माता पावर्ती और भगवान शिव के पुत्र गणेश जी मंगलकर्ता और ज्ञान एवं बुद्घि के देवता माने जाते हैं। इसलिए जब भी कोई नया काम शुरू किया जाता है तो सबसे पहले गणेश जी का स्मरण किया जाता है। वेदव्यास जी ने जब महाभारत महाकाव्य की रचना शुरू की तब उन्होंने न सिर्फ गणेश जी का स्मरण किया बल्कि गणेश जी को इस बात के लिए भी तैयार कर लिया कि आप महाभारत खुद अपने हाथ से लिखें।
गणेश जी ने कहा कि मैं महाभारत लिख तो दूंगा लेकिन आप लगातार कथा बताते रहना होगा अन्यथा यदि आपकी कथा रुकी तो मेरी लेखनी तो रुकेगी ही साथ ही मैं लेखन का कार्य भी छोड़ दूंगा। फिर आपकी कथा पूर्ण हो या अधूरी। कहते हैं व्यास जी ने भी नियम का पालन किया। पहले महाभारत का नाम जय गाथा था।
कहा जाता है कि यहां स्थित गुफा में रहकर वेदव्यास जी ने सभी पुराणों की रचना भी की थी। व्यास गुफा को बाहर से देखकर ऐसा लगता है मानो कई ग्रंथ एक दूसरे के ऊपर रखे हुए हैं। इसलिए इसे व्यास पोथी भी कहते हैं।
माना जाता है की उत्तराखंड में अवस्थित पांडुकेश्वर तीर्थ में अपनी इच्छा से राज्य त्याग करने के बाद महाराज पांडु अपनी रानियों कुंती और मादरी संग निवास करते थे। इसी स्थान पर पांचों पांडवों का जन्म हुआ था।