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अंतरिक्ष में यहां रहते हैं भगवान, लेकिन क्यों नहीं पहुंच सकता मनुष्य वहां

अंतरिक्ष में यहां रहते हैं भगवान, लेकिन क्यों नहीं पहुंच सकता मनुष्य वहां | Where is God in space
हम यहां भगवान की नहीं बल्कि ईश्वर की, परमात्मा की या ब्रह्म की बात कर रहे हैं। वर्तमान में लोग 'भगवान' शब्द को 'ईश्वर' से जोड़ते हैं इसीलिए हमने हेडिंग में भगवान रखा। कोई मनुष्य देवता या भगवान बन सकता है लेकिन ईश्‍वर या परमात्मा नहीं। वेद कहते हैं कि ईश्‍वर अजन्मा, अप्रकट और निराकार है। वही है अनंत, जो अंतरिक्ष में अरबों योजन दूर सत्यलोक में रहकर भी सर्वत्र व्याप्त है, जैसे सूर्य का प्रकाश।
 
 
आओ इस रहस्य को सरल भाषा में समझते हैं। इसे समझने के लिए आपको पहले बेसिक 5 पॉइंट को समझना होगा। फिर आपको ईश्वर की लोकेशन का ज्ञान होगा। इन बेसिक को याद रखेंगे तो पता चल जाएगा कि ईश्‍वर कहां विराजमान है?
 
1. गीता में कहा गया है कि यह सृष्टि उल्टे वृक्ष की भांति है। मतलब यह कि इस ब्रह्मांड में बीज ऊपर है और उसके फल नीचे लगे हुए हैं। ये संपूर्ण तारे, ग्रह और नक्षत्र, पशु, पक्षी, मनुष्‍य आदि फल हैं। जहां से बीज उत्पन्न हुआ वहीं पर ईश्वर मौजूद है। मतलब यह कि सृष्टि के 2 छोर हैं- एक छोर पर बीज और दूसरे छोर पर फल। मतलब यह कि इसके एक छोर पर ब्रह्मांड है और दूसरे छोर पर ब्रह्म (ईश्वर)।
 
 
2. मनुष्य का शरीर भी एक उल्टे वृक्ष की भांति ही है। मस्तिष्क एक बीज का खोल है। इसमें जहां सिर की चोटी हैं वहीं पर बीज स्थित है अर्थात जिसे सहस्रार चक्र कहते हैं। इस मस्तिष्क के भीतर एकदम सेंटर में आत्मा का निवास होता है। मतलब इस शरीर के दो छोर हैं- एक छोर पर सहस्रार और दूसरे छोर पर मूलाधार चक्र। बीच में अनाहत चक्र है।
 
3. इस ब्रह्मांड में विज्ञान के अनुसार ग्रह-नक्षत्र और कई आकाश गंगाएं (गैलेक्सी) हैं। लेकिन हिन्दू धर्म ने इस ब्रह्मांड को 3 भागों में विभाजित किया है- 1. कृतक त्रैलोक्य, 2. महर्लोक और 3. अकृतक त्रैलोक्य। इन्हें ही वेदों में पंच कोषों वाली सृष्टि कहा गया है- जड़, प्राण, मन, बुद्धि और आनंद।
 
 
* कृतक त्रैलोक्य- कृतक त्रैलोक्य के 3 भाग हैं- भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक। ये तीनों नश्वर हैं। इसकी एक निश्‍चित आयु है। जितनी दूर तक सूर्य, चंद्रमा आदि का प्रकाश जाता है, वह भूलोक, भूलोक और सूर्य के बीच के स्थान को भुवर्लोक कहते हैं। इसमें सभी ग्रह-नक्षत्रों का मंडल है। इसके बाद सूर्य और ध्रुव के बीच जो 14 लाख योजन का अंतर है, उसे स्वर्लोक या स्वर्गलोक कहते हैं। इसी के बीच में सप्तर्षि का मंडल है और ध्रुवलोक स्थित है।
 
 
*महर्लोक- कृतक त्रैलोक्य में स्थित ध्रुवलोक से 1 करोड़ योजन ऊपर महर्लोक है। कृतक और अकृतक लोक के बीच स्थित है 'महर्लोक', जो कल्प के अंत की प्रलय में केवल जनशून्य हो जाता है, लेकिन नष्ट नहीं होता। इसीलिए इसे कृतकाकृतक भी लोक कहते हैं।
 
