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चाँद प्यासा इक तरफ
विलास पंडित 'मुसाफिर' चाँदनी है इक तरफ और चाँद प्यासा इक तरफइक तरफ मजबूरियाँ हैं और नशा सा इक तरफ।।आईना-दर-आईना चेहरे बदलते हैं यहाँहर तरफ रोशन है दुनिया, मैं बुझा सा इक तरफ।।देखिए तो आदमी की हर अदा को गौर सेज़हर सा तो इक तरफ है और दवा सा इक तरफ।।दो जवाँ हमउम्र साथी और नसीबों का चलनइक तरफ आजादियाँ हैं दायरा सा इक तरफ।।सिर्फ इक दीवार का ही फासला तो है मगरएक जानिब हर खुशी है, ज़लज़ला सा इक तरफ।।