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Last Updated : गुरुवार, 6 जुलाई 2017 (11:54 IST)

यहूदियों के पवित्र स्थल पर मुसलमानों का दावा

यहूदियों के पवित्र स्थल पर मुसलमानों का दावा - yahudi temple in jerusalem
जेरूशलम या यरुशलम बहुत ही प्राचीन शहर है। इस शहर के बारे में जितना लिखा जाए, कम है। काबा, काशी, मथुरा, अयोध्या, ग्रीस, बाली, श्रीनगर, जफना, रोम, कंधहार आदि प्राचीन शहरों की तरह ही इस शहर का इतिहास भी बहुत महत्व रखता है। भूमध्य सागर और मृत सागर के बीच इसराइल की सीमा पर बसा यरुशलम एक बहुत ही शानदार शहर है। शहर की सीमा के पास दुनिया का सबसे ज्यादा नमक वाला डेड सी यानी मृत सागर है।

 
यहां एक ऐसा स्थान है जहां यहूदियों के दावे अनुसार उनका एक विशालकाय सिनेगॉग (प्रार्थना स्थल) हुआ करता था जिसे पहले रोमनों ने तोड़ा और बाद में मुसलमानों और ईसाइयों से लड़ाई में टूट गया। सिनेगॉग के नाम पर अब बस  एक पवित्र परिसर और टेम्पल की दीवार ही बची है और इसके आसपास मुसलमानों की अल अक्सा मस्जिद और डोम ऑफ द रॉक है जबकि ईसाइयों का चर्च ऑफ द होली स्कल्प्चर स्थित है। अर्थात अब यह स्थल तीन धर्मों का संगम स्थल बन गया है जिस पर तीनों की दावा करते हैं। उक्त संपूर्ण क्षेत्र को वर्तमान में हरम-अल-शरीफ कहते हैं जो कि 35 एकड़ में फैला है। इसी में तीनों धर्मों के पवित्र स्थल मौजूद हैं जहां आए दिन कुछ न कुछ विवाद होता रहता है।
 
जुलाई 2000 में कैंप डेविड समझौते के दौरान इस बात पर जोर दिया था कि इसराइल का यरुशलम के सबसे पवित्र स्थल हरम-अल-शरीफ पर नियंत्रण होना चाहिए और बस यहीं से जंग की नई शुरुआत हुई। यासिर अराफात ने इसका कड़ा विरोध किया और उनके नेतृत्व में फि‍लीस्तीनियों ने दूसरे जन आंदोलन यानी इंतेफादा की शुरुआत की।
 
इसराइल का एक हिस्सा है गाजा पट्टी और रामल्लाह, जहां फिलीस्तीनी मुस्लिम लोग रहते हैं और उन्होंने इसराइल से अलग होने के लिए विद्रोह छेड़ रखा है। ये लोग यरुशलम को इसराइल के कब्जे से मुक्त कराना चाहते हैं। इसराइली और फिलीस्तीनी या फ़लस्तीनी दोनों यरुशलम को राष्ट्रीयता का प्रतीक मानते हैं। दोनों ही इसे अपनी राजधानी बनाना चाहते हैं और इस शहर का धार्मिक महत्व ही शांति में सबसे बड़ी बाधा बन गया है। हालांकि देखा जाए तो यह तीनों ही धर्मों का पवित्र और संगम स्थल है, जहां शांति से प्रार्थना की जा सकती है।
 
कब्जे के लिए लड़ाई : इससे पहले इस स्थल पर कब्जे के लिए कई लड़ाइयां होती रही। जेहाद और क्रूसेड के दौर में सलाउद्दीन और रिचर्ड ने इस शहर पर कब्जे के लिए बहुत सारी लड़ाइयां लड़ीं। ईसाई तीर्थयात्रियों की रक्षा के लिए इसी दौरान नाइट टेम्पलर्स का गठन भी किया गया था। हिब्रू में लिखी बाइबिल में इस शहर का नाम 700 बार आता है। यहूदी और ईसाई मानते हैं कि यही धरती का केंद्र है। राजा दाऊद और सुलेमान के बाद इस स्थान पर बेबीलोनियों तथा ईरानियों का कब्जा रहा फिर इस्लाम के उदय के बाद बहुत काल तक मुसलमानों ने यहां पर राज्य किया। इस दौरान यहूदियों को इस क्षेत्र से कई दफे खदेड़ दिया गया। 
 
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इसराइल फिर से यहूदी राष्ट्र बन गया तो यरुशलम को उसकी राजधानी बनाया गया और दुनियाभर के यहूदियों को पुन: यहां बसाया गया। यहूदी दुनिया में कहीं भी हों, यरुशलम की तरफ मुंह करके ही उपासना करते हैं। मध्यपूर्व का यह प्राचीन नगर यहूदी, ईसाई और मुसलमानों का संगम स्थल है। उक्त तीनों धर्मों के लोगों के लिए इसका महत्व है इसीलिए यहां पर सभी अपना कब्जा बनाए रखना चाहते हैं।
 
