गुरुवार, 28 नवंबर 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी

आखिर किसने लिखी थी मनुस्मृति, जानिए इस रहस्य को...

आखिर किसने लिखी थी मनुस्मृति, जानिए इस रहस्य को... - manusmriti
सभी भाषाओं के मनुष्य-वाची शब्द मैन, मनुज, मानव, आदम, आदमी आदि सभी मनु शब्द से प्रभावित है। सभी मनु मानव जाति के संदेशवाहक हैं। संसार के प्रथम पुरुष स्वायंभुव मनु और प्रथम स्त्री थी शतरूपा। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की संतानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की संतान होने के कारण वे मानव कहलाए।
 
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कौन है मनु : मनु है एक मनुष्य जो अपने कर्मों से महान बन गए। जिन्होंने मानव समाज को शिक्षित, विकसित और समझदार बनाने के लिए धर्म, शिक्षा, तकनीक, व्यवस्‍था और कानून दिया। ठीक उसी तरह जिस तरह जैन धर्म में 14 कुलकरों ने समाज के लिए काम किया। इन्होंने स्वयं को कभी भगवान नहीं माना बल्कि यह वेदों की सच्ची राह पर चलते गए और महान बन गए। दरअसल, मनु ही भारतीय समाज और राष्ट्र के निर्माता रहे हैं, लेकिन ऐसे कई कारण थे कि मनुओं को हाशिये पर धकेल दिया गया उन्हें समझे बगैर। उनके हाशिये पर चले जाने से ही हिन्दू समाज अपने मुख्‍य इतिहास से कट गया। खैर...
 
हम बताना चाहते हैं कि वर्तमान में जो मनुस्मृति पाई जाती है वह किस काल के मनु ने लिखी है और उनका नाम क्या था। तो सबसे पहले क्रमवार जान लीजिये की कौन कौन से मनु हुए हैं... एक अनुमानित गणना अनुसार लगभग 9500 ईसा पूर्व स्वायंभुव मनु का जन्म हुआ था। उसके बाद उनके ही कुल में क्रमश: स्वारो‍‍चिष, औत्तम, तामस, रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत, सावर्णि, दक्षसावर्णि, ब्रह्मासावर्णि, धर्मसावर्णि, रूद्रसावर्णि, देवसावर्णि और इन्द्रसावर्णि।
 
माना जाता है कि वर्तमान में जो मनु स्मृति अस्तित्व में है उसे 14वें मनु इन्द्रसावर्णि के मार्गदर्शन में सूत्रबद्ध किया गया था। लेकिन कालांतकर में इसमें परिवर्तन होते रहे। इन्द्रसावर्णि मनु ने इस मन्वन्तर के प्रारंभ में वैदिक संस्कार और सभ्यता को पुर्नस्थापित कर भारतीय सामज को उन्नत और संगठित किया था। इनका अवतरण श्रावण मास में कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को हुआ था।
 
ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार उनके पुत्र का नाम वृषध्वज था। यह नरेश वृषध्वज भगवान शंकर के परम भक्त थे। लेकिन वे विष्णु, लक्ष्मी और यज्ञ की निंदा करते रहे थे। अभिमान में चूर होकर वे भाद्रमास में महालक्ष्मी की पूजा में विघ्न डाला करते थे। उसके ऐसे व्यवहार के चलते एक दिन भगवान सूर्य ने उन्हें शाप दे दिया कि हे राजन! तेरी श्री नष्ट हो जाए।
 
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मनु स्मृति की ऐतिहासिकता : ऐतिहासिक प्रमाणों और साहित्यिक तथ्‍यों के अनुसार महाभारत का रचनाकाल 3150 ईसा पूर्व का लिखा ग्रंथ माना जाता है। 'महाभारत' में महाराजा मनु की चर्चा बार-बार की गई है (महाभारत अनुशासन पर्व और शांतिपर्व देखें), किंतु मनुस्मृति में महाभारत, कृष्ण या वेदव्यास का नाम तक नहीं है।
 
