सविता हलप्पानवर : कौन है गुनहगार, कानून या धर्म
कानून के हाथों हत्या
डॉ.सविता हलप्पानवर, उम्र 31 वर्ष, व्यवसाय-डेंटिस्ट, स्थान -आयरलैंड, चर्चा में क्यों-असमय मौत का शिकार, क्यों हुई शिकार- डॉ. सविता को 17 सप्ताह का गर्भ था, लेकिन उसी गर्भ से उनकी जान को खतरा बन आया, ऐसे में उसकी जान बचाने के लिए जरूरी था कि उसका तुरंत गर्भपात किया जाए। पर चूंकि कैथोलिक कानून से बंधे आयरलैंड में इस बात की इजाजत नहीं है कि धड़कते भ्रूण के रहते गर्भपात किया जाए इसलिए वहां के डॉक्टरों ने सविता का गर्भपात करने से साफ इंकार कर दिया। गौरतलब है कि कैथोलिक चर्च के नियम-कानून गर्भपात की इजाजत नहीं देते और आयरलैंड भी इसी कानून को मानता है। सविता तड़पती रही, उसके शरीर में जहर फैलता रहा, 'हिप्पोक्रेटिक ओथ' के बाद भी डॉक्टर दर्शक बने रहे। सविता उनकी आंखों के सामने मौत के मुंह में जाती रही लेकिन वे नहीं पसीजे। खड़े रहे, देखते रहे मौत का तमाशा और सविता को मिली एक ऐसी मौत जो हर किसी को सन्न कर देने वाली है। यह कैसा कानून - आखिर यह कैसे संभव है कि सामने ही कोई महिला तड़प-तड़प कर दम तोड़ दे और जान बचाने में सक्षम डॉक्टर सिर्फ इसलिए कुछ ना करे कि उनके देश का कानून उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं देता है? क्या इंसानियत और मानवता, दया, नैतिकता और सहानुभूति के कानून से बढ़कर हो सकता है किसी देश का कानून? भगवान का दूसरा रूप या यमराज का- डॉक्टर जो काम करते हैं उसे पेशा, धंधा, व्यापार या व्यवसाय नहीं कहा जाता बल्कि सम्मानजनक सेवा कार्य कहा जाता है क्योंकि यह सेवा सीधे-सीधे लोगों की जिंदगियों से जुड़ी होती है।भगवान के बाद दूसरा दर्जा इसी सेवा करने वाले व्यक्ति को दिया जाता है, जिसे हम डॉक्टर कहते हैं। एक विश्वास का हाथ, एक उम्मीद की किरण, एक ढांढस बंधाता साथ और आकुलता की हद तक जो हमारा सर्वस्व होता है, जब हमारा कोई उसकी निगरानी में होता है। हर पल हमारी नजरें उसके चेहरे के भाव पढ़ रही होती है जब कोई अपना, जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रहा होता है। डॉक्टर का एक-एक शब्द हमारे लिए संजीवनी का काम करता है और कभी-कभी एक ही शब्द जहर के समान हो जाता है। सोचिए जरा कि मानवता का पवित्र कार्य कर रहे डॉक्टर मात्र कानून के नाम पर किसी को मरने के लिए छोड़ दे और जब वह मर जाए तो अपना सारा दोष कानून के हवाले कर खुद बरी हो जाए, यह कितना विचित्र है? किसी भी व्यवसाय के प्रति व्यक्ति की एक नैतिक जवाबदेही होती है। चिकित्सक का पहला धर्म मरीज की जान बचाना होता है चाहे फिर इसके लिए उसे कुछ नियमों और सिद्धांतों की बलि ही क्यों ना देना पड़े। अगर आपने अपने व्यवसाय की गरिमा और प्रथम अनिवार्यता को परे रखकर आंखों के सामने मौत होने दी तो जाहिर है फिर आपने कितने ही कानूनों का पालन कर लिया हो लेकिन सामाजिक तौर पर आपका सम्मान कहां बचता है? जिस काम के लिए आप मरीज से पैसा 'वसूलते' हैं वह काम सिर्फ और सिर्फ मरीज की जान को बचाना और उसे सुरक्षा देना ही होता है। उसे खतरे के घेरे से बाहर निकालना होता है। यह कैसा पेशा हुआ कि मरीज को खतरे में देखकर उसकी जान बचाने के बजाय और अधिक जोखिम में डालकर अपनी विवशता बता कर अंतत: मौत के दरवाजे ले जा कर खड़ा कर दे?