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Written By WD

एक मंदिर, जहाँ चढ़ती है शराब और सिगरेट

एक मंदिर, जहाँ चढ़ती है शराब और सिगरेट -
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आमतौर पर देखा गया है कि लोग मंदिर में नारियल, मिठाई आदि प्रसाद चढ़ाते हैं, पर जब बात मंदिर में शराब और सिगरेट चढ़ाने की हो तो आश्चर्यचकित हो जाना स्वाभाविक है। आस्था और अंधविश्वाइस कड़ी में हम आपको लेकर चल रहे हैं बड़ौदा के मांजलपुर इलाके में जहाँ स्थित है जीवा मामा का मंदिर। गुजरात में वैसे तो शराब पर प्रतिबंध है लेकिन यहाँ लोग अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर चढ़ाते हैं शराब और सिगरेट।

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शराब और सिगरेट के साथ पशुओं को भी जीवा मामा को भेंट किया जाता है। यह बात जितनी आश्चर्यजनक लगती है उससे भी ज्यादा दिलचस्प इसका इतिहास है।

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मंदिर के इतिहास के बारे में यहाँ रहने वाले भरतभाई सोलंकी ने हमें बताया कि वर्षों पहले इस छोटे-से गाँव के सभी युवा किसी धार्मिक मौके पर गाँव के बाहर गए हुए थे। इस मौके का फायदा उठाते हुए लुटेरों ने गाँव में डाका डाला। उस समय पड़ोस के गाँव से जीवा नामक एक युवक अपनी बहन और भानजे को मिलने आया हुआ था।

गाँव में लुटेरों के आतंक को देखकर उसने अपना साहस दिखलाया और लुटेरों से जा भिड़ा। जब गाँववालों ने अकेले युवक को लड़ते देखा तो उनमें भी हिम्मत आई और उन्होंने लुटेरों का डटकर मुकाबला किया। सभी गाँववालों को अपने सामने ‍देख सभी लुटेरे भाग निकले, लेकिन बुरी तरह घायल जीवा गाँव को बचाने में शहीद हो गया।

  कहते हैं कि जीवा मामा शराब, सिगरेट और मांस के शौकीन थे, इसलिए अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर यहाँ लोग शराब, सिगरेट और पशु को प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से मंदिर परिसर में बलि देने पर प्रतिबंध लगाया गया है।      
जीवा के बलिदान को सदैव याद रखने के लिए गाँववालों ने जीवा मामा का एक मंदिर बनवाया। गाँववाले अपनी मनोकामना पूरी करने की मन्नत रखने लगे और मनोकामना पूरी होने पर अपनी खुशी से इस जीवा मामा की मूर्ति को शराब और सिगरेट का प्रसाद चढ़ाने लगे। और तब से लेकर आज तक यह परंपरा कायम है।

कहते हैं कि जीवा मामा शराब, सिगरेट और मांस के शौकीन थे, इसलिए अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर यहाँ लोग शराब, सिगरेट और पशु को प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से मंदिर परिसर में बलि देने पर प्रतिबंध लगाया गया है, इसलिए आजकल पशुओं के कुछ बालों को काटकर यहाँ रख दिया जाता है।

किसी के साहस और बलिदान को सदैव याद रखने के लिए स्मारक बनाना निश्चित ही एक अच्छा कार्य है परंतु उस पर इस प्रकार से आडंबर का जामा पहनाना क्या सही है? किसी भी देवता को प्रसाद के रूप में मांस, मदिरा और सिगरेट चढ़ाए जाने को आप कहाँ तक उचित मानते हैं। क्या आज के इस वैज्ञानिक समाज में इस तरह की किसी भी परंपरा को स्थान देना चाहिए? आप इस बारे में क्या सोचते हैं... यह आस्‍था है या अंधविश्वास? हमें जरूबताएँ...