सोमवार, 7 अक्टूबर 2024
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Written By गायत्री शर्मा

भोपावर में श्रीशांतिनाथ जी का मंदिर

8,7000 वर्ष पुरानी शांतिनाथ जी की प्रतिमा

भोपावर में श्रीशांतिनाथ जी का मंदिर -
जैन तीर्थों में एक और तीर्थ है भोपावर का श्रीशांतिनाथ जी का मंदिर, जो इंदौर-अहमदाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित राजगढ़ से लगभग 12 किमी की दूरी पर है। इस तीर्थ की प्राचीनता व महाभारत काल से इसका संबंध इसे और भी अधिक प्रसिद्ध व रहस्यमयी बनाता हैं।

भोपावर में 16वें जैन तीर्थंकर श्रीशांतिनाथ जी की काउसग्ग मुद्रा वाली 12 फीट ऊँची खड़ी प्रतिमा है। श्रीशांतिनाथ जी की यह प्रतिमा लगभग 87,000 वर्ष पुरानी है। इस विशालकाय मूर्ति का बिना किसी सहारे के दो पैर पर खड़ा होना उस वक्त की उत्कृष्ट मूर्तिकला का बेजोड़ नमूना है।

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यदि हम इतिहास के पन्नों को उलटें तो पन्ने-दर-पन्ने हमारे सामने भोपावर की प्राचीनता व उससे जुड़ी घटनाओं के संबंध में कई ऐसे राज खुलते जाते हैं, जो हमें आश्चर्यचकित करने के साथ-साथ इस तीर्थ की महिमा के बारे में भी प्रमाण देते हैं।

चमत्कार या महिमा
  इस तीर्थ पर कई वर्षों से चमत्कार होते रहे हैं, जिसने भक्तों में श्रीशांतिनाथ जी की आस्था और श्रृद्धा को अधिक दृढ़ किया है। कभी भक्तों ने भगवान के पाँव में लिपटा सर्प देखा तो कभी उनके मस्तक से लगातार अमृत झरते हुए देखा।      
भोपावर का प्रादुर्भाव :
भोपावर की प्राचीनता व इस तीर्थ से जुड़े रहस्यों के बारे में यहाँ कई प्रकार की अनुश्रुतियाँ प्रचलित हैं। यह कहा जाता है कि भोपावर की स्थापना श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणी के भाई रुक्मणकुमार ने की थी।‍ कहा जाता है कि रुक्मणकुमार के पिता भीष्मक उस समय अमीझरा जो कि भोपावर से 17 किमी दूर स्थित है के शासक थे।

रुक्मणकुमार अपनी बहन का विवाह शिशुपाल से कराना चाहते थे, लेकिन उनकी बहन मन ही मन श्रीकृष्ण को अपना पति मान चुकी थी। रुक्मिणी का संदेश पाकर श्रीकृष्ण वहाँ अपना रथ लेकर पहुँचे और उन्होंने रुक्मिणी का हरण कर लिया। रास्ते में उन्हें रुक्मणकुमार का सामना करना पड़ा जिसे उन्होंने आसानी से पराजित कर दिया। अपनी हार से दूखी रुक्मणकुमार कुन्दनपुर नहीं लौटे।

उन्होंने उसी स्थान पर अपने रहने के लिए एक नगरी बसाई, जो वर्तमान में भोपावर के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि रुक्मणकुमार ने ही श्रीशांतिनाथ जी की यह प्रतिमा इस मंदिर में स्थापित कराई थी।

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प्राचीनता संबंधी प्रमाण :
कहा जाता है कि मथुरा की कंकालीटीका के पास दूसरी शताब्दी में बने जैन स्तूप, जिसे देव निर्मित स्तूप भी कहा जाता है, के एक शिलालेख में कृष्णकाल की मूर्तियों का जिक्र है। जिसमें भोपावर की इस विशाल मूर्ति का भी उल्लेख है।

प्रभु की महिमा या चमत्कार :
इस तीर्थ पर कई वर्षों से चमत्कार होते रहे हैं, जिसने भक्तों में श्रीशांतिनाथ जी की आस्था और श्रृद्धा को अधिक दृढ़ किया है। कभी भक्तों ने भगवान के पाँव में लिपटा सर्प देखा तो कभी उनके मस्तक से लगातार अमृत झरते हुए देखा। कभी श्रीशांतिनाथ जी के गर्भ-गृह से अनायास ही कई लीटर दूध से भर गया तो कभी यहाँ भक्तों ने सफेद सर्प को विचरण करते हुए देखा।

यहाँ के स्थानीय लोगों ने बताया कि इस तीर्थ के संबंध में एक ओर खास बात यह है कि प्रतिवर्ष यहाँ के मंदिर परिसर में कोई न कोई सर्प अपनी केंचुली का त्याग करके जाता है। यह घटना कई वर्षों से हो रही है। मंदिर में कई सर्पों की केंचुलियाँ अब तक सुरक्षित रखी हुई हैं।

इन्हें भी देखें :- तीर्थंकर शांतिनाथ का परिचय
कैसे पहुँचें :
सड़क मार्ग: मध्य प्रदेश के इंदौर से भोपावर की दूरी करीब 107 किमी है यहाँ से बस और टैक्सी आसानी से उपलब्ध है।
रेलमार्ग: निकटतम रेल्वे स्टेशन में मेघनगर करीब 77 किमी दूरी पर स्थित है।
वायूमार्ग: निकटतम एयरपोर्ट देवी ‍अहिल्या हवाईअड्डा, इंदौर करीब 107 किमी दूरी पर स्थि‍त है।