मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
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देवी-देवताओं के वाहनों का रहस्य जानिए..

देवी-देवताओं के वाहनों का रहस्य जानिए.. - Hindu goddess
ब्रह्म (ईश्वर) है सर्वोच्च। देवी और देवता एक ब्रह्म के प्रतिनिधि हैं। देवी और देवता 33 प्रकार के होते हैं और उक्त 33 प्रकार के देवी-देवताओं के हजारों गण होते हैं जिन्हें देवगण कहा गया है।
प्रत्येक देवी और देवता का एक वाहन होता है। हालांकि देवी-देवताओं को कहीं आने जाने के लिए वहन की जरूरत नहीं, लेकिन इससे यह समझे कि उक्त वाहनों का कितना महत्व है। आओ जानते हैं कि देवी-देवताओं के वाहनों की असली कहानी। देवी-देवताओं ने अपने वाहन के रूप में कुछ पशु या पक्षियों को चुना है, तो इसके पीछे उनकी विशिष्ठ योग्यता ही रही है। हालांकि आपको हम यह भी बताना चाहते हैं कि अब इनमें से कुछ वाहन लुप्त हो रहे हैं।
 
पशु और पक्षी ही वाहन क्यों? अध्यात्मिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक कारणों से भारतीय मनीषियों ने भगवानों के वाहनों के रूप पशु-पक्षियों को जोड़ा है। यह भी माना जाता है कि देवताओं के साथ पशुओं को उनके व्यवहार के अनुरूप जोड़ा गया है।
 
प्रकृति की रक्षा हेतु:- अगर पशुओं को भगवान के साथ नहीं जोड़ा जाता तो शायद पशु के प्रति हिंसा का व्यवहार और ज्यादा होता। भारतीय मनीषियों ने प्रकृति और उसमें रहने वाले जीवों की रक्षा का एक संदेश दिया है। हर पशु किसी न किसी भगवान का प्रतिनिधि है, उनका वाहन है, इसलिए इनकी हिंसा नहीं करनी चाहिए।
 
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विष्णु का वाहन गरूड़: लुप्त हो रहा है गरूड़। माना जाता है कि गिद्धों (गरूड़) की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी और उसका काम संदेश को इधर से उधर ले जाना होता था, जैसे कि प्राचीनकाल से कबूतर भी यह कार्य करते आए हैं। भगवान विष्णु का वाहन है गरूड़। 
 
प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के 2 पुत्र हुए- गरूड़ और अरुण। गरूड़जी विष्णु की शरण में चले गए और अरुणजी सूर्य के सारथी हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे।
 
राम के काल में सम्पाती और जटायु की बहुत ही चर्चा होती है। ये दोनों भी दंडकारण्य क्षेत्र में रहते थे, खासकर मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में इनकी जाति के पक्षियों की संख्या अधिक थी। छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में गिद्धराज जटायु का मंदिर है। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे इसीलिए यहां एक मंदिर है।
 
दूसरी ओर मध्यप्रदेश के देवास जिले की तहसील बागली में ‘जटाशंकर’ नाम का एक स्थान है जिसके बारे में कहा जाता है कि गिद्धराज जटायु वहां तपस्या करते थे। जटायु पहला ऐसा पक्षी था, जो राम के लिए शहीद हो गया था। जटायु का जन्म कहां हुआ, यह पता नहीं, लेकिन उनकी मृत्यु दंडकारण्य में हुई।
 
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मां लक्ष्मी का वाहन उल्लू : लुप्त हो रहा है उल्लू। पश्चिमी मान्यता अनुसार किस व्यक्ति को मूर्ख बनाना अर्थात उल्लू बनाना कहा जाता है। इसका यह मतलब की मूर्ख व्यक्ति को उल्लू समझा जाता है, लेकिन यह धारणा गलत है। उल्लू सबसे बुद्धिमान‍ निशाचारी प्राणी होता है। उल्लू को भूत और भविष्‍य का ज्ञान पहले से ही हो जाता है।
 
उल्लू को भारतीय संस्कृति में शुभता और धन संपत्ति का प्रतीक माना जाता है। हालांकि अधिकतर लोग इससे डरते हैं। इस डर के कारण ही इसे अशुभ भी माना जाता है। अधिकतर यह माना जाता है कि यह तांत्रिक विद्या के लिए कार्य करता है। उल्लू के बारे में देश-विदेश में कई तरह की विचित्र धारणाएं फैली हुई है।
 
