देव आत्मस्थान : उत्तराखंड में एक ऐसा रहस्यमय स्थान है जिसे देवस्थान कहते हैं। मुण्डकोपनिषद के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ है। इनका केंद्र हिमालय की वादियों में उत्तराखंड में स्थित है। इसे देवात्मा हिमालय कहा जाता है। इन दुर्गम क्षेत्रों में स्थूल-शरीरधारी व्यक्ति सामान्यतया नहीं पहुंच पाते हैं।
सुंदरवन राष्ट्रीय अभयारण्य पश्चिम बंगाल (भारत) में खानपान जिले में स्थित है। इसकी सीमा बांग्लादेश के अंदर तक है। सुंदरवन भारत के 14 बायोस्फीयर रिजर्व में से एक बाघ संरक्षित क्षेत्र है। इस उद्यान को भी विश्व धरोहर में शामिल किया गया है।
यहां पर एक विशालकाय कैलाश मंदिर है। आर्कियोलॉजिस्टों के अनुसार इसे कम से कम 4 हजार वर्ष पूर्व बनाया गया था। 40 लाख टन की चट्टानों से बनाए गए इस मंदिर को किस तकनीक से बनाया गया होगा? यह आज की आधुनिक इंजीनियरिंग के बस की भी बात नहीं है।
पुष्कर राजस्थान के लगभग बीचोबीच स्थित है। पुष्कर में ब्रह्माजी के एकमात्र मंदिर है। तीर्थ तो बहुत हैं लेकिन पुष्कर एक तीर्थस्थल है इसलिए इसका जिक्र नहीं किया जा रहा। पुष्कर उस प्राचीन सभ्यता का केंद्र है, जो कभी 4,000 वर्ष पूर्व अर्थात महाभारतकाल तक अस्तित्व में थी।
यह नगर पूर्वोत्तर तमिलनाडु राज्य, दक्षिण भारत में स्थित है। प्राचीनकाल में महाबलीपुरम एक महानगर था। यहां पर विशालकाय और अद्भुत मंदिरों की एक श्रृंखला है जिसका एक भाग अब समुद्र में समा गया है। यहां सैकड़ों मंदिर और गुफाएं हैं, जो अपने आप में एक रहस्य हैं। दुनियाभर से लाखों पर्यटक इस शहर को देखने के लिए आते हैं। भारत के 7 आश्चर्यों में से एक महाबलीपुरम में दफन है प्राचीन भारत का रहस्यमय इतिहास।
हम्पी में बने दर्शनीय स्थलों में सम्मिलित हैं- विरुपाक्ष मंदिर, रघुनाथ मंदिर, नरसिम्हा मंदिर, सुग्रीव गुफा, विठाला मंदिर, कृष्ण मंदिर, हजारा राम मंदिर, कमल महल और महानवमी डिब्बा। हम्पी से 6 किलोमीटर दूर तुंगभद्रा बांध है।
पौराणिक महत्व : कहा जाता है कि भगवान शिव ने असुर वाणासुर को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी के हाथों उसका वध नहीं होगा। प्राचीनकाल में भारत पर शासन करने वाले राजा भरत को 8 पुत्री और 1 पुत्र था। भरत ने अपने साम्राज्य को 9 बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया। दक्षिण का हिस्सा उनकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी शिव की भक्त थीं और भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। विवाह की तैयारियां होने लगीं लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि बाणासुरन का कुमारी के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया।