Vaikuntha Chaturdashi:वैकुंठ चतुर्दशी का व्रत क्यों रखते हैं?  
					
					
                                       
                  
				  				
								 
				  
                  				  Why is Vaikuntha Chaturdashi celebrated: वैकुंठ चतुर्दशी का व्रत विशेष रूप से विष्णु भक्तों द्वारा मनाया जाता है। यह व्रत हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रखा जाता है, जो आमतौर पर नवंबर-दिसंबर के बीच आता है। इस दिन का महत्व विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा से जुड़ा है, और इसे 'वैकुंठ द्वार खुलने' का दिन भी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु के श्रीवैकुंठ धाम के द्वार खुलते हैं, और इस दिन भक्तों का विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
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		वैकुंठ चतुर्दशी का व्रत रखने के कई महत्वपूर्ण कारण और धार्मिक मान्यताएं हैं:
 				  
		 
		मोक्ष की प्राप्ति: यह व्रत मुख्य रूप से मोक्ष (जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति) की प्राप्ति के लिए रखा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करता है, उसे जीवन के अंत में भगवान विष्णु के वैकुंठ धाम में स्थान मिलता है।
 				  						
						
																							
									  
		 
		हरि-हर का मिलन: यह पूरे वर्ष में वह एकमात्र दिन होता है जब भगवान शिव या हर और भगवान विष्णु हरि की पूजा एक साथ की जाती है। यह दोनों देवों की एकता और सामंजस्य का प्रतीक है।
 				  																													
								 
 
 
  
														
																		 							
																		
									  
		 
		पापों का नाश: यह माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन के दुख दूर होते हैं।
 				  																	
									  
		 
		सुख-समृद्धि और मनोकामना पूर्ति: इस दिन हरि और हर की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
 				  																	
									  
		 
		पौराणिक कथा: एक कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने एक हजार कमल के फूलों से भगवान शिव की आराधना की थी। भगवान विष्णु की भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया था और यह आशीर्वाद दिया था कि जो भी इस दिन उनका यानी विष्णु का नाम लेकर पूजा करेगा, उसे वैकुंठ धाम प्राप्त होगा। 
 				  																	
									  
		 
		संक्षेप में कहें तो यह व्रत मोक्ष और हरि-हर की संयुक्त कृपा प्राप्त करने के लिए रखा जाता है।
 				  																	
									  
		 
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