तुम, संध्या के रंगों में आती
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लावण्यामेरी प्रेरणातुम, संध्या के रंगों में आतीऔर आकर मंडरातीफिर बुलबुल बन, मन के बन को,कर देती आलोड़ित!फिर पुकार बिरहा के बैन,नशीले, बुलबुल सी तूमेरे दिल को तड़पा जातीअरी बुलबुल जो तू, मैं होती,बनी बावरी, जब भी तू आतीमेरे जीवन के सूने आंगन को,भर दे जाती री सुहाग-राग!