सोलोमन टेम्पल : यहूदी दावे अनुसार यहां पहले विशालकाय सिनेगॉग था। सिनेगॉग अर्थात यहूदियों का पवित्र मंदिर। कहते हैं कि 937 ईपू बना यह सिनेगॉग इतना विशाल था कि इसे देखने में पूरा एक दिन लगता था, लेकिन लड़ाइयों ने इसे ध्वस्त कर दिया। माना जाता है कि इसे राजा सुलेमान ने बनवाया था। इसलिए इसे सुलेमानी टेम्पल भी कहा जाता था। अब इस स्थल के एक हिस्से को 'पवित्र परिसर' कहा जाता है। 
 
दाऊद के बेटे ही सुलेमान थे जिन्हें इसराइल का सम्राट माना जाता था। माना जाता है कि सोलोमन टेम्पल का निर्माण 10वीं शताब्‍दी ईसा पूर्व में हुआ था। मूलत: यह मंदिर हिब्रू (यहूदी) संप्रदाय से संबंधित है। पवित्र सोलोमन टेम्पल को रोमनों ने नष्ट कर दिया था। उक्त टेम्पल बाइबिल में प्रथम प्रार्थनालय के नाम से दर्ज है। चहारदीवारी से घिरे इस भव्य टेम्पल के स्थल पर ही अब यहूदियों के महत्वपूर्ण स्थल टेम्पल माउंट, पवित्र परिसर और पश्चिमी दीवार स्थित हैं और यहीं पर मुसलमानों की अल अक्सा मस्जिद, डोम ऑफ द रॉक और ईसाइयों का चर्च ऑफ द होली स्कल्प्चर स्थित है।
 
पवित्र परिसर : किलेनुमा चहारदीवारी से घिरे पवित्र परिसर में यहूदी प्रार्थना के लिए इकट्ठे होते हैं। इस परिसर की दीवार बहुत ही प्राचीन और भव्य है। यह पवित्र परिसर ओल्ड सिटी का हिस्सा है। पहाड़ी पर से इस परिसर की भव्यता देखते ही बनती है। इस परिसर के ऊपरी हिस्से में तीनों धर्मों के पवित्र स्थल हैं। उक्त पवित्र स्थल के बीच भी एक परिसर है। पहाड़ी पर से इस परिसर की भव्यता देखते ही बनती है। इस परिसर के ऊपरी हिस्से में तीनों धर्मों के पवित्र स्थल हैं। उक्त पवित्र स्थल के बीच भी एक परिसर है। 
 
दीवार के पास तीनों ही धर्मों के स्थल हैं। यहां एक प्राचीन पर्वत है जिसका नाम जैतून है। इस पर्वत से यरुशलम का खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है। इस पर्वत की ढलानों पर बहुत-सी प्राचीन कब्रें हैं। यरुशलम चारों तरफ से पर्वतों और घाटियों वाला इलाका नजर आता है।
 
पैगंबर से जुड़ा डोम ऑफ द रॉक : टेम्पल माउंट को ही डोम ऑफ द रॉक कहा जाता है। मुसलमानों की आस्था है कि डोम ऑफ द रॉक ही वह स्थान है, जहां से पैगंबर मुहम्मद साहब को नमाज के लिए पहली बार हिदायत मिली थी। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि डोम ऑद द रॉक टेम्पल माउंट और अल अक्सा मस्जिद के बीच है। दरअसल, यहां एक चट्टान पर गुंबद बना हुआ है और माना जाता है कि यहीं से पैगम्बर मोहम्मद जन्नत गए थे। पैगम्बर मोहम्मद से जुड़े होने के कारण यह मुसलमानों का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है।
 
अल अक्सा मस्जिद : यरुशलम की अल अक्सा मस्जिद को 'अलहरम-अलशरीफ' के नाम से भी जानते हैं। मुसलमान इसे तीसरा सबसे पवित्र स्थल मानते हैं। उनका विश्वास है कि यहीं से हजरत मुहम्मद जन्नत की तरफ गए थे और अल्लाह का आदेश लेकर पृथ्वी पर लौटे थे। इस मस्जिद के पीछे की दीवार ही पश्चिम की दीवार कहलाती है, जहां नीचे बड़ा-सा परिसर है। इसके अलावा मुसलमानों के और भी पवित्र स्थल हैं, जैसे कुव्‍वत अल सकारा, मुसाला मरवान तथा गुम्बदे अल-सख़रा भी प्राचीन मस्जिदों में शामिल है।    
 
चर्च ऑफ द होली स्कल्प्चर : ईसाइयों के लिए भी यह शहर बहुत महत्व रखता है, क्योंकि यह शहर ईसा मसीह के जीवन के अंतिम भाग का गवाह है। ईसाइयों का विश्वास है कि ईसा एक बार फिर यरुशलम आएंगे। पुराने शहर की दीवारों से सटा एक प्राचीन पवित्र चर्च है जिसके बारे में मान्यता है कि यहीं पर प्रभु यीशु पुन: जी उठे थे। माना यह भी जाता है कि यही ईसा के अंतिम भोज का स्थल है। यह चर्च ईसाई क्वार्टर के इलाके में है।
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