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Last Updated : मंगलवार, 10 जनवरी 2023 (18:46 IST)

जोशीमठ क्या है, क्या है इसका महत्व, अब क्या होगा इसका भविष्य?

जोशीमठ क्या है, क्या है इसका महत्व, अब क्या होगा इसका भविष्य? - Joshimath cracks
Joshimath Sinking: जोशी मठ में तेजी से भू-धंसान के चलते जोशीमठ नगर में सैंकड़ों भवनों में बड़ी दरारें मिली है। अब तक 600 से ज्यादा मकानों को खाली करवा लिया गया है। लगातार जमीन घंसने की घटनाओं के मद्देनजर जोशीमठ को धंसता क्षेत्र (sinking zone) घोषित किया गया है। बताया जा रहा है कि उत्तराखंड में ऋषिकेश कर्ण प्रयाग प्रोजेक्ट, रेलवे प्रोजेक्ट, टिहरी बांध परियोजना आदि कई विकास कार्यों के कारण पहाड़ दरक रहे हैं। आओ जानते हैं जोशमठ क्या है, क्या है इसका महत्व और क्या होगा इसका भविष्य।
 
कहां है जोशीमठ : जोशीमठ भारत-चीन सीमा के नजदीक स्थित एक नगर है। बद्रीनाथ के रास्ते में करीब आखरी छोर का यह नगर है। जोशीमठ के सामने हाथी पर्वत है। इसके सामने से घाटियों से होता हुआ एक रास्ता बद्रीनाथ के लिए जाता है और दाईं ओर से फूलों की घाटी और हेमकुंड के लिए रास्ता जाता है। जोशीमठ, कई हिमालयी पर्वतारोहण अभियानों, ट्रेकिंग अभियानों और केदारनाथ व बद्रीनाथ जैसे लोकप्रिय तीर्थस्थलों का प्रवेशद्वार है। ऋषिकेश से यहां पर जाएं तो गंगा नदी के साथ साथ आप आगे देवप्रयाग पहुंचेंगे। यहां संगम पर भागीरथी साथ छोड़ देंगे तो अलकनंदा आपको रुद्रप्रयाग तक लेकर जाएगी वहां मंदाकिनी को देखकर आप अलकनंदा के साथ कर्णप्रायाग से होते हुए गोपेश्वर और फिर आगे 6150 फिट की ऊंचाई पर जोशीमठ पहुंचेंगे। 
जोशीमठ का आध्यात्मिक महत्व : जोशीमठ का नाम ज्योर्तिमठ भी है। आदि शंकराचार्य के द्वारा स्थापित चार मठों में से एक यहां पर है। सातवीं सदी में यह जगह कत्युरी वंश के अधिन रही और एक समय में उन्होंने इसे अपनी राजधानी भी बनाया था। यहां भगवान विष्णु का एक मंदिर है जिसे वासुदेव नृसिंह मंदिर कहते हैं। सदियों में जब बद्रीनाथ के कपाट बंद हो जाते हैं तब भगवान बद्री की प्रतिष्ठा इसी मंदिर में होती है। 6 माह श्रीहरि यहीं निवास करते हैं। बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। मंदिर में बदरीनाथ की दाहिनी ओर कुबेर की मूर्ति भी है। उनके सामने उद्धवजी हैं तथा उत्सवमूर्ति है। उत्सवमूर्ति शीतकाल में बरफ जमने पर जोशीमठ में ले जाई जाती है। उद्धवजी के पास ही चरणपादुका है। बायीं ओर नर-नारायण की मूर्ति है। इनके समीप ही श्रीदेवी और भूदेवी है।
 
बद्रीनाथ लुप्त होने की भविष्वाणी : स्थानीय मंदिर में रखी भगवान नृसिंह की प्रतिमा का बांया हाथ लगातार क्षीण होता जाएगा और जब यह गिर जाएगा तब नर और नारायण नाम के दो पर्वत आपस में मिल जाएंगे और तब बद्रीनाथ का मार्ग बंद हो जाएगा। बद्रीनाथ और केदारनाथ तीर्थ लुप्त हो जाएंगे। यह स्थानीय मान्यता है।
 
बचेगा मात्र एक स्थान : कहते हैं कि भविष्य में जब केदारनाथ और बद्रीनाथ लुप्त हो जाएंगे भविष्यबद्री नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा। यह स्थान चमोली में जोशीमठ के पास सुभैन तपोवन में स्थित है।
क्या होगा भविष्य : साल 1939 में एक वैज्ञानिक ने यह पता लगाया था कि जोशीमठ एक लैंडस्लाइड पर बसा हुआ है। वह लैंडस्लाइड बहुत अस्थिर है। यहां पर किसी भी प्रकार के विकास कार्य करना या बसावट करना बहुत ही खतरनाक माना गया था। अब यहां पर पहाड़ों को खोदकर सड़कों का जाल बिछा दिया गया है। अंधाधुंध तरीके से वृक्ष काटना और भूमि के कटाव के कारण अब यह क्षेत्र भू-धसाव का केंद्र बन गया है। जोशीमठ कई पावर प्लांट लगाए जा रहे हैं। बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का काम हुआ है और हो रहा है। 
 
जोशीमठ के नीचे से एक लंबी सुरंग बनाई गई है। तपोवन से हेलंग तक। बीच में जोशी मठ और औली है। यह सुरंग करीब एक किलोमीटर की निचाई में बनाई गई है। साल 2009 में हेलंग से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर इस सुरंग में एक टनल बोरिंग मशीन फंस गई थी। इस मशीन ने जमीन के नीचे एक पानी के स्रोत को पंचर कर दिया था जिसके चलते एक माह तक पानी रिसता रहा। इसने भीतर की भूमि में दरारें कर दी है। सुरंग में जो पानी घुसा था क्या वो अब रिसकर जोशीमठ में निकल रहा है। 
 
सुरंग के कारण प्राकृतिक दरारों के सक्रिय होने की संभावना भी बढ़ गई है। जोशीमठ के ठीक नीचे से और औली के पीछे से भूमि के अंदर एक बहुत बड़ी दरार (मैन सेंट्रल थ्रस्ट- MCT) गुजरती है। यह हेलंग से लेकर तपोवन तक जाती है। इसके पास दो छोटी दरारें वैक्रता थ्रस्ट (VT) और पिंडारी थ्रस्ट (PT) भी गुजर रही हैं। यह दरारें हिमालय पर्वत के बनने के दौरान बनी थीं। इन्हीं के उपर यह संपूर्ण क्षेत्र है। 
 
जोशीमठ से पहले एक सड़क बद्रीनाथ और हेमकुंड की ओर जा रही थी, लेकिन अब जोशीमठ को बायपास करके नीचे से एक सड़क बनाई जा रही है। इसके लिए पहाड़ की तलहटी को काटा जा रहा है, डायनामाइड लगाकर विस्फोट किए जा रहे हैं, जिससे चट्टान कमजोर होती जा रही है। ऐसा सिर्फ जोशीमठ के आसपास ही नहीं हो रहा है संपूर्ण उत्तरांख में हो रहा है। अब यह आशंक व्यक्त की जा रही है कि भविष्य में जोशीमठ जमींदोज हो जाएगा। भले ही इसे जमींदोज में थोड़ा समय लगे लेकिन यह प्रक्रिया शुरु हो चुकी है।