उसी तरह आधुनिक शोध के अनुसार राम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व हुआ था अर्थात आज से 7,129 वर्ष पूर्व। लगभग इसी काल में वाल्मीकिजी ने रामायण लिखी थी। महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण (वाल्मीकि रामायण 4-18-30, 31, 32 देखें) में मनुस्मृति के श्लोक व महाराज मनु की प्रतिष्ठा मिलती है किंतु मनुस्मृति में वाल्मीकि या भगवान राम आदि का नाम तक नहीं मिलता। महाभारत और रामायण में ऐसे कुछ श्लोक हैं, जो मनुस्मृति से ज्यों के त्यों लिए गए हैं। अतः अब सिद्ध हुआ कि 'मनु महाराज' भगवान श्रीकृष्ण और राम से पहले हुए थे और उनकी मनुस्मृति उन्हीं के काल में लिखी गई थी। 
 
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तब कितनी पुरानी है मनुस्मृति? 
सन् 1932 में जापान के एक बम विस्फोट द्वारा चीन की ऐतिहासिक दीवार का एक हिस्सा टूट गया था। टूटे हुए इस हिस्से से लोहे का एक ट्रंक मिला जिसमें चीनी भाषा में एक प्राचीन पांडुलिपियां भरी हुई थीं। 
 
चीन से प्राप्त पुरातात्विक प्रमाण-
विदेशी प्रमाणों में मनुस्मृति के काल तथा श्लोकों की संख्या की जानकारी कराने वाला एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक प्रमाण चीन में मिला है। सन् 1932 में जापान ने बम विस्फोट द्वारा चीन की ऐतिहासिक दीवार को तोड़ा तो उसमें से एक लोहे का ट्रंक मिला जिसमें चीनी भाषा की प्राचीन पांडुलिपियां भरी थीं। ये पांडुलिपियां सर आगस्टस रिट्ज जॉर्ज (Sir Augustus Fritz) के हाथ लग गईं और उन्होंने इसे ब्रिटिश म्यूजियम में रखवा दिया था। उन पांडुलिपियों को प्रोफेसर एंथोनी ग्रेम ( Prof. Anthony Graeme) ने चीनी विद्वानों से पढ़वाया तो यह जानकारी मिली...
 
चीन के राजा शी लेज वांग (Chin-Ize-Wang) ने अपने शासनकाल में यह आज्ञा दी कि सभी प्राचीन पुस्तकों को नष्ट कर दिया जाए। इस आज्ञा का मतलब था कि कि चीनी सभ्यता के सभी प्राचीन प्रमाण नष्ट हो जाएं। तब किसी विद्याप्रेमी ने पुस्तकों को ट्रंक में छिपाया और दीवार बनते समय चुनवा दिया। संयोग से ट्रंक विस्फोट से निकल आया।
 
चीनी भाषा के उन हस्तलेखों में से एक में लिखा है कि मनु का धर्मशास्त्र भारत में सर्वाधिक मान्य है, जो वैदिक संस्कृत में लिखा है और 10,000 वर्ष से अधिक पुराना है तथा इसमें मनु के श्लोकों की संख्या 680 (?) भी बताई गई है। ...किंतु वर्तमान में मनु स्मृति में 2400 के आसपास श्लोक हैं।
 
इस दीवार के बनने का समय लगभग 220 से 206 ईसा पूर्व का है अर्थात लिखने वाले ने कम से कम 220 ईसा पूर्व ही मनु के बारे में अपने हस्तलेख में लिखा। 220+10,000= 10,220 ईसा पूर्व मनुस्मृति लिखी गई होगी अर्थात आज से 12,234 वर्ष पूर्व मनुस्मृति उपलब्ध थी।
 