अधिक संपन्न होने के चक्कर में लोग दुर्लभ प्रजाति के उल्लुओं के नाखून, पंख आदि को लेकर तांत्रिथक कार करने हैं। कुछ लोग तो इसकी दीपावली की रात को बलि भी चढ़ाते हैं जिसके कारण इस पक्षी पर संकट गहरा गया है। हालांकि ऐसे करने से रही सही लक्ष्मी भी चली जाती है और आदमी पहले से अधिक गहरे संकट में फंस जाता है।
 
रहस्यमी प्राणी उल्लू : जब पूरी ‍दुनिया सो रही होती है तब यह जागता है। यह अपनी गर्दन को 170 अंश तक घुमा लेता है। यह रात्री में उड़ते समय पंख की आवाज नहीं निकालता है और इसकी आंखें कभी नहीं झपकती है। उल्लू का हू हू हू उच्चारण एक मंत्र है।
 
उल्लू में पांच प्रमुख गुण होते हैं : उल्लू की दृष्टि तेज होती है। दूसरा गुण उसकी नीरव’ उड़ान। तीसरा गुण शीतऋतु में भी उड़ने की क्षमता। चौथी उसकी योग्यता है उसकी विशिष्ट श्रवण-शक्ति। पांचवीं योग्यता अति धीमे उड़ने की भी योग्यता। उल्लू के ऐसे ऐसे गुण हैं जो अन्य किसी पक्षियों में नहीं है। उसकी इसकी योग्यता को देखकर अब वैज्ञानिक इसी तरह के विमान बनाने में लगे हैं।
 
उल्लू एक ऐसा पक्षी है जो किसानों के लिए अच्छा साबित हो सकता है। इसके होने के कारण खेत में चूहे, सांप, बिच्छी आदी नहीं आ सकते। इसके आलाव छोटे मोटे किड़े के लिए उल्लू एक दमनकारी पक्षी है। भारत में लगभग साठ जातियों या उपजातियों के उल्लू पाए जाते हैं। 
 
उल्लू कैसे बना लक्ष्मी का वाहन : प्राणी जगत की संरचाना करने के बाद एक रोज सभी देवी-देवता धरती पर विचरण के लिए आए। जब पशु-पक्षियों ने उन्हें पृथ्वी पर घुमते हुए देखा तो उन्हें अच्छा नहीं लगा और वह सभी एकत्रित होकर उनके पास गए और बोले आपके द्वारा उत्पन्न होने पर हम धन्य हुए हैं। हम आपको धरती पर जहां चाहेंगे वहां ले चलेंगे। कृपया आप हमें वाहन के रूप में चुनें और हमें कृतार्थ करें। 
 
देवी-देवताओं ने उनकी बात मानकर उन्हें अपने वाहन के रूप में चुनना आरंभ कर दिया। जब लक्ष्मीजी की बारी आई तब वह असमंजस में पड़ गई किस पशु-पक्षी को अपना वाहन चुनें। इस बीच पशु-पक्षियों में भी होड़ लग गई की वह लक्ष्मीजी के वाहन बनें। इधर लक्ष्मीजी सोच विचार कर ही रही थी तब तक पशु पक्षियों में लड़ाई होने लगी गई।
 
इस पर लक्ष्मीजी ने उन्हें चुप कराया और कहा कि प्रत्येक वर्ष कार्तिक अमावस्या के दिन मैं पृथ्वी पर विचरण करने आती हूं। उस दिन मैं आपमें से किसी एक को अपना वाहन बनाऊंगी। कार्तिक अमावस्या के रोज सभी पशु-पक्षी आंखें बिछाए लक्ष्मीजी की राह निहारने लगे। रात्रि के समय जैसे ही लक्ष्मीजी धरती पर पधारी उल्लू ने अंधेरे में अपनी तेज नजरों से उन्हें देखा और तीव्र गति से उनके समीप पंहुच गया और उनसे प्रार्थना करने लगा की आप मुझे अपना वाहन स्वीकारें।
 
लक्ष्मीजी ने चारों ओर देखा उन्हें कोई भी पशु या पक्षी वहां नजर नहीं आया। तो उन्होंने उल्लू को अपना वाहन स्वीकार कर लिया। तभी से उन्हें उलूक वाहिनी कहा जाता है।
 
