कैसे बने ये शक्तिपीठ : जब महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। हालांकि पौराणिक आख्यायिका के अनुसार देवी देह के अंगों से इनकी उत्पत्ति हुई, जो भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 108 स्थलों पर गिरे थे, जिनमें में 51 का खास महत्व है।
सावित्री पीठ कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ : हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता की एड़ी (गुल्फ) गिरी थी। इसकी शक्ति है सावित्री और भैरव है स्थाणु। देविकूप भद्रकाली मंदिर को सावित्री पीठ, देवी पीठ, कालिका पीठ या आदी पीठ भी कहा जाता है। कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध के पहले श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन ने यहां माता की आराधना की थी।
इस पीठ में भद्रकाली विराजमान है और गणों के रूप में दक्षिणमुखी हनुमान, गणेश तथा भैरव विद्यमान हैं। यहीं स्थाणु शिव का अद्भुत शिवलिंग भी है, जिसमें प्राकृतिक रूप से ललाट, तिलक एवं सर्प अंकित हैं। यह शक्तिपीठ हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन तथा थानेश्वर रेलवे स्टेशन के दोनों ओर से 4 किलोमीटर दूर झांसी मार्ग पर, द्वैपायन सरोवर के पास स्थित है।