माता के 51 शक्ति पीठ : मानस दाक्षायणी कैलाश मानसरोवर तिब्बत शक्तिपीठ-9
देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है। प्रस्तुत है माता सती के शक्तिपीठों में इस बार मानसा दाक्षायणी कैलाश मानसरोवर शक्तिपीठ के बारे में जानकारी।
कैसे बने ये शक्तिपीठ : जब महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए।
मानस- दाक्षायणी : तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के मानसा के निकट एक पाषाण शिला पर माता की बायीं हथेली का निपात हुआ था। इसकी शक्ति है दाक्षायनी और भैरव अमर हैं। यह भी कहा जाता है कि यहां पर माता का दायां हाथ गिरा था।
कैलास शक्तिपीठ मानसरोवर का गौरवपूर्ण वर्णन हिन्दू, बौद्ध, जैन धर्मग्रंथों में मिलता है। यहां स्वयं शिव हंस रूप में विहार करते हैं। तिब्बती धर्मग्रंथ 'कंगरी करछक' में मानसरोवर की देवी 'दोर्जे फांग्मो' का यहां निवास कहा गया है। यहां भगवान देमचोर्ग, देवी फांग्मो के साथ नित्य विहार करते हैं। इस ग्रंथ में मानसरोवर को 'त्सोमफम' कहते हैं, जिसके पीछे मान्यता है कि भारत से एक बड़ी मछली आकर उस सरोवर में 'मफम' करते हुए प्रविष्ट हुई। इसी से इसका नाम 'त्सोमफम' पड़ गया।