याद ही उम्मीदों का सिरहाना है
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विनय मिश्र अगर है ज़िंदगी तो ज़िंदगी बोलती जाएउदासी और तन्हाई में कोई गीत तो गाए ख़्याली आँच पर रक्खी हुई वो केतली खोलोकि जिससे भाप के परचम उड़ें, माहौल गरमाएमुझे मु्स्कान के बदले मिलीं आँसू की सौगातें मेरे दिल ने ये चाहा था कहीं से रोशनी आएकहाँ मज़बूतियों का शोर था बाज़ार से घर तककहाँ कमज़ोरियाँ इतनी कि सन्नाटा भी गिर जाएन आई नींद तो फिर कैसे आते उसकी बातों मेंदिखाने को तो रातों ने भी अवसर ख़ूब दिखलाए हवा के ज़ोर के आगे बहुत चंचल है पानी भीकभी मौसम का रुख देखे, कभी लहरों में आ जाए।तुम्हारी याद ही अपनी उम्मीदों का सिरहाना हैसँभाला है इसी ने जब भी दिल के जख़्म गहराए।