*अकृतक त्रैलोक्य- कृतक और महर्लोक के बाद जन, तप और सत्य लोक तीनों अकृतक लोक कहलाते हैं। अकृतक त्रैलोक्य अर्थात जो नश्वर नहीं है, अनश्वर है। महर्लोक से 20 करोड़ योजन ऊपर जनलोक है। जनलोक से 8 करोड़ योजन ऊपर तपलोक है। तपलोक से 12 करोड़ योजन ऊपर सत्यलोक है।
 
 
4. हिन्दू धर्म में सृष्टि उत्पत्ति का क्रम इस प्रकार बताया गया है। उस अनंत (ईश्वर) से महत् की उत्पत्ति हुई। महत् से अंधकार जन्मा, अंधकार से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल, जल से पृथ्वी, पृथ्वी से औषधि, औ‍षधियों से अन्न, अन्न से वीर्य, वीर्य से पुरुष अर्थात शरीर उत्पन्न हुआ। पुरुष का अर्थ यहां मनुष्‍य या इंसान नहीं, बल्कि जो भी शरीरधारी है।
 
5. हिन्दू धर्म में काल अर्थात समय की धारणा बहुत ही वैज्ञानिक है। एक तृसरेणु से लेकर एक क्षण तक। एक क्षण से लेकर दंड तक, दंड से लेकर मुहूर्त और मुहूर्त से लेकर प्रहर, प्रहर से लेकर दिवस तक, दिवस से लेकर पक्ष। दो पक्ष का एक माह, दो माह की एक ऋतु, छह माह का एक अयन, दो अयन का एक वर्ष। एक वर्ष का देवताओं का एक दिन। देवताओं के 12,000 वर्ष का एक महायुग। 71 महायुग का एक मन्वंतर, चौदह मन्वंतर का एक कल्प। एक कल्प अर्थात ब्रह्मा का एक दिन। इतनी ही एक रात। मतलब दो कल्पों की उनके दिन और रात मिलाकर एक अहोरात्र पूर्ण होती है। इसी तरह महाविष्णु और शिव के समय की कल्पना करना मुश्‍किल है।
 
 
अब बात करते हैं कि ईश्‍वर कहां रहता है?
यदि आप उपरोक्त लिखा नहीं समझें तो कोई बात नहीं। यह क्यों लिखा, यह आपको आगे समझ में आ जाएगा। आपने भौतिक और गणित विज्ञान में आयाम अर्थात डायमेंशन के बारे में पढ़ा ही होगा। वैज्ञानिक कहते हैं कि ब्रह्मांड में 10 आयाम हो सकते हैं लेकिन मोटे तौर पर हमारा ब्रह्मांड त्रिआयामी है। पहला आयाम है ऊपर और नीचे, दूसरा है दाएं और बाएं, तीसरा है आगे और पीछे। इसे ही थ्रीडी कहते हैं। एक चौथा आयाम भी है जिसे समय कहते हैं। समय को आगे बढ़ता हुआ महसूस कर सकते हैं। हम इसमें पीछे नहीं जा सकते हैं।
 
हमारा यह संपूर्ण ब्रह्मांड इन चार आयामों पर ही आधारित है, लेकिन हिन्दू धर्म के अनुसार यह नियम सिर्फ कृतक त्रैलोक्य पर ही लागू होता है, अन्य लोकों पर नहीं। वेद और पुराणों में अन्य ग्रहों और अंतरिक्ष के बारे में विस्तार से लिखा हुआ है। ऊपर हम पहले ही तीन लोक और उनके उपलोकों के बारे में बता चुके हैं।
 
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक हमारी त्रिआयामी सृष्टि में ही निवास करते हैं। चौथा आयाम वह समय है। पांचवें आयाम को ब्रह्मा आयाम कहा गया है। इसी आयाम में ब्रह्मा निवास करते हैं। इसी आयाम से कई तरह के ब्रह्मांडों की उत्पत्ति होती है। यहां का समय अलग है। जैसा कि हम बता चुके हैं कि ब्रह्मा का एक दिन एक कल्प के बराबर का होता है। यह स्थान चारों आयामों से बाहर है।
 
 
इसके बाद आगे छठे आयाम में महाविष्णु निवास करते हैं। महाविष्णु के भी 3 भाग हैं- कारणोंदकशायी विष्णु, गर्भोदकशायी विष्णु और क्षीरोदकशायी विष्णु।
 
इसमें कारणोंदकशायी अर्थात महाविष्णु तत्वादि का निर्माण करते हैं जिससे इन 5 आयामों का निर्माण होता है। इसे ही महत् कहा जाता है और जिनके उदर में समस्त ब्रह्मांड हैं तथा प्रत्येक श्वास चक्र के साथ ब्रह्मांड प्रकट तथा विनष्ट होते रहते हैं।
 
