम्हारे और कात्यायनी के बीच घर का बंटवारा करना चाहता हूं। मैत्रेयी ने कहा कि बंटवारे का सामान लेकर मैं क्या करूंगी यह सब तो नष्ट होने वाला है। तब याज्ञवल्क्य जी ने मैत्रेयी को ब्रह्मज्ञान दिया वौर वह भी संन्यासी हो गई।
4. जनक के काल में गर्गवंश में वचक्नु नामक महर्षि की पुत्री 'वाचकन्वी गार्गी' हुई जिनका ऋषि याज्ञवल्यक से जनक की सभा में ब्रह्मज्ञान पर चर्चा हुई थी। दरअसल, माना जाता है कि राजा जनक प्रतिवर्ष अपने यहां शास्त्रार्थ करवाते थे। एक बार के आयोजन में याज्ञवल्क्यजी को भी निमंत्रण मिला था। जनक ने शास्त्रार्थ विजेता के लिए सोने की मुहरें जड़ित 1000 गायों को दान में देने की घोषणा कर रखी थी। उन्होंने कहा था कि शास्त्रार्थ के लिए जो भी पथारे हैं उनमें से जो भी श्रेष्ठ ज्ञानी विजेता बनेगा वह इन गायों को ले जा सकता है। ऐसी स्थिति में ऋषि याज्ञवल्क्य ने अति आत्मविश्वास से भरकर अपने शिष्यों से कहा, 'हे शिष्यो! इन गायों को हमारे आश्रम की और हांक ले चलो।' इतना सुनते ही सब ऋषि याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने लगे। याज्ञवल्क्य ने सबके प्रश्नों का यथाविधि उत्तर दिया। उस सभा में ब्रह्मवादिनी गार्गी भी बुलाई गयी थी। सबके पश्चात् याज्ञवल्क्यजी से शास्त्रार्थ करने वे उठी। दोनों के बीच जो शास्त्रार्थ हुआ। गार्गी ने याज्ञवल्क्यजी से कई प्रश्न किए। बृहदारण्यक उपनिषद् में दोनों के बीच हुए संवाद पर ही आधारित है।
5. याज्ञवल्क्यजी ने राजा जनक के प्रश्नों का भी समाधान किया था।
6. उपनिषद के रचना काल के आधार पर याज्ञवल्क्य का समय लगभग 1200 ई.पू. नियुक्ति किया गया है जोकि सही नहीं है, क्योंकि वे तो राजा जनक के काल में हुए थे। राजा जनक लगभग 7 हजार ईसा पूर्व हुए थे।
7. याज्ञवल्क्यजी का दर्शन आत्मा का दर्शन माना जाता है। वे एक श्रेष्ठ दार्शनिक थे। याज्ञवल्क्य नाम से एक स्मृति ग्रंथ भी है।