पितरों की मुक्ति हेतु किए जाने वाले कर्म तर्पण, भोज और पिंडदान को उचित रीति से नदी के किनारे किया जाता है। इसके लिए देश में कुछ खास स्थान नियुक्त हैं। देश में श्राद्ध पक्ष के लिए लगभग 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है जिनमें से 12 स्थान सबसे खास माने गए हैं।
1. उज्जैन (मध्यप्रदेश) : उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित सिद्धवट पर श्राद्ध कर्म के कार्य किए जाते हैं।
2. लोहानगर (राजस्थान) : इसे लोहार्गल कहते हैं। यहां पांडवों ने अपने पितरों के लिए सुरजकुंड में मुक्ति का कार्य किया था। यहां खासकर अस्थि विसर्जन होता है। यहां तीन पर्वत से निकलने वाली सात धाराएं हैं।
3. प्रयाग (उत्तर प्रदेश) : त्रिवेणी संगम पर गंगा नदी के तट पर मुक्ति कर्म किया जाता है।
4. हरिद्वार (उत्तराखंड) : यहां हर की पौड़ी पर सप्त गंगा, त्रि गंगा और शकावर्त में मुक्ति कर्म किया जाता है।
5. पिण्डारक (गुजरात) : पिंडारक प्राभाष क्षेत्र में द्वारिका के पास एक तीर्थ स्थान है। यहां पितृ पिंड सरोवर है।
6. नाशिक (महाराष्ट्र) : यहां गोदावरी नदी के तट पर मुक्ति कर्म किया जाता है।
7. गया (बिहार) : गया में फल्गु नदी के तट पर मुक्ति कर्म किया जाता है।
8. ब्रह्मकपाल (उत्तराखंड) : कहते हैं जिन पितरों को गया में मुक्ति नहीं मिलती या अन्य किसी और स्थान पर मुक्ति नहीं मिलती उनका यहां पर श्राद्ध करने से मुक्ति मिल जाती है। यह स्थान बद्रीनाथ धाम के पास अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है।
9. मेघंकर (महाराष्ट्र) : यहां पैनगंगा नदी के तट पर मुक्ति कर्म किया जाता है।
10. लक्ष्मण बाण (कर्नाटक) : यह स्थान रामायण काल से जुड़ा हुआ है। लक्ष्मण मंदिर के पीछे लक्ष्मण कुंड है जहां पर मुक्ति कर्म किया जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि यहां पर श्रीराम ने अपने पिता का श्राद्ध किया था।
11. पुष्कर (राजस्थान) : यहां पर बहुत ही प्राचीन झील है जिसके किनारे मुक्ति कर्म किया जाता है।
12. काशी (उत्तर प्रदेश) : काशी को मोक्ष नगरी कहा जाता है। चेतगंज थाने के पास पिशाच मोचन कुंड है जहां पर त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद अन्य तरह की व्याधियों से भी मुक्ति मिल जाती है।
पुराणों अनुसार ब्रह्मज्ञान, गया श्राद्ध, गोशाला में मृत्यु तथा कुरुक्षेत्र में निवास- ये चारों मुक्ति के साधन हैं- गया में श्राद्ध करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नीगमन और उक्त संसर्ग-जनित सभी महापातक नष्ट हो जाते हैं। अंतिम श्राद्ध ब्रह्मकपाल में होता है।