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किसने रची मनु स्मृति : धर्मशास्त्रीय ग्रंथकारों के अतिरिक्त शंकराचार्य, शबरस्वामी जैसे दार्शनिक भी प्रमाणरूपेण इस ग्रंथ को उद्धृत करते हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि परंपरानुसार यह स्मृति स्वायंभुव मनु द्वारा रचित है, वैवस्वत मनु या प्राचनेस मनु द्वारा नहीं। महाभारत ने स्वायंभुव मनु एवं प्राचेतस मनु में अन्तर बताया है, जिनमें प्रथम धर्मशास्त्रकार एवं दूसरे अर्थशास्त्रकार कहे गए हैं। उन्हीं के कुल में आगे चलकर इंद्रसावर्णि ने इस ग्रंथ को परिष्कृत किया। 
 
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार राजा वैवस्वत मनु का जन्म 6382 विक्रम संवत पूर्व वैशाख कृष्ण पक्ष 1 को हुआ था अर्थात ईसा पूर्व 6324 को हुआ था। इसका मतलब कि आज से 8,340 वर्ष पूर्व राजा मनु का जन्म हुआ था। वैवस्वत मनु को श्राद्धदेव भी कहते हैं। इन्हीं के काल में विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इनके पूर्व 6 और मनु हो गए हैं। स्वायंभुव मनु प्रथम मनु हैं, तो क्या प्रथम मनु के काल में मनुस्मृति लिखी गई? स्वायंभुव मनु 9057 ईसा हुए थे। ये भगवान ब्रह्मा की दो पीढ़ी बाद हुए थे।
 
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि उनका काल 9000 से 8762 विक्रम संवत पूर्व के बीच का था अर्थात 8942 ईसा पूर्व उनका जन्म हुआ था। इसका मतलब आज से 10,956 वर्ष पूर्व प्रथम राजा स्वायंभुव मनु थे। तो कम से कम आज से 10,000 वर्ष पुरानी है हमारी 'मनुस्मृति'।
 
टिप्पणी : कुछ लोग बगैर किसी आधार के मानते हैं कि कोई दो हजार साल पहले ब्राह्मणों ने 'मनुस्मृति' की रचना उस वक्त की जब देश से ब्राह्मणों और ब्राह्मणवादी विचारों का वर्चस्व खत्म हो रहा था। ऐसे में ब्राह्मणों ने अपने वर्चस्व को पुन: स्थापित करने के लिए मनु स्मृति लिखी और इसमें ब्राह्मणों को देवतुल्य घोषित किया गया। लेकिन ऐसा मानने वाले इतिहास को गहराई से शायद ही जानते होंगे। यदि वे गुलामी के काल का अच्छे से अध्ययन कर लेते, तो संभवत: ऐसा नहीं मानते। लेकिन यह भी सच ही है कि दुनिया के कानून का नक्षा मनु स्मृति को आधार मानकर ही बनाया गया है।
 
यदि वेद कंठस्थ नहीं होते और वे विशेष छंदों में नहीं लिखे गए होते, तो उनका हाल भी मनु स्मृति की तरह होता। तब हिन्दू समाज को विभाजित करने के लिए एक और ग्रंथ मिल जाता। यहां पहली बात यह समझने की है कि मनु स्मृति को कभी भी हिन्दुओं ने अपना धर्मग्रंथ नहीं माना। इसका कभी भी किसी मंदिर में पाठ भी नहीं होता और न ही इसे कोई पढ़ता है। कोई इसे खरीदकर घर में भी नहीं रखता है। कुछ का मत है कि पहले एक 'मानव धर्मशास्त्र' था जो अब उपलब्ध नहीं है। अत: वर्तमान 'मनुस्मृति' को मनु के नाम से प्रचारित करके उसे प्रामाणिकता प्रदान की गई है। परंतु बहुमत इसे स्वीकार नहीं करता।
 
