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Last Updated : मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022 (08:03 IST)

माघी पूर्णिमा का क्यों है महत्व, पौराणिक कथा देती है खुशियों का आशीर्वाद

माघी पूर्णिमा का क्यों है महत्व, पौराणिक कथा देती है खुशियों का आशीर्वाद - Magh Purnima Vrat Katha
Magha Purnima 2022 : 16 फरवरी 2022 को है माघ पूर्णिमा। यह माघ मास का अंतिम दिन होता है इसके बाद फाल्गुन मास लग जाएगा। आओ जानते हैं कि क्या है माघ पूर्णिमा का महत्व और पढ़ते हैं इसकी कथा।
 
 
माघ पूर्णिमा का महत्व : माघी पूर्णिमा के दिन संगम पर माघ-मेले में जाने और स्नान करने का विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार माघ माह में पूर्णिमा के दिन देवता धरती पर आते हैं और गंगा में स्नान करते हैं। इस शुभ संयोग में दान-पुण्य और मंत्र से करें उन्हें प्रसन्न किया जाता है। पुराणों के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन स्वयं भगवान श्री विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं। इस दिन गंगा स्नान करने से विष्णु की कृपा मिलती है तथा धन-संपदा लक्ष्मी, यश, सुख-सौभाग्य तथा उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। माघी पूर्णिमा पर गंगा तथा अन्य पवित्र नदियों तथा सरोवर तट पर स्नान करके तिलांजलि देना चाहिए तथा पितृ तर्पण करना चाहिए। इस दिन दान-दक्षिणा का बत्तीस गुना फल मिलता है। इसलिए इसे माघी पूर्णिमा के अलावा बत्तिसी पूर्णिमा भी कहते हैं। दान करने से सभी तरह के संकट मिट जाते हैं और जातक मोक्ष को प्राप्त करता है। पूर्णिमा पर माता लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करना चाहिए। इससे घर में धन समृद्धि में बढ़ोतरी होती है। इस दिन देवी लक्ष्मी जी को पीले तथा लाल रंग सामग्री अर्पित करने से वे प्रसन्न होती हैं। 
 
प्रयागे माघमासे तुत्र्यहं स्नानस्य यद्रवेत्।
दशाश्वमेघसहस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।।
प्रयाग में माघ मास के अन्दर तीन बार स्नान करने से जो फल होता है वह फल पृथ्वी में दस हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता है।
 
माघे निमग्नाः सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।'
पद्मपुराण में माघ मास के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि पूजा करने से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है। इसलिए सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए।
 
 
माघ पूर्णिमा व्रत की पौराणिक कथा : पौराणिक कथा के मुताबिक नर्मदा नदी के तट पर शुभव्रत नामक विद्वान ब्राह्मण रहते थे, लेकिन वे काफी लालची थे। इनका लक्ष्य किसी भी तरह धन कमाना था और ऐसा करते-करते ये समय से पूर्व ही वृद्ध दिखने लगे और कई बीमारियों की चपेट में आ गए। इस बीच उन्हें अंर्तज्ञान हुआ कि उन्होंने पूरा जीवन तो धन कमाने में बीता दिया, अब जीवन का उद्धार कैसे होगा।
 
 
इसी क्रम में उन्हें माघ माह में स्नान का महत्व बताने वाला एक श्लोक याद आया। इसके बाद स्नान का संकल्प लेकर ब्राह्मण नर्मदा नदी में स्थान करने लगे। करीब 9 दिनों तक स्नान के बाद उऩकी तबियत ज्यादा खराब हो गई और मृत्यु का समय आ गया। वे सोच रहे थे कि जीवन में कोई सत्कार्य न करने के कारण उन्हें नरक का दुख भोगना होगा, लेकिन वास्तव में मात्र 9 दिनों तक माघ मास में स्नान के कारण उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।
 
 
पूर्णिमा व्रत की कथा :
 
कांतिका नगर में धनेश्वर नाम के ब्राह्मण अपना जीवन भिक्षा मांगकर अपना जीवन निर्वाह था। उसकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन उसकी पत्नी नगर में भिक्षा मांगने गई, परंतु सभी ने उसे बांझ कहकर भिक्षा देने से इनकार कर दिया। फिर किसी ने ब्राह्मण दंपत्ति को 16 दिन तक मां काली की पूजा करने को कहा। उन्होंने विधिवत पूजा करके आराधना की और तब उनकी आराधना से प्रसन्न होकर मां काली ने दोनों को संतान प्राप्ति का वरदान दिया और कहा कि अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम दीपक जलाओ। इस तरह हर पूर्णिमा के दिन तक दीपक बढ़ाते जाना है जब तक कम से कम 32 दीपक न हो जाएं।
 
 
इसके बाद ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को पूजा के लिए पेड़ से आम का कच्चा फल तोड़कर दिया और उसकी पत्नी ने पूजा की और फलस्वरूप वह गर्भवती हो गई। एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम देवदास रखा। देवदास जब बड़ा हुआ तो उसे अपने मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा। काशी में धोखे से देवदास का विवाह हो गया। देवदास ने कहा कि वह अल्पायु है परंतु फिर भी जबरन उसका विवाह करवा दिया गया। कुछ समय बाद काल उसके प्राण लेने आया लेकिन ब्राह्मण दंपत्ति ने पूर्णिमा का व्रत रखा था, इसलिए काल उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाया। तभी से कहा जाता है कि पूर्णिमा के दिन व्रत करने से संकट से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं।