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Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 5 नवंबर 2025 (12:11 IST)

Guru Nanak Jayanti 2025: गुरु नानक देव की जयंती: एकता, प्रेम और प्रकाश का अलौकिक सफर

Guru Nanak Jayanti 2025 Date
Importance of Guru Nanak Dev Jis Birthday: सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी केवल एक धार्मिक नेता नहीं थे, बल्कि एक ऐसे दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक थे, जिन्होंने प्रेम, समानता और एकेश्वरवाद का एक ऐसा संदेश दिया जो सदियों बाद भी प्रासंगिक है। उनके जीवन की कहानी कई चमत्कारी और रोचक प्रसंगों से भरी है, जो हमें मानवता के सच्चे मार्ग की ओर ले जाते हैं।ALSO READ: Guru Nanak Jayanti: 2025 में गुरुपर्व कब है?
 
बचपन के चमत्कारी संकेत: गुरु नानक देव जी का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के तलवंडी (अब ननकाना साहिब) में हुआ। बचपन से ही उनमें अद्भुत आध्यात्मिक लक्षण दिखाई देने लगे थे। 
 
'सच्चा सौदा': एक बार, उनके पिता ने उन्हें व्यापार के लिए 20 रुपये दिए। नानक जी ने उन पैसों से भूखे साधुओं को भोजन करा दिया और घर आकर कहा कि उन्होंने 'सच्चा सौदा' किया है। यह घटना निस्वार्थ सेवा की उनकी पहली बड़ी शिक्षा बन गई।
 
मूर्तिपूजा का विरोध: छोटी उम्र में जब उन्हें जनेऊ (पवित्र धागा) पहनने के लिए कहा गया, तो उन्होंने इनकार कर दिया। उनका मानना था कि धागा तो टूट जाएगा, जबकि उन्हें ऐसा धागा चाहिए जो प्रेम, दया और संतोष का हो।
 
चार लंबी 'उदासियां' (यात्राएं): गुरु नानक देव जी ने अपने जीवनकाल में चार लंबी यात्राएं कीं, जिन्हें 'उदासी' कहा जाता है। इन यात्राओं में उन्होंने पैदल ही हजारों किलोमीटर का सफर तय किया। इन यात्राओं का उद्देश्य केवल उपदेश देना नहीं था, बल्कि अलग-अलग धर्मों, जातियों और संस्कृतियों के लोगों से मिलना और उन्हें एक ही ईश्वर का संदेश देना था। उनकी यात्रा के साथी उनके प्रिय शिष्य भाई मरदाना होते थे, जो रबाब बजाकर उनके भजनों (शबदों) को मधुर संगीत देते थे।
 
दुनिया की यात्रा: उन्होंने भारत, श