मनु स्मृति में हेरफेर :  ऐसी मान्यता अधिक है कि अंग्रेज काल में इस ग्रंथ में हेरफेर करके इसे जबरन मान्यता दी गई और इस आधार पर हिन्दुओं का कानून बनाया गया। जब अंग्रेज चले गए तो भारत में जो सरकार बैठी उसने यह कभी ध्यान नहीं दिया की अंग्रेजों द्वारा जो गड़बड़ियां की गई थी उसे ठीक किया जाए। उन्होंने भी अंग्रेजों का अनुसरण करते हुए अंग्रेजों की ही परंपरा को आगे बढ़ाया।
 
कुछ विद्वान मानते हैं कि मनुस्मृति में वेदसम्मत वाणी का खुलासा किया गया है। वेद को कोई अच्छे से समझता या समझाता है तो वह है मनुस्मृति। लेकिन फिर भी राजा मनु ने इसमें कुछ अपने विचार भी प्रक्षेपित किए हैं। अब मनु स्मृति की बात करें तो अब तक 14 मनु हो गए हैं। प्रत्येक मनु ने अलग मनु स्मृति की रचना की है। इसी तरह प्रयेक ऋषियों की अलग अलग स्मृतियां हैं और इस तरह कम से कम 20-25 स्मृतियां मौजूद हैं।
 
यह मनस्मृति पुस्तक महाभारत और रामायण से भी प्राचीन है। गीता प्रेस गोरखपुर या फिर गायत्री परिवार से प्रकाशित मनुस्मृति को ही पढ़ना चाहिए, क्योंकि अन्य प्रकशनों की मनुस्मृति पर भरोसा नहीं किया जा सकता कि वह सही है या नहीं। ऐसे भी मनुस्मृति है जिसमें कुछ सूत्रों श्लोकों के साथ छेड़कानी करके उसे खूब प्रचारित और प्रसारित किया गया है।
 
मनुस्मृति के बहुत से संस्करण उपलब्ध हैं। कालान्तर में बहुत से प्रक्षेप भी स्वाभाविक हैं। साधारण व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं है कि वह बाद में सम्मिलित हुए सूत्रों या अंशों की पहचान कर सके। कोई अधिकारी विद्वान ही तुलनात्मक अध्ययन के उपरान्त ऐसा कर सकता है। क्योंकि बहुत ही चालाकी से यह जोड़े गए हैं। पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार मनु परंपरा की प्राचीनता होने पर भी वर्तमान मनुस्मृति ईसा पूर्व चतुर्थ शताब्दी से प्राचीन नहीं हो सकती।
 
मनुस्मृति के अनेक मत या वाक्य जो निरुक्त, महाभारत आदि प्राचीन ग्रंथों में नहीं मिलते हैं, उनके हेतु पर विचार करने पर भी कई उत्तर प्रतिभासित होते हैं। इस प्रकार के अनेक तथ्यों का बुहलर (Buhler, G.) (सैक्रेड बुक्स ऑव ईस्ट सीरीज, संख्या 25), पाण्डुरंग वामन काणे (हिस्ट्री ऑव धर्मशात्र में मनुप्रकरण) आदि विद्वानों ने पर्याप्त विवेचन किया है। यह अनुमान बहुत कुछ संगत प्रतीत होता है कि मनु के नाम से धर्मशास्त्रीय विषय परक वाक्य समाज में प्रचलित थे, जिनका निर्देश महाभारतादि में है तथा जिन वचनों का आश्रय लेकर वर्तमान मनुसंहिता बनाई गई, साथ ही प्रसिद्धि के लिये भृगु नामक प्राचीन ऋषि का नाम उसके साथ जोड़ दिया गया। मनु से पहले भी धर्मशास्त्रकार थे। 
 
संदर्भ :
Education in the Emerging India (R.P. Pathak)
मनु धर्मशास्त्र : ए सोशियोलॉजिकल एंड हिस्टोरिकल स्टडीज' (मोटवानी)