शुक्रवार, 29 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. पौराणिक कथाएं
  4. Pithori Amavasya Katha 2022
Written By

पिठोरी अमावस्या की प्रामाणिक कथा, यहां पढ़ें...

पिठोरी अमावस्या की प्रामाणिक कथा, यहां पढ़ें... - Pithori Amavasya Katha 2022
27 अगस्त को पिठोरी अमावस्या (Pithori Amavasya) मनाई जा रही हैं। इस दिन आटा गूंथ कर मां दुर्गा सहित 64 देवियों की आटे से मूर्ति बनाकर महिलाएं व्रत रखकर उनका पूजन करती हैं। इस दिन आटे से बनी देवियों की पूजा होने के कारण ही यह दिन पिठोरी अमावस्या के नाम से जनमानस में प्रचलित हैं।

पौराणिक शास्त्रों में भाद्रपद अमावस्या के दिन कुशा इकट्ठी करने की मान्यता है। इसे पिठौरा, कुशोत्पाटनी, कुशग्रहणी अमावस्या आदि नामों से भी जाना जाता है। 
 
इस दिन सुहागिनें व्रत रखकर भगवान भोलेनाथ और देवी दुर्गा का पूजन करती है। यह दिन पितरों की तृप्ति, पिंड दान, तर्पण और वंश वृद्धि के लिए अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।

अमावस्या की शाम पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीया लगाने और पितरों का स्मरण और शिव जी और शनि देव की आराधना करने से जीवन में चारों तरफ से के लाभ ही लाभ मिलता है। 
 
पिठोरी अमावस्या की कथा : Pithori Amavasya Vrat Katha
 
इस अमावस्या की व्रत कथा के अनुसार बहुत समय पहले की बात है। एक परिवार में सात भाई थे। सभी का विवाह हो चुका था। सबके छोटे-छोटे बच्चे भी थे। परिवार की सलामती के लिए सातों भाइयों की पत्नी पिठोरी अमावस्या का व्रत रखना चाहती थीं। लेकिन जब पहले साल बड़े भाई की पत्नी ने व्रत रखा तो उनके बेटे की मृत्यु हो गई। दूसरे साल फिर एक और बेटे की मृत्यु हो गई। सातवें साल भी ऐसा ही हुआ।
 
तब बड़े भाई की पत्नी ने इस बार अपने मृत पुत्र का शव कहीं छिपा दिया। गांव की कुल देवी मां पोलेरम्मा उस समय गांव के लोगों की रक्षा के लिए पहरा दे रही थीं। उन्होंने जब इस दु:खी मां को देखा तो वजह जाननी चाही। तब बड़े भाई की पत्नी ने सारा किस्सा देवी पोलेरम्मा को सुनाया, तो देवी को उस पर दया आ गई।

 
देवी पोलेरम्मा ने उस दु:खी मां से कहा कि, वह उन सभी स्थानों पर हल्दी छिड़क दें, जहां-जहां उनके बेटों का अंतिम संस्कार हुआ है। तब बड़े भाई की पत्नी ने ऐसा ही किया। जब वह घर लौटी तो सातों पुत्र को जीवित देख, उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। तभी से उस गांव की हर माता अपने संतान की लंबी उम्र की कामना से पिठोरी अमावस्या का व्रत रखने लगीं। आज के दिन यह कथा सुनीं और पढ़ी जाती है। 
 
उत्तर भारत में यह पर्व पिठोरी अमावस्या के नाम से माता दुर्गा की आराधना करके मनाया जाता है, वही दक्षिण भारत में यह त्योहार पोलाला अमावस्या के रूप में मां पोलेरम्मा जिन्हें मां दुर्गा का ही एक रूप माना जाता है, कि पूजा-अर्चना के साथ मनाने की परंपरा है।