जब यक्ष बन ब्रह्मा ने ली परीक्षा...
जब चूर-चूर हो गया अग्नि, वायु और इंद्र का घमंड
एक बार देवताओं और दानवों में घोर युद्ध छिड़ गया। अंत में जीत देवताओं की हुई। अग्नि, वायु और इंद्र अपने आपको दूसरे देवताओं से अधिक पराक्रमी और शक्तिशाली मानने लगे। उनको गर्व हो गया कि इस जीत के कारण वे ही हैं। सर्वसमर्थ ब्रह्म ने उनके इस गर्व को ताड़ लिया और उसने अपनी शक्ति को देवताओं के अंदर से खींच लिया।उनके सामने अब ब्रह्म एक यक्ष के रूप में खड़ा था। देवताओं की समझ में न आया कि यह यक्ष कौन है। उन्होंने अग्नि से कहा- अग्निदेव! आप जाकर पता लगाइए कि यह कौन है?
अग्नि दौड़कर यक्ष के सामने पहुंचा। यक्ष के पूछने पर उसने अपना परिचय दिया कि मैं अग्नि हूं।तेरी क्या शक्ति है? तू क्या कर सकता है? यक्ष ने पूछा।पृथ्वी पर जो कुछ भी है उसे जलाकर मैं भस्म कर सकता हूं।अग्नि के सामने यक्ष ने एक तिनका रख दिया और कहा- अच्छा तो इसे जला।अग्नि ने अपनी सारी शक्ति लगा दी उसे जलाने में, पर उसे वह जला नहीं सका और वह अपना-सा मुंह लिए लौट आया। यक्ष का पता लगाना उसके लिए संभव न हुआ।
तब देवताओं ने वायु से कहा- वायुदेव! आप पता लगाकर आइए कि यह यक्ष कौन है, वायु वहां पहुंचा।तू कौन है? यक्ष ने पूछा।मैं वायु हूं।तू क्या कर सकता है?मैं चाहे जिस वस्तु को उड़ाकर ले जा सकता हूं -बड़े-बड़े पहाड़ों को भी।अच्छा, तो इस तिनके को तो उड़ा।वायु ने अपना सारा बल लगा दिया, पर वह तिनका तनिक भी नहीं हिला। वायु भी निराश लौट आया बिना जाने कि वह यक्ष कौन है।