कहां जाए बे-वतन लोग... हिटलर से बचने के लिए यूक्रेन आए थे, अब पुतिन से बचने के लिए फिर से जर्मनी जा रहे
युद्ध यूक्रेन और रूस के बीच हो रहा है, और इसकी त्रासदी आम लोगों को भुगतना पड रही है। ऐसे आम लोग अब सोच रहे हैं कि उनका शायद कोई वतन नहीं है।
दरअसल, रूस के हमले के बाद कई लोग यूक्रेन से दूसरे देशों में पलायन कर रहे हैं, कुछ लोग ऐसे हैं जो जर्मनी जा रहे हैं।
लेकिन जानकर हैरानी होगी कि यूक्रेन से जर्मनी जा रहे यहूदियों में कई बुजुर्ग ऐसे भी हैं, जो हिटलर से बचने के लिए जर्मनी से भागकर यूक्रेन आए थे। लेकिन 6-7 दशकों में इतिहास ने ऐसी करवट ली कि वो अब रूसी हमले से बचने के लिए वापस जर्मनी जा रहे हैं।
यह इन आम लोगों के लिए एक तरह से त्रासदी होगी कि उनके अपने पूरे जीवन काल में कोई एक वतन नहीं मिला। अगर इन लोगों को बेवतन कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा।
मीडिया रिपोर्ट में सामने आया कि यूक्रेन से जर्मनी आई एक यहूदी बुजुर्ग महिलाओं को ओल्ड एज होम में रखा गया है। ये महिलाएं अब एक नए जर्मनी को देख रही हैं। अब ये वो जर्मनी कभी नहीं रहा जहां किसी जमाने में लाखों यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
ऐसे कई परिवार हैं जो जर्मनी में हिटलर के अत्याचार से भागकर यूक्रेन आए थे, इनमें से कई मर चुके हैं, लेकिन जो अब भी बुजुर्ग जिंदा हैं वे पुतिन के हमले के बाद यूक्रेन से भागकर फिर से जर्मनी जाने के लिए मजबूर हैं।
बता दें कि यूक्रेन में यहूदियों की अच्छी-खासी आबादी है। राष्ट्रपति व्लादिमिर जेलेंस्की भी यहूदी हैं। लेकिन अब रूसी हमले के बाद वहां के यहूदी खतरे में आ गए हैं। वे भागकर जर्मनी जा रहे हैं।
जिसने देखी थी हिटलर की तबाही
यूक्रेन से भागकर जर्मनी के लिए पलायन करने वाले यहूदियों में कई लोग ऐसे भी हैं। जिन्होंने हिटलर के दौर और उसकी तबाही को देखा है। हिटलर ने तब लाखों यहूदियों की हत्या करवा दी थी, लेकिन अब वो जर्मनी नहीं रहा, यहां अब यूक्रेन से जाने वाले यहूदी शांतिपूर्ण जीवन की उम्मीद के साथ जर्मनी जा रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक यूक्रेन में 10 हजार के करीब ऐसे यहूदी बुजुर्ग हैं जिन्होंने हिटलर के हमलों को झेला है।
क्या अपने पाप धो रहा जर्मनी?
ऐसा लगता है कि यहूदियों पर अत्याचार करने वाला नया जर्मनी अब अपने पापों का प्रायश्चित कर रहा है। जो यहूदी यूक्रेन से जा रहे हैं, उनका वहां स्वागत किया जा रहा है। जर्मनी ने अब तक 3 लाख से ज्यादा यूक्रेनी रिफ्यूजियों को शरण दी है। इसके लिए जर्मनी में विशेष इंतजाम किए गए हैं। उम्रदराज बुजुर्गों का खास ध्यान रखा जा रहा है।
हालांकि यूक्रेन से जाने वाला हर इतना भाग्यशाली नहीं है। कुछ ऐसे भी हैं जो समय रहते युद्ध क्षेत्र से निकलने में नाकाम रहे और रूसी हमले में मारे गए। 96 साल के बोरिस रोमनचेंको ऐसे शख्स हैं जो विश्व युद्ध में हिटलर के यातना शिविरों से जिंदा लौट आए थे। लेकिन पिछले दिनों खारकीव में रूसी हवाई हमले में उनकी जान चली गई।