सीता को खोजते हुए जब श्रीराम-लक्ष्मण पहुंचे ऋक्यमूक पर्वत, तो डर गया सुग्रीव...
भारत में कहां है ऋष्यमूक पर्वत, जानिए अगले पन्ने पर...
बाली-सुग्रीव का किष्किंधा राज्य : तुंगभद्रा नदी दक्षिण भारतीय प्रायद्वीप की एक पवित्र नदी है, जो कर्नाटक तथा आंध्रप्रदेश में बहती है। यह नदी छत्तीसगढ़ के रायपुर के निकट कृष्णा नदी में मिल जाती है। प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हम्पी तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। इस नदी का जन्म तुंगा और भद्रा नदियों के मिलन से होता है, जो इसे तुंगभद्रा नदी का नाम देती है। उद्गम का स्थान गंगामूल कहलाता है, जो श्रृंगगिरि या वराह पर्वत के अंतर्गत है।
जहां से तुंगभद्रा नदी धनुष के आकार में बहती है वहीं पर ऋष्यमूक पर्वत है और उसी से मील दूर किष्किंधा का क्षेत्र शुरू होता है। इस पर्वत के नजदीक ही कर्नाटक का प्रसिद्ध शिव का मंदिर विरुपाक्ष मंदिर है, जो हम्पी के अंतर्गत आता है। यह आज के बेल्लारी जिले में स्थित है। यहां से गोवा पश्चिम-उत्तर में उतनी ही दूर है जितनी दूर तुंगभद्रा का उद्गम स्थान। गंगामूल से गंगावती और गंगावती से गोवा। गंगावती के पास ही किष्किंधा राज्य था, जो कर्नाटक और आंध्रप्रदेश की सीमा पर स्थित है।
अगले पन्ने पर हनुमानजी की श्रीराम से मुलाकात कब किस समय हुई...
सुग्रीव की बातें सुनकर हनुमानजी ब्राह्मण का रूप धरकर वहां गए और मस्तक नवाकर विनम्रता से राम और लक्ष्मण से पूछने लगे। हे वीर! सांवले और गोरे शरीर वाले आप कौन हैं, जो क्षत्रिय के रूप में वन में फिर रहे हैं? हे स्वामी! कठोर भूमि पर कोमल चरणों से चलने वाले आप किस कारण वन में विचर रहे हैं?
हनुमान ने आगे कहा- मन को हरण करने वाले आपके सुंदर, कोमल अंग हैं और आप वन की दुःसह धूप और वायु को सह रहे हैं। क्या आप ब्रह्मा, विष्णु, महेश- इन तीन देवताओं में से कोई हैं या आप दोनों नर और नारायण हैं?
श्रीरामचंद्रजी ने कहा- हम कोसलराज दशरथजी के पुत्र हैं और पिता का वचन मानकर वन आए हैं। हमारे राम-लक्ष्मण नाम हैं, हम दोनों भाई हैं। हमारे साथ सुंदर सुकुमारी स्त्री थी। यहां (वन में) राक्षस ने मेरी पत्नी जानकी को हर लिया। हे ब्राह्मण! हम उसे ही खोजते फिरते हैं। हमने तो अपना चरित्र कह सुनाया। अब हे ब्राह्मण! आप अपनी कथा कहिए, आप कौन हैं?
प्रभु को पहचानकर हनुमानजी उनके चरण पकड़कर पृथ्वी पर गिर पड़े। उन्होंने साष्टांग दंडवत प्रणाम कर स्तुति की। अपने नाथ को पहचान लेने से हृदय में हर्ष हो रहा है। फिर हनुमानजी ने कहा- हे स्वामी! मैंने जो पूछा वह मेरा पूछना तो न्याय था, वर्षों के बाद आपको देखा, वह भी तपस्वी के वेष में और मेरी वानरी बुद्धि... इससे मैं तो आपको पहचान न सका और अपनी परिस्थिति के अनुसार मैंने आपसे पूछा, परंतु आप मनुष्य की तरह कैसे पूछ रहे हैं? मैं तो आपकी माया के वश भूला फिरता हूं। इसी से मैंने अपने स्वामी (आप) को नहीं पहचाना, किंतु आप तो अंतरयामी हैं।
ऐसा कहकर हनुमानजी अकुलाकर प्रभु के चरणों पर गिर पड़े। उन्होंने अपना असली शरीर प्रकट कर दिया। उनके हृदय में प्रेम छा गया, तब श्री रघुनाथजी ने उन्हें उठाकर हृदय से लगा लिया और अपने नेत्रों के जल से सींचकर शीतल किया। -रामचरित मानस
राम ने हनुमान को हृदय से लगाकर कहा- हे कपि! सुनो, मन में ग्लानि मत मानना। तुम मुझे लक्ष्मण से भी दूने प्रिय हो। सब कोई मुझे समदर्शी (प्रिय-अप्रिय से परे) कहते हैं, पर मुझको सेवक प्रिय है, क्योंकि मुझे छोड़कर उसको कोई दूसरा सहारा नहीं होता।
राम-हनुमान के मिलन की यह घटना कौन से सन्, किस समय, किस तारीख को घटी थी जानिए अगले पन्ने पर...
श्रीराम को 5 जनवरी 5089 ईसा पूर्व को वनवास हुआ। उस समय उनकी आयु 25 वर्ष थी। वनवास के 13वें साल में उनका खर और दूषण से युद्ध हुआ था। यह तिथि 7 अक्टूबर 5077 ईस्वी पूर्व को आती है तब अमावस्या थी।
इस वर्ष में श्रीराम की मुलाकात हमनुमानजी से हुई थी। हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद जिस रोज भगवान राम ने बाली का वध किया था तब अषाड़ मास की अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण था। नासा के प्लेटिनियम सॉफ्टवेयर अनुसार यह तिथि 3 अप्रैल 5076 ईस्वी पूर्व की निकलती है।