केंद्र-राज्य संबंध और लोकतंत्र
गणतंत्र दिवस विशेष
दुनियाभर में लोकतंत्र के उदय के साथ राजनीति में केंद्र-राज्य संबंधों को एक नई परिभाषा मिली। केंद्र-राज्य संबंध से आशय है किसी लोकतांत्रिक राष्ट्र में केंद्र और उसकी इकाइयों के बीच का आपसी संबंध! भारत में भी आजादी के बाद केंद्र और राज्यों के बीच का मसला बेहद संवेदनशील मामला रहा है। आपसी समझ पर टिके केंद्र-राज्य संबंध संविधान के अनुच्छेद 256 व 257 में केंद्र को शक्तिशाली बनाया गया है।अनुच्छेद 256 : इसके अनुसार राज्य की कार्यपालिका शक्तियां इस तरह प्रयोग में लाई जाएं कि संसद द्वारा पारित विधियों का पालन हो सके। इस तरह संसद की विधि के अधीन विधियों का पालन हो सके। इस तरह संसद की विधि के अधीन राज्य कार्यपालिका शक्ति आ गई है। केंद्र राज्य को ऐसे निर्देश दे सकता है, जो इस संबंध में आवश्यक हो।अनुच्छेद 257 : कुछ मामलों में राज्य पर केंद्र नियंत्रण की बात करता है। राज्य कार्यपालिका शक्ति इस तरह प्रयोग ली जाए कि वह संघ कार्यपालिका से संघर्ष न करे। केंद्र अनेक क्षेत्रों में राज्य को उसकी कार्यपालिका शक्ति कैसे प्रयोग करें, इस पर निर्देश दे सकता है। यदि राज्य निर्देश पालन में असफल रहा तो राज्य मे राष्ट्रपति शासन तक लगाया जा सकता है।अनुच्छेद 258 (2) : इसके अनुसार संसद राज्य प्रशासनिक तंत्र को उस तरह प्रयोग लेने की शक्ति देती है जिनसे संघीय विधि पालित हो। केंद्र को अधिकार है कि वह राज्य में बिना उसकी मर्जी के सेना, केंद्रीय सुरक्षा बल तैनात कर सकता है। अखिल भारतीय सेवाएँ भी केंद्र को राज्य प्रशासन पर नियंत्रण पाने में सहायता देती है।अनुच्छेद 262 : यह संसद को अधिकार देता है कि वह अंतरराज्यीय जल विवादों को सुलझाने के लिए विधि का निर्माण करे। संसद ने अंतरराज्य जल विवाद तथा बोर्ड एक्ट पारित किए थे। अनुच्छेद 263 : यह राष्ट्रपति को शक्ति देता है कि वह अंतरराज्य परिषद स्थापित करे ताकि राज्यों के मध्य उत्पन्न मतभिन्नता सुलझाई जा सके। भारतीय संविधान में भारत को राज्यों का संघ कहा गया है। संविधान में विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा केंद्र और राज्यों के बीच किया है। संविधान की 7वीं अनुसूची में केंद्र एवं राज्यों के बीच विधायी विषयों यानी कानून बनाने के अधिकार के बँटवारे का जिक्र किया गया है। संविधान में इन अधिकारों को तीन सूचियों में बांटा गया है।केंद्रीय सूची : इस सूची में शामिल किसी भी विषय पर कानून बनाने का विशेष अधिकार संसद यानी केंद्र सरकार के पास है। इस सूची में फिलहाल 99 विषय हैं। इसमें राष्ट्रीय महत्व के विषय शामिल किए गए हैं जैसे रक्षा, बैंकिंग, विदेश मामले, मुद्रा, आणविक ऊर्जा, बीमा, संचार, केंद्र-राज्य व्यापार एवं वाणिज्य, जनगणना आदि।राज्य सूची : इस सूची के तहत आने वाले विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य विधानसभा यानी राज्य सरकारों के पास है। इस सूची में 61 विषय हैं जैसे कानून-व्यवस्था, सार्वजनिक व्यवस्था, जन स्वास्थ्य, कृषि, जेल, स्थानीय शासन जैसे स्थानीय महत्व के विषयों को शामिल किया गया है। समवर्ती सूची : इस सूची के तहत आने वाले विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य सरकार दोनों के पास है। इस सूची में इस समय 52 विषय हैं जैसे आपराधिक कानून प्रक्रिया, सिविल प्रक्रिया, विवाह एवं तलाक, बिजली, श्रम एवं कल्याण, आर्थिक एवं सामाजिक योजना आदि। कोई राज्य सरकार केंद्र द्वारा बनाए गए कानूनों व नीति के विरोध में या फिर उसके विपरीत कानून नहीं बना सकती।गौरतलब है कि 42वें संविधान संशोधन के बाद पाँच विषयों शिक्षा, वन, नाप-तौल, वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण और न्याय का प्रशासन एवं हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट सहित सभी न्यायालयों के गठन को राज्य सूची से निकालकर समवर्ती सूची में शामिल किया गया है। यदि समवर्ती सूची के किसी विषय को लेकर केंद्रीय कानून एवं राज्य कानून में संघर्ष की स्थिति आ जाए तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून प्रभावी होगा। हालांकि, यदि राज्य सरकार द्वारा बनाया गया कानून राष्ट्रपति के पास सिफारिश के लिए गया है और उसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाती है तो संबंधित राज्य में वही कानून लागू होगा, लेकिन केंद्र सरकार भी इस पर कानून बना सकती है।