Kaal Bhairav katha kahani: भैरवाष्टमी पर पढ़ें भगवान कालभैरव की कथा कहानी
कालभैरव भगवान शिव के एक रौद्र रूप माने जाते हैं, जो समय के देवता हैं और कष्टों और विघ्नों को दूर करने वाले माने जाते हैं। खासकर कालभैरव अष्टमी और शनिवार के दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है। कालभैरव अष्टमी या भैरव जयंती के दिन यह कथा पढ़ने का विशेष महत्व है।
भैरव जयंती की कथा के अनुसार एक बार की बात है, जब ब्रह्मा, विष्णु, महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चली। इस बात पर बहस बढ़ गई तो सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई। सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है?
सभी ने अपने अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा, लेकिन उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया परंतु ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए। इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और इसे शिवजी ने अपना अपमान समझा।
शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया। इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। इनके एक हाथ में छड़ी है, इस अवतार को महाकालेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है।
जब ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी, तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए। भैरव बाबा को उनके पापों के कारण दंड मिला इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा। इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता हैं। इसका एक नाम दंडपाणी पड़ा था। इस प्रकार भैरव जयंती को पाप का दंड मिलने वाला दिवस भी माना जाता है। इस प्रकार काल भैरव ने सभी देवताओं से अपनी शक्ति का परिचय दिया।
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