शुक्रवार, 29 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. धार्मिक स्थल
  4. Narsingh jayanti 2021
Written By

नृसिंह अवतार का आश्चर्यजनक रहस्य, सिकुलीगढ़ का सच जानकर हैरान रह जाएंगे

नृसिंह अवतार का आश्चर्यजनक रहस्य, सिकुलीगढ़ का सच जानकर हैरान रह जाएंगे - Narsingh jayanti 2021
sikuligarh
- विनोद बंधु
 
ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थलों में चिरांद एक ऐसी जगह है जहां टीले में हजार वर्ष पुरानी सभ्यता और संस्कृति के अवशेषों का जखीरा दफन है। यह सही है कि नालंदा, गया, वैशाली जैसे जिलों में बौद्ध, जैन और हिन्दू धर्म से जुड़े अनेक ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थल हैं जिनकी ख्याति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है और उनमें समृद्ध पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होने की तमाम संभावनाएं मौजूद हैं लेकिन मिथिला, चंपारण, अंग आदि क्षेत्रों में भी ऐसे अनेक प्राचीन स्थल हैं जो नायाब कलाकृतियों, तंत्र, अध्यात्म और प्राकृतिक सौंदर्य के बेहतर नमूने हैं।
 
 
पूर्वोत्तर बिहार में पूर्णिया प्रमंडल मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर धरहरा गांव स्थित सिकुलीगढ़ का भी अपना धार्मिक और पुरातात्विक महत्व है। इसे भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार और राजा हिरण्यकश्यप का वध स्थल माना जाता है। यहां हजारों श्रद्धालु भक्त विष्णु की पूजा करने आते हैं। सिकुलीगढ़ में मौजूद स्तंभ इसके अति प्राचीन होने का प्रमाण है।
 
वैसे कुछ अंगरेज शासकों और बंगाली इतिहासकारों की मान्यता रही है कि यह सम्राट अशोक के समय का स्तंभ है लेकिन न तो इसका स्वरूप उस समय लगे स्तंभों से मेल खाता है न ही लोगों में ऐसी कोई मान्यता है। यहां धारणा है कि भक्त प्रह्लाद के जीवन की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने इसी स्तंभ से नृसिंह अवतार लिया। गुजरात के पोरबंदर स्थित भारत मंदिर में भी इस स्थल का उल्लेख नृसिंह अवतार के बतौर है।
वह खंभा जिससे नृसिंह अवतार के बाहर निकलने की मान्यता है।
 
लाल ग्रेनाइट के इस स्तंभ का शीर्ष हिस्सा ध्वस्त है। जमीन की सतह से करीब दस फुट ऊंचा और दस फुट व्यास के इस स्तंभ का अंदरूनी हिस्सा पहले खोखला था। पहले जब श्रद्धालु उसमें पैसे डालते थे तो स्तंभ के भीतर से छप-छप की आवाज आती थी। इससे अनुमान लगाया जाता था कि स्तंभ के निचले हिस्से में जल स्रोत है। बाद में स्तंभ का पेट भर गया। इसके दो कारण हो सकते हैं- एक तो स्थानीय लोगों ने मिट्टी डालकर भर दिया या फिर किसी प्राकृतिक घटना में नीचे का जल स्रोत सूख गया और उसमें रेत भर गई।
 
स्थानीय लोगों का कहना है कि 19वीं सदी के अंत में एक अंगरेज पुरातत्वविद यहां आए थे। उन्होंने इस स्तंभ को उखाड़ने का प्रयास किया लेकिन यह हिला तक नहीं। वर्ष 1811 में फ्रांसिस बुकानन ने बिहार-बंगाल गजेटियर में इस स्तंभ का उल्लेख करते हुए लिखा कि इस प्रह्लाद उद्धारक स्तंभ के प्रति हिन्दू धर्मावलंबियों में असीम श्रद्धा है। इसके बाद वर्ष 1903 में पूर्णिया गजेटियर के संपादक जॉन ओ. मेली ने भी प्रह्लाद स्तंभ की चर्चा की। मेली ने यह खुलासा भी किया था कि इस स्तंभ की गहराई का पता नहीं लगाया जा सका है।
 
बिहार में होली का त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। सिकुलीगढ़ के प्रति राज्य के लोगों की आस्था का यह भी एक बड़ा कारण है। इससे जुड़ी एक मान्यता इस पौराणिक कथा पर आधारित है कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। अपने भाई के आदेश पर वह भक्त प्रह्लाद को गोद में लेकर धधकती चिता के बीच बैठ गई लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जलकर राख हो गई और प्रह्लाद का बाल-बांका नहीं हुआ।
 
पूर्वी बिहार के सहरसा और पूर्णिया प्रमंडल पर पिछले वर्षों में कोसी के जलप्रलय ने भारी क्षति पहुंचाई। कोसी ने इन दोनों प्रमंडलों के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के स्थलों पर भी हमले किए हैं। कई स्थलों का तो नामो-निशान मिटा दिया। सिकुलीगढ़ दीए की तरह टिमटिमाता रहा है।
ये भी पढ़ें
Buddha jayanti 2021: गौतम बुद्ध से जुड़ी 10 अनसु‍नी बातें