बुध त्रयोदशी प्रदोष व्रत की कथा क्या है?
प्रदोष अथवा त्रयोदशी का व्रत मनुष्य को संतोषी व सुखी बनाता है। वार के अनुसार जो प्रदोष व्रत किया जाता है, वैसे ही उसका फल प्राप्त होता है। सूत जी के कथनानुसार त्रयोदशी का व्रत करने वाले को सौ गाय-दान करने का फल प्राप्त होता है।
प्रस्तुत है बुध त्रयोदशी प्रदोष व्रत की प्रचलित कथा-
श्री सूत जी ने कहा- 'बुध त्रयोदशी प्रदोष व्रत करने से सर्व कामनाएं पूर्ण होती हैं। इस व्रत में हरी वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। शंकर शिव जी की आराधना धूप, बेल पत्र आदि से करनी चाहिए।
बुध प्रदोष व्रत की कथा के अनुसार एक पुरुष का नया-नया विवाह हुआ। विवाह के 2 दिनों बाद उसकी पत्नी मायके चली गई। कुछ दिनों के बाद वह पुरुष पत्नी को लेने उसके यहां गया। बुधवार को जब वह पत्नी के साथ लौटने लगा तो ससुराल पक्ष ने उसे रोकने का प्रयत्न किया कि विदाई के लिए बुधवार शुभ नहीं होता। लेकिन वह नहीं माना और पत्नी के साथ चल पड़ा।
नगर के बाहर पहुंचने पर पत्नी को प्यास लगी।
पुरुष लोटा लेकर पानी की तलाश में चल पड़ा। पत्नी एक पेड़ के नीचे बैठ गई। थोड़ी देर बाद पुरुष पानी लेकर वापस लौटा, तब उसने देखा कि उसकी पत्नी किसी के साथ हंस-हंसकर बातें कर रही है और उसके लोटे से पानी पी रही है। उसको क्रोध आ गया।
वह निकट पहुंचा तो उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा, क्योंकि उस आदमी की सूरत उसी की भांति थी। पत्नी भी सोच में पड़ गई। दोनों पुरुष झगड़ने लगे। भीड़ इकट्ठी हो गई। सिपाही आ गए। हमशक्ल आदमियों को देख वे भी आश्चर्य में पड़ गए।
उन्होंने स्त्री से पूछा 'उसका पति कौन है?' वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। तब वह पुरुष शंकर भगवान से प्रार्थना करने लगा- 'हे भगवान! हमारी रक्षा करें। मुझसे बड़ी भूल हुई कि मैंने सास-ससुर की बात नहीं मानी और बुधवार को पत्नी को विदा करा लिया। मैं भविष्य में ऐसा कदापि नहीं करूंगा।'
जैसे ही उसकी प्रार्थना पूरी हुई, दूसरा पुरुष अंतर्ध्यान हो गया। पति-पत्नी सकुशल अपने घर पहुंच गए। उस दिन के बाद से पति-पत्नी नियमपूर्वक बुध त्रयोदशी प्रदोष का व्रत रखने लगे। अत: बुध त्रयोदशी व्रत हर मनुष्य को इसलिए भी करना चाहिए कि इस से भगवान भोलेनाथ के साथ गजानन और माता पार्वती का भी आशीर्वाद मिलता है।