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मां सरस्वती का वाहन हंस : हंस पवित्र, जिज्ञासु और समझदार पक्षी होता है। यह जीवनपर्यन्त एक हंसनी के ही साथ रहता है। परिवार में प्रेम और एकता का यह सबसे श्रेष्ठ उदाहरण है। इसके अलावा हंस अपने चुने हुए स्थानों पर ही रहता है। तीसरी इसकी खासियत हैं कि यह अन्य पक्षियों की अपेक्षा सबसे ऊंचाई पर उड़ान भरता है और लंबी दूरी तय करने में सक्षम होता है। जो ज्ञानी होते हैं वे हंस के समान ही होते हैं और जो बुद्धत्व प्राप्त कर लेते हैं उनको परमहंस कहा गया है।
Devi Sarasvati
ज्ञान की देवी मां सरस्वती के लिए सबसे बेहतर वाहन हंस ही हो सकता था। मां सरस्वती का हंस पर विराजमान होना यह बताता है कि ज्ञान से ही जिज्ञासा को शांत किया जा सकता है। ज्ञान से ही जीवन में पवित्रता, नैतिकता, प्रेम और सामाजिकता का विकास होता है। ज्ञान क्या है? जो-जो भी अज्ञान है उसे जान लेना ही ज्ञानी होने का प्रथम लक्षण है।
 
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शिव का वाहन नंदी बैल : शिव के एक गण का नाम है नंदी। प्राचीनकालीन किताब कामशास्त्र, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र और मोक्षशास्त्र में से कामशास्त्र के रचनाकार नंदी ही थे।
विश्‍व की लगभग सभी प्राचीन सभ्यताओं में बैल को महत्व दिया गया है। सुमेरियन, बेबीलोनिया, असीरिया और सिंधु घाटी की खुदाई में भी बैल की मूर्ति पाई गई है। इससे प्राचीनकल से ही बैल को महत्व दिया जाता रहा है। भारत में बैल खेती के लिए हल में जोते जाने वाला एक महत्वपूर्ण पशु रहा है।
 
जिस तरह गायों में कामधेनु श्रेष्ठ है उसी तरह बैलों में नंदी श्रेष्ठ है। आमतौर पर खामोश रहने वाले बैल का चरित्र उत्तम और समर्पण भाव वाला बताया गया है। इसके अलावा वह बल और शक्ति का भी प्रतीक है। बैल को मोह-माया और भौतिक इच्छाओं से परे रहने वाला प्राणी भी माना जाता है। यह सीधा-साधा प्राणी जब क्रोधित होता है तो सिंह से भी भिड़ लेता है। यही सभी कारण रहे हैं जिसके कारण भगवान शिव ने बैल को अपना वाहन बनाया। शिवजी का चरित्र भी बैल समान ही माना गया है।
 
पौराणिक कथा अनुसार शिलाद ऋषि ने शिव की तपस्या के बाद नंदी को पुत्र रूप में पाया था। नंदी को उन्हों वेदादि ज्ञान सहित अन्य ज्ञान भी प्रदान किया। एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नाम के दो दिव्य संत पधारे और नंदी ने पिता की आज्ञा से उनकी खुब सेवा की जब वे जाने लगे तो उन्होंने ऋषि को तो लंबी उम्र और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया लेकिन नंदी को नहीं। तब शिलाद ऋषि ने उनसे पूछा कि उन्होंने नंदी को आशीर्वाद क्यों नहीं दिया?
 
तब संतों ने कहा कि नंदी अल्पायु है। यह सुनकर शिलाद ऋषि चिंतित हो गए। पिता की चिंता को नंदी ने भांप कर पूछा क्या बात है तो पिता ने कहा कि तुम्हारी अल्पायु के बारे में संत कह गए हैं इसीलिए चिंतित हूं। यह सुनकर नंदी हंसने लगा और कहने लगा कि आपने मुझे भगवान शिव की कृपा से पाया है तो मेरी उम्र की रक्षा भी वहीं करेंगे आप क्यों नाहक चिंता करते हैं। इतना कहते ही नंदी भुवन नदी के किनारे शिव की तपस्या करने के लिए चले गए। कठोर तप के बाद शिवजी प्रकट हुए और कहा वरदान मांगों वत्स। तब नंदी के कहा कि मैं ताउम्र आपके सानिध्य में रहना चाहता हूं।
 
