शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या। पंचांग के अनुसार पूर्णिमा माह की 15वीं और शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि है जिस दिन चन्द्रमा आकाश में पूर्ण रूप से दिखाई देता है। पंचांग के अनुसार अमावस्या माह की 30वीं और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि है जिस दिन चन्द्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता है।
0.अमावस्या (अमावस) के देवता हैं अर्यमा जो पितरों के प्रमुख हैं। अमावास्या में पितृगणों की पूजा करने से वे सदैव प्रसन्न होकर प्रजावृद्धि, धन-रक्षा, आयु तथा बल-शक्ति प्रदान करते हैं। यह बलप्रदायक तिथि हैं।
1. प्रतिपदा (पड़वा) के देवता हैं अग्नि। इस तिथि में अग्निदेव की पूजा करने से धन और धान्य की प्राप्ति होती है। यह वृद्धिप्रदायक तिथि है।
2. द्वितीया (दूज) के देवता हैं ब्रह्मा। इस तिथि में ब्रह्मा की पूजा करने से मनुष्य विद्याओं में पारंगत होता है। यह शुभदा तिथि है।
3. तृतीया (तीज) के देवता हैं यक्षराज कुबेर। इस तिथि में कुबेर का पूजन करने से व्यक्ति धनवान बन जाता है। यह बलप्रदायक तिथि हैं।
4. चतुर्थी (चौथ) के देवता हैं शिवपुत्र गणेश। इस तिथि में भगवान गणेश का पूजन से सभी विघ्नों का नाश हो जाता है। यह खला तिथि हैं।
5. पंचमी (पंचमी) के देवता हैं नागराज। इस तिथि में नागदेवता की पूजा करने से विष का भय नहीं रहता, स्त्री और पुत्र प्राप्ति होती है। यह लक्ष्मीप्रदा तिथि हैं।
6. षष्ठी (छठ) के देता हैं कार्तिकेय। इस तिथि में कार्तिकेय की पूजा करने से मनुष्य श्रेष्ठ मेधावी, रूपवान, दीर्घायु और कीर्ति को बढ़ाने वाला हो जाता है। यह यशप्रदा अर्थात सिद्धि देने वाली तिथि हैं।
7. सप्तमी (सातम) के देवता हैं चित्रभानु। सप्तमी तिथि को चित्रभानु नाम वाले भगवान सूर्यनारायण का पूजन करने से सभी प्रकार से रक्षा होती है। यह मित्रवत, मित्रा तिथि हैं।
8. अष्टमी (आठम) के देवता हैं रुद्र। इस तिथि को भगवान सदाशिव या रुद्रदेव की पूजा करने से प्रचुर ज्ञान तथा अत्यधिक कांति की प्राप्ति होती है। इससे बंधन से मुक्त भी मिलती है। यह द्वंदवमयी तिथि हैं।
9. नवमी (नौमी) की देवी हैं दुर्गा। इस तिधि में जगतजननी त्रिदेवजननी माता दुर्गा की पूजा करने से मनुष्य इच्छापूर्वक संसार-सागर को पार कर लेता है तथा हर क्षेत्र में सदा विजयी प्राप्त करता है। यह उग्र अर्थात आक्रामकता देने वाली तिथि हैं।
10. दशमी (दसम) के देवता हैं यमराज। इस तिथि में यम की पूजा करने से नरक और मृत्यु का भय नहीं रहता है। यह सौम्य अर्थात शांत तिथि हैं।
11.एकादशी (ग्यारस) के देवता हैं विश्वेदेवगणों और विष्णु। इस तिथि को विश्वेदेवों पूजा करने से संतान, धन-धान्य और भूमि आदि की प्राप्ति होती है। यह आनन्दप्रदा अर्थात सुख देने वाली तिथि हैं।
12. द्वादशी (बारस) के देवता हैं विष्णु। इस तिथि को भगवान विष्णु की पूजा करने से मनुष्य सदा विजयी होकर समस्त लोक में पूज्य हो जाता है। यह यशप्रदा तिथि हैं।
13. त्रयोदशी (तेरस) के देवता हैं कामदेव और शिव। त्रयोदशी में कामदेव की पूजा करने से मनुष्य उत्तम भार्या प्राप्त करता है तथा उसकी सभी कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। यह जयप्रदा अर्थात विजय देने वाली तिथि हैं।
14. चतुर्दशी (चौदस) के देवता हैं शंकर। इस तिथि में भगवान शंकर की पूजा करने से मनुष्य समस्त ऐश्वर्यों को प्राप्त कर बहुत से पुत्रों एवं प्रभूत धन से संपन्न हो जाता है। यह उग्र अर्थात आक्रामकता देने वाली तिथि हैं।
15. पूर्णिमा (पूरनमासी) के देवता हैं चंद्रमा। इस तिथि में चंद्रदेव की पूजा करने से मनुष्य का सभी जगह आधिपत्य हो जाता है। यह सौम्या तिथि हैं।
कहते हैं कि कृष्ण पक्ष में देवता इन सभी तिथियों में शनै: शनै: चंद्रकलाओं का पान कर लेते हैं। वे शुक्ल पक्ष में पुन: सोलहवीं कला के साथ उदित होती हैं। वह अकेली षोडशी कला सदैव अक्षय रहती है। उसमें साक्षात सूर्य का निवास रहता है। इस प्रकार तिथियों का क्षय और वृद्धि स्वयं सूर्यनारायण ही करते हैं। अत: वे सबके स्वामी माने जाते हैं।