ना जाने क्या था उस लोहे के घिसे-पीटे छल्ले में कि कभी नहीं फेंक सकी मैं उसे, दुनिया भर की हर चीज बदलती रही वक्त के साथ, अनामिका अँगुली से उतरकर गले के काले धागे में छुपता रहा धागे से टूट कर तकिए के नीचे बिसुरता रहा तकिए से गिरकर अलमारी के कोने में सजा रहा आराम से, वहाँ से हिला तो पर्स के चोर पॉकेट में जमा रहा कई दिनों तक, इन दिनों फिर आ गया है अनामिका में, क्यों नहीं त्याग सकी आज तक मैं उस सँवलाए काले भद्दे छल्ले को,
कभी किसी जन्म में मिले अगर फिर से तो बताऊँगी कि उस छल्ले ने कैसे कच्ची उम्र का सौंधापन खिलाया था मेरी मन-बगिया में,
उस छल्ले ने कैसे पहली बार मेरी अँगुलियों में जगाया था गुलाबी अहसास को,
और बताऊँगी कि कैसे पहली बार मेरे होंठों ने किसी निर्जीव-सी चीज को चूमा था, पहली बार।
बताऊँगी कि कैसे, पहली बार अपने कान की लवें दर्पण में गुलाल होते हुए देखी थी मैंने,
और जाना था कि क्या होती है अँगुलियों से अँगुलियों के बीच स्पर्श की महीन सुगंधित भाषा,
कितने बेशकीमती रेशमी अहसास गुँथे हैं इस एक जर्जर होते छल्ले में,
कभी नहीं समझ सकोगे तुम क्योंकि तुमने प्यार को इस छल्ले से भी ज्यादा बदशक्ल बना फेंका था, जबकि मैंने बदशक्ल छल्ले में जिंदा रखा है आज भी खुशनुमा पहले-पहले खिले कच्चे-पक्के लम्हों को, जैसे कोई बच्चा सहेजता है छोटी-सी शीशी में रंगीन काँच के मनकों को।
यह तुम्हारे प्यार की याद नहीं है बल्कि याद है प्यार के उस बहते अहसास की जिसने एक छल्ले के रूप में मुझे अनमोल जिंदगी दी है। तुमसे सुंदर, तुमसे बेहतर।