नंदी के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।
 
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मां पार्वती का वाहन बाघ : माता पार्वती का वानह बाघ है तो मां दुर्गा का वहन शेर। मांता दुर्गा को शेरावाली कहा जाता है। बाघ तो माता पार्वती का वाहन है। बाघ अदम्य साहस, क्रूरता, आक्रामकता और शौर्यता का प्रतीक है। यह तीनों विशेषताएं मां पार्वती के आचरण में भी देखने को मिलती है। बाघ की दहाड़ के आगे संसार की बाकी सभी आवाजें कमजोर लगती हैं।
 
मां पार्वती का हृदय बहुत ही कोमल है। मां की पूजा यदि सच्चे मन और श्रृद्धा के साथ की जाएं तो हर बिगड़े कार्य बन जाते हैं, लेकिन यदि माता का किसी भी रूप में अपमान हो या उनसे वाद खिलाफी की गई हो तो फिर उनका क्रोध देखने लायक होगा। कई लोग मन्नत को कर लेते हैं लेकिन काम होने के बाद उसे पूरी नहीं करते हैं तब मां उनको याद दिलाने के लिए भक्त को घनचक्कर बना देती है।
 
एक दिन मां पार्वती और भगवान शिव साथ बैठे थे। मजाक में ही शिवजी ने माता को काली कह दिया। मां को बहुत लगा और वह कैलाश छोड़कर एक वन में चली गई और कठोर तपस्या में लीन हो गई। इस बीच एक भूखा शेर मां पार्वती को खाने की इच्छा से वहां पहुंचा, ले‌किन वह वहीं चुपचाप बैठ गया।
 
माता के प्रभाव के चलते वह बाघ भी तपस्या कर रही मां के साथ वहीं सालों चुपचाप बैठा रहा। मां ने हठ कर ली थी कि जब तक वह गौरी नहीं हो जाएगी तब तक वह यहीं तपस्या करेगी। तब शिवजी वहां प्रकट हुए और देवी को गौरा होने का वरदान देकर चले गए। फिर माता ने पास की ही नदी में स्नान किया और बाद में देखा की एक बाघ वहां चुपचाप बैठा माता को ध्यान से देख रहा है। माता पार्वती को जब यह पता चला कि यह शेर उनके साथ ही तपस्या में यहां सालों से बैठा रहा है तो माता ने प्रसंन्न होकर उसे वरदान स्वरूप अपना वाहन बना लिया। तब से मां पार्वती का वाहन बाघ हो गया।
 
दूसरी कथा अनुसार संस्कृत भाषा में लिखे गए 'स्कंद पुराण' के तमिल संस्करण 'कांडा पुराणम' में उल्लेख है कि देवासुर संग्राम में भगवान शिव के पुत्र मुरुगन (कार्तिकेय) ने दानव तारक और उसके दो भाइयों सिंहामुखम एवं सुरापदम्न को पराजित किया था।
 
अपनी पराजय पर सिंहामुखम माफी मांगी तो मुरुगन ने उसे एक शेर में बदल दिया और अपना माता दुर्गा के वाहन के रूप में सेवा करने का आदेश दिया। 
 
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गणेशजी का वाहन मूषक : भगवानों ने अपनी सवारी बहुत ही विशेष रूप से चुनी। उनके वाहन उनकी चारित्रिक विशेषताओं को भी बताते हैं। शिवपुत्र गणेशजी का वाहन है मूषक। मूषक शब्द संस्कृत के मूष से बना है जिसका अर्थ है लूटना या चुराना।
सांकेतिक रूप से मनुष्य का दिमाग मूषक, चुराने वाले यानी चूहे जैसा ही होता है। यह स्वार्थ भाव से गिरा होता है। गणेशजी का चूहे पर बैठना इस बात का संकेत है कि उन्होंने स्वार्थ पर विजय पाई है और जनकल्याण के भाव को अपने भीतर जागृत किया है।
 
वैज्ञानिक मानते हैं कि मनुष्य और चूहे के मस्तिष्क का आकार प्रकार एक समान है। चूहे का किसी न किसी रूप में मनुष्य से कोई सबंध जरूर है उसी तरह ‍जिस तरह की चूहे और हाथी का।
 
