FB सरस्वती नदी का नाम तो सभी ने सुना लेकिन उसे किसी ने देखा नहीं। माना जाता है कि प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है इसीलिए उसे त्रिवेणी संगम कहते हैं। लेकिन यह शोध का विषय है कि क्या सचमुच सरस्वती कभी प्रयाग पहुंचकर गंगा या यमुना में मिली? जब नहीं मिली तो क्यों कहा जाता है त्रिवेणी संगम। आओ जानते हैं सरस्वती नदी की सच्चाई। इसे जरूर पढ़ें : सिंधु नदी के बारे में विस्तार से.. पांच सवाल हैं:- 1. क्या कभी सरस्वती नदी का अस्तित्व था? 2. था तो क्या है इसका वैज्ञानिक आधार? 3. यदि सरस्वती नदी थी तो वह क्यों लुप्त हो गई? 4. क्या सरस्वती नदी कभी गंगा से मिली? 5. यदि सरस्वती नदी थी तो क्या था उसका इतिहास? अधिकतर इतिहासकार भारत के इतिहास की पुख्ता शुरुआत सिंधु नदी की घाटी की मोहनजोदड़ो और हड़प्पाकालीन सभ्यता से मानते थे लेकिन अब जबसे सरस्वती नदी की खोज हुई है, भारत का इतिहास बदलने लगा है। अब माना जाता है कि यह सिंधु घाटी की सभ्यता से भी कई हजार वर्ष पुरानी है। गंगा की नदियां : माना जाता है कि सुमेरू के ऊपर अंतरिक्ष में ब्रह्माजी का लोक है जिसके आस-पास इंद्रादि लोकपालों की 8 नगरियां बसी हैं। गंगा नदी चंद्रमंडल को चारों ओर से आप्लावित करती हुई ब्रह्मलोक (शायद हिमवान पर्वत) में गिरती है और सीता, अलकनंदा, चक्षु और भद्रा नाम से 4 भागों में विभाजित हो जाती है। सीता पूर्व की ओर आकाश मार्ग से एक पर्वत से दूसरे पर्वत होती हुई अंत में पूर्व स्थित भद्राश्ववर्ष (चीन की ओर) को पार करके समुद्र में मिल जाती है। अलकनंदा दक्षिण दिशा से भारतवर्ष में आती है और 7 भागों में विभक्त होकर समुद्र में मिल जाती है। चक्षु पश्चिम दिशा के समस्त पर्वतों को पार करती हुई केतुमाल नामक वर्ष में बहते हुए सागर में मिल जाती है। भद्रा उत्तर के पर्वतों को पार करते हुए उत्तरकुरुवर्ष (रूस) होते हुए उत्तरी सागर में जा मिलती है। अगले पन्ने पर, क्या कभी सरस्वती नदी का अस्तित्व था?