 
दूसरे गर्भोदकशायी विष्णु से ही ब्रह्मा का जन्म होता है, जो प्रत्येक ब्रह्मांड में प्रविष्ट करके उसमें जीवन प्रदान करते हैं तथा जिनके नाभि कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए। उसके बाद तीसरे हैं क्षीरोदकशायी विष्णु, जो हमारी सृष्टि के हर तत्व और परमाणु में विलीन हैं, जो परमात्मा रूप में प्रत्येक जीव के हृदय तथा सृष्टि के प्रत्येक अणु में उपस्थित होकर सृष्टि का पालन करते हैं।
 
 
जब हम ध्यान करते हैं तो हम कसिरोधकस्य विष्णु को महसूस करते हैं। जब हम इसका ज्ञान पा लेते हैं तो हम भौतिक माया से बाहर आ जाते हैं। इसी से हम परमात्मा को महसूस करते हैं। जब व्यक्ति ध्यान की परम अवस्था में होता है तब इन्हें या इस आयाम को महसूस कर सकता है।
 
इसके बाद नंबर आता है सातवें आयाम का जिसे सत्य आयाम या ब्रह्म ज्योति कहते हैं। ब्रहम नहीं ब्रह्म ज्योति, जैसे सूर्य की ज्योति होती है। इसी आयाम में समाया है वह तत्व ज्ञान जिसकी मदद से मनुष्य देवताओं की श्रेणी में चला जाता है।
 
इसके बाद है आठवां आयाम जिसे कैलाश कहा जाता है। इस आयाम में भगवान शिव का भौतिक रूप विराजमान है। उनका कार्य ही इन सात आयामों का संतुलन बनाए रखना है। इसीलिए सिद्धयोगी भगवान शिव की आराधना करते हैं, क्योंकि हर योगी वहीं जाना चाहता है।
 
उसके बाद है नौवां आयाम जिसे पुराणों में वैकुंठ कहा गया है। इसी आयाम में नारायण निवास करते हैं, जो हर आयाम को चलायमान रखते हैं। मोक्ष को प्राप्त करने का मतलब है इस आयाम में समा जाना। हर आयाम इसी से बना है। यही आयाम सभी आयामों का निर्माण करता है। मोक्ष की प्राप्ति कर हर आत्मा शून्य में लीन होकर इसी आयाम में लीन हो जाती है। 
 
इसके नंबर आता है 10वें आयाम का जिससे अनंत कहा गया है। हमने आपको ऊपर चौथे पॉइंट में बताया था कि अनंत से ही महत् और महत् से ही अंधकार, अंधकार से ही आकाश की उत्पत्ति हुई है। यह अनंत ही परम सत्ता परमेश्वर अर्थात परमात्मा, ईश्‍वर या ब्रह्म है। संपूर्ण जगत की उत्पत्ति इसी ब्रह्म से हुई है और संपूर्ण जगत ब्रह्मा, विष्णु, शिव सहित इस ब्रह्म में ही लीन हो जाता है। यह एक जगह प्रकाश रूप में स्थिर रहकर भी सर्वत्र व्याप्त है। यही सनातन सत्य है जिसमें वेदों के अनुसार 64 प्रकार के आयाम समाए हुए हैं।
 
 
क्यों नहीं पहुंच सकता मनुष्य वहां?
इस ब्रह्मांड में तपलोक से 12 करोड़ योजन ऊपर सत्यलोक है। उसके पार अनंत ब्रह्म है। वहां मनुष्य किसी यान के द्वारा नहीं पहुंच सकता, क्योंकि वह 10वां आयाम है। मनुष्‍य की क्षमता 4 आयामों में ही विचरण करने की है। वहां सिर्फ योग की शक्ति से मोक्ष प्राप्त करने के बाद ही जाया जा सकता है। कोई शरीरधारी वहां नहीं जा सकता। दूसरा यह कि वह ब्रह्म सर्वत्र व्याप्त है, उसी तरह जिस तरह कि सूर्य का प्रकाश सभी दिशाओं में व्याप्त है।
 
 
वह दूर से भी दूर है और पास से भी पास है। वह सभी की आत्मा होकर भी सभी से अलग परमात्मा है। उसी के बल से सभी में बल है। उसी की शक्ति के कारण सभी में शक्ति है। उसी की ऊर्जा के कारण सभी में ऊर्जा है।