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कार्तिकेय का वाहन मयूर : मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। यह पक्षी जितना राष्ट्रीय महत्व रखता है उतना ही धार्मिक महत्व भी, हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान मुरुगन या कहें कार्तिकेय का वाहन मोर है।
एक मान्यता अनुसार अरब में रह रहे यजीदी समुदाय (कुर्द धर्म) के लोग हिन्दू ही हैं और उनके देवता कार्तिकेय है जो मयूर पर सवार हैं। भारत में दक्षिण भारत में कार्तिकेय की अधिक पूजा होती है। कार्तिकेय को स्कंद भी कहा जाता है, जो शिव के बड़े पुत्र हैं।
 
कार्तिकेय का वाहन मयूर है। एक कथा के अनुसार कार्तिकेय को यह वाहन भगवान विष्णु ने उनकी सादक क्षमता को देखकर ही भेंट किया था। मयूर का मान चंचल होता है। चंचल मन को साधना बड़ा ही मुश्‍किल होता है। कार्तिकेय ने अपने मन को साथ रखा था। वहीं एक अन्य कथा में इसे दंभ के नाशक के तौर पर कार्तिकेय के साथ बताया गया है।
 
संस्कृत भाषा में लिखे गए 'स्कंद पुराण' के तमिल संस्करण 'कांडा पुराणम' में उल्लेख है कि देवासुर संग्राम में भगवान शिव के पुत्र मुरुगन (कार्तिकेय) ने दानव तारक और उसके दो भाइयों सिंहामुखम एवं सुरापदम्न को पराजित किया था।
 
अपनी पराजय पर सिंहामुखम माफी मांगी तो मुरुगन ने उसे एक शेर में बदल दिया और अपना माता दुर्गा के वाहन के रूप में सेवा करने का आदेश दिया।
 
दूसरी ओर मुरुगन से लड़ते हुए सपापदम्न (सुरपदम) एक पहाड़ का रूप ले लेता है। मुरुगन अपने भाले से पहाड़ को दो हिस्सों में तोड़ देते हैं। पहाड़ का एक हिस्सा मोर बन जाता है जो मुरुगन का वाहन बनता है जबकि दूसरा हिस्सा मुर्गा बन जाता है जो कि उनके झंडे पर मुरुगन का प्रतीक बन जाता है। इस प्रकार, यह पौराणिक कथा बताती है कि मां दुर्गा और उनके बेटे मुरुगन के वाहन वास्तव में दानव हैं जिन पर कब्जा कर लिया गया है। इस तरह वो ईश्वर से माफी मिलने के बाद उनके सेवक बन गए।
 
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इंद्र का वाहन सफेद हाथी : आजकल सफोद हाथी तो बहुत कम पाए जाते हैं। मनुष्यों ने इनका कत्लेआम कर दिया है इनकी चर्बी और हाथी दांत के लिए। यह लगभग लुप्तप्राय है। 
इंद्र ने अपना वाहन ऐरावत नामक एक हाथी को बनाया। समुद्र मंथन के दोरान 14 रत्नों में से एक ऐरावत की भी उत्पत्ति हुई थी। हाथी शांत, समझदार और तेज बुद्धि का प्रतीक है। ऐरावत को चार दांतों वाला बताया गया है। 'इरा' का अर्थ जल है, अत: 'इरावत' (समुद्र) से उत्पन्न हाथी को ऐरावत नाम दिया गया है।
 
महाभारत, भीष्मपर्व के अष्ट्म अध्याय में भारतवर्ष से उत्तर के भू-भाग को उत्तर कुरु के बदले 'ऐरावत' कहा गया है। जैन साहित्य में भी यही नाम आया है। यह उत्तर कुरु दरअसल उत्तरी ध्रुव में स्थित था। संभवत: वहां प्राचीनकाल में इस तरह के हाथी होते होंगे जो बहुत ही सफेद और चार दांतों वाले रहे होंगे। वैज्ञानिक कहते हैं कि लगभग 35 हजार वर्ष पूर्व उत्तरी ध्रुव पर बर्फ नहीं बल्कि मानव आबादी आबाद रहती थी।
 
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यमराज का वाहन भैंसा : यम नामम एक वायु होती है। मरने के बाद व्यक्ति उक्त वाय में जाकर स्थिर हो जाता है और फिर प्राकृतिक चक्र अनुसार पुन: धरती पर जन्म ले लेता है। 
 
