रविवार, 6 अक्टूबर 2024
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Written By भीका शर्मा

संत सिंगाजी का समाधि स्थल

संत सिंगाजी का समाधि स्थल -
धर्मयात्रा में इस बार हम आपको लेकर चलते हैसंत सिंगाजी महाराज के समाधि स्थल पर। संत कबीर के समकालीन सिंगाजी महाराज की समाधि खंडवा (मध्यप्रदेश) से करीब 35 किमी दूर पीपल्या ग्राम में बनी हुई है। गवली समाज में जन्मे सिंगाजी एक साधारण व्यक्तित्व के धनथे, परंतु मनरंग स्वामी के प्रवचनों और उनके सान्निध्य ने सिंगाजी का हृदय परिवर्तित कर दिया और वे धर्म की राह पर चल पड़े।

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मालवा-निमाड़ में अत्यंत प्रसिद्ध सिंगाजी महाराज ने अपने जीवनकाल में गृहस्थ होकर भी निर्गुण उपासना की। उनका तीर्थ, व्रत आदि में विश्वास नहीं था। उनका कहना था कि सब तीर्थ मनुष्य के मन में ही हैं। जिसने अपने अन्तर्मन को देख लिया, उसने सारे तीर्थों का फल प्राप्त ‍कर लिया। सिंगाजी महाराज ने अपनी अलौकिक वाणी से तत्कालीन समाज में व्यापक परिवर्तन किए।

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एक बार उनसे ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग चलने के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा जहाँ पत्थर और पानी है वहीं तीर्थ है, ऐसा कहकर उन्होंने पीपल्या के नजदीक बहने वाले नाले के पानी को गंगा सदृश्य मानकर उसमें स्नान कर लिया। सिंगाजी महाराज ने अपने जीवन में कोई मंदिर या पूजा स्थल नहीबनवाया। कहा जाता है कि संत सिंगाजी महाराज को साक्षात ईश्वर ने दर्शन दिए थे।

अपने गुरु के कहने पर सिंगाजी महाराज ने श्रावण शुक्ल नवमी के दिन भगवान का नाम स्मरण करते हुए अपनी देह त्याग दी। कहते हैं कि अंतिम इच्छा का पालन न होने पर समाधि के छह महीने के बाद सिंगाजी महाराज ने अपने शिष्यों के सपने में जाकर उनकी आड़ी ‍लेटाई हुई देह को बैठे हुए आसान के रूप में समाधि देने के निर्देश दिए थे। जिसका पालन करते हुए समाधि से उनकी अखंड देह निकालकर उन्हेपुन: समाधि दी गई।

सिंगाजी महाराज का समाधि स्थल इंदिरासागर परियोजना के डूब क्षेत्र में आने की वजह से उस स्थल को 50-60 फुट के परकोटे से सुरक्षित कर ऊपर की ओर मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। निर्माण कार्य चलने की वजह से भक्तों के दर्शन हेतु संत सिंगाजी महाराज की चरण पादुकाएँ अस्थायी रूप से नजदीक के परिसर में स्थानांतरित की गई हैं।
  श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहाँ उल्टा स्वस्तिक बनाने से माँगी गई हर मुराद पूरी होती है। मन्नत पूरी होने जाने पर श्रद्धालु सिंगाजी के दरबार में सीधा स्वस्तिक बनाकर अपनी आस्था प्रकट करते हैं।      

श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहाँ उल्टा स्वस्तिक बनाने से माँगी गई हर मुराद पूरी होती है। मन्नत पूरी हो जाने पर श्रद्धालु सिंगाजी के दरबार में सीधा स्वस्तिक बनाकर अपनी आस्था प्रकट करते हैंसिंगाजी के परिनिर्वाण के पश्चात आज भी उनकी स्म‍ृति में शरद पूर्णिमा के दिन यहामेला लगता है और हजारों श्रद्धालु उनकी समाधि के आगे नतमस्तक हो जाते हैं।

कैसे पहुँचें :
सड़क मार्ग : इस स्थान पर पहुँचने के लिए खंडवा से हर 30 मिनट में बस उपलब्ध है।
रेल मार्ग : खंडवा से बीड़ रेलवे स्टेशन, जो कि पीपल्या ग्राम से 3 किमी की दूर स्थित है, तक शटल ट्रेन की सुविधा उपलब्ध है।