यम नामक एक देवता हैं ‍जिनको मृत्यु का देवता कहते हैं। ये दक्षिण दिशा के दिक् पाल कहे जाते हैं। यमराज को भैंसे पर सवार बताया गया है। भैंसा एक सामाजिक प्राणी होता है। सभी भैंसे मिलकर एक दूसरे की रक्षा करते हैं। यह एकता का प्रतीक है। भैंसा अपनी शक्ति और फूर्ति के लिए भी जाना जाता है। भैंसा अपनी शक्ति का कभी दुरुपयोग नहीं करता। भैंसा अपनी आत्मरक्षा में ही किसी पर हमला करता है। भैंसे का रूप जिस तरह से भयानक होता है उसी तरह यमराज का रूप भी भयानक है। अत: यमराज उसको अपने वाहन के तौर पर प्रयोग करते हैं।
 
व्यक्ति मरता है तो सबसे पहले यमदूतों के पल्ले पड़ता है, जो उसे 'यमराज' के समक्ष उपस्थित कर देते हैं। यमराज को दंड देने का अधिकार प्रदान है। वही आत्माओं को उनके कर्म अनुसार नरक, स्वर्ग, पितृलोक आदि लोकों में भेज देते हैं। उनमें से कुछ को पुन: धरती पर फेंक दिया जाता है।
 
विधाता (ईश्वर) लिखता है, चित्रगुप्त बांचता है, यमदूत पकड़कर लाते हैं और यमराज दंड देते हैं। मृत्य का समय ही नहीं, स्थान भी निश्चित है जिसे कोई टाल नहीं सकता।
 
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गंगा का वाहन मगरमच्छ : देवी गंगा का वाहन मगरमच्छ है। सिंधु, गंगा, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र, कावेरी आदि नदियों में जल में विचरण करने वाला प्रमुख प्राणी मगरमच्छ ही है। वैज्ञानिक कहते हैं कि मगरमच्छ हर परिस्थिति में जी लेते हैं। धरती पर इनका अस्तित्व लगभग 25 करोड़ साल से विद्यमान है।
जल में इनकी मगरमच्छ की अनुपस्थिति से पारिस्थितिक तंत्र बिगड़ सकता है। वर्तनाम में बिजली उत्पादन के नाम पर गंगा और नर्मदा नदी की हत्या कर दी गई है। उसकी हत्या करने के चलते जल के राजा मगरमच्छ सहित कई प्राणियों का अस्तित्व संकट में है और कई तो अपना अस्तित्व खो बैठे हैं। गंगा नदी की दुर्लभ डॉल्फिन भी अपने अस्तित्व के संकट से जुझ रही है।
 
 
 
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शनि का वाहन कौआ : बहुत कम लोगों को पता होगा कि शनिदेव की सवारी कौवा या गिद्ध ही नहीं बल्कि पुरे 9 सवारी शनिदेव की है। जैसे- गिद्ध, घोड़ा, गधा, कुत्ता, शेर, सियार, हाथी, मोर और हिरण हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि शनिदेव जिस वाहन पर सवार होकर जिसके पास भी जाते हैं वह व्यक्ति उसी के हिसाब से फल का उत्तरदायी होता है। हालांकि कौवा को उनकी मुख्‍य सवारी माना जाता है।
कौआ एक बुद्धिमान प्राणी है। कौए को अतिथि-आगमन का सूचक और पितरों का आश्रम स्थल माना जाता है। पुराणों की एक कथा के अनुसार इस पक्षी ने अमृत का स्वाद चख लिया था इसलिए मान्यता के अनुसार इस पक्षी की कभी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती। कोई बीमारी एवं वृद्धावस्था से भी इसकी मौत नहीं होती है। इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होती है।
 
जिस दिन किसी कौए की मृत्यु हो जाती है उस दिन उसका कोई साथी भोजन नहीं करता है। कौआ अकेले में भी भोजन कभी नहीं खाता, वह किसी साथी के साथ ही मिल-बांटकर भोजन ग्रहण करता है।
 
कौए की योग्यता : कौआ लगभग 20 इंच लंबा, गहरे काले रंग का पक्षी है जिसके नर और मादा एक ही जैसे होते हैं। कौआ बगैर थके मीलों उड़ सकता है। कौए को भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पहले से ही आभास हो जाता है।
 
पितरों का आश्रय स्थल : श्राद्ध पक्ष में कौओं का बहुत महत्व माना गया है। इस पक्ष में कौओं को भोजन कराना अर्थात अपने पितरों को भोजन कराना माना गया है। शास्त्रों के अनुसार कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में स्थित होकर विचरण कर सकती है।
 
कौए को भोजन कराने का लाभ : भादौ महीने के 16 दिन कौआ हर घर की छत का मेहमान बनता है। ये 16 दिन श्राद्ध पक्ष के दिन माने जाते हैं। कौए एवं पीपल को पितृ प्रतीक माना जाता है। इन दिनों कौए को खाना खिलाकर एवं पीपल को पानी पिलाकर पितरों को तृप्त किया जाता है।
 
विष्णु पुराण में श्राद्ध पक्ष में भक्ति और विनम्रता से यथाशक्ति भोजन कराने की बात कही गई है। कौए को पितरों का प्रतीक मानकर श्राद्ध पक्ष के 16 दिनों तक भोजन कराया जाता है। माना जाता है कि कौए के रूप में हमारे पूर्वज ही भोजन करते हैं। कौए को भाजन कराने से सभी तरह का पितृ और कालसर्प दोष दूर हो जाता है।
 
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भगवान भैरव का वाहन कुत्ता :- कुत्ता एक रहस्यमयी प्राणी है। कुछ धर्मों में इसे शैतानी माना गया है तो ‍हिन्दू धर्म में इसे कुशाग्र बुद्धि और रहस्यों को जानने वाला प्राणी माना गया है। कई मामलों में यह मनुष्यों की रक्षा करता है। भगवान भैरव ने इसे अपना वाहन तो नहीं बनाया लेकिन वे हमेशा इसे अपने साथ रखते हैं।
इस्लाम के अनुसार जिस घर में कुत्ता होता है वहां फरिश्ते नहीं जाते- (सहीह मुस्लिम हदीस नं 2106)। हिन्दू धर्म के पुराणों में कुत्ते को यम का दूत कहा गया है। ऋग्वेद में एक स्थान पर जघन्य शब्द करने वाले श्वानों का उल्लेख मिलता है, जो विनाश के लिए आते हैं।
 
भैरव महाराज का सेवक : कुत्ते को हिन्दू देवता भैरव महाराज का सेवक माना जाता है। कुत्ते को भोजन देने से भैरव महाराज प्रसन्न होते हैं और हर तरह के आकस्मिक संकटों से वे भक्त की रक्षा करते हैं। मान्यता है कि कुत्ते को प्रसन्न रखने से वह आपके आसपास यमदूत को भी नहीं फटकने देता है। कुत्ते को देखकर हर तरह की आत्माएं दूर भागने लगती हैं।
 
कुत्ते की योग्यता : दरअसल कुत्ता एक ऐसा प्राणी है, जो भविष्‍य में होने वाली घटनाओं और ईथर माध्यम (सूक्ष्म जगत) की आत्माओं को देखने की क्षमता रखता है। कुत्ता कई किलोमीटर तक की गंध सूंघ सकता है। कुत्ते को हिन्दू धर्म में एक रहस्यमय प्राणी माना गया है, लेकिन इसको भोजन कराने से हर तरह के संकटों से बचा जा सकता है।
 
क्यों पालते हैं कुत्ता? : कुत्ता एक वफादार प्राणी होता है, जो हर तरह के खतरे को पहले ही भांप लेता है। प्राचीन और मध्‍य काल में पहले लोग कुत्ता अपने साथ इसलिए रखते थे ताकि वे जंगली जानवरों, लुटेरों और भूतादि से बच सके। बंजारा जाति और आदिवासी लोग कुत्ते को पालते थे ताकि वे हर तरह के खतरे से पहले ही सतर्क हो जाएं। भारत में जंगल में रहने वाले साधु-संत भी कुत्ता इसीलिए पालते थे ताकि कुत्ता उनको खतरे के प्रति सतर्क कर दे। आजकल लोग घर में कुत्ता इसलिए पालते हैं कि वह उनके घर की चोरों से रक्षा कर सके। लेकिन कुत्ता पालना खतरनाक भी हो सकता है और फायदेमंद भी इसलिए कुत्ता पालने से पहले किसी धर्मज्ञ और लाल किताब के विशेषज्ञ से सलाह जरूर ले लें। कुत्ता आपको राजा से रंक और रंक से राजा बना सकता है।
 
इसके अलावा आदित्य का वाहन सात घोड़े, वरुण का वाहन सात हंस, ब्रह्मा सात हंस, महेश्वरी का बैल, दुर्गा का सिंह और अग्नि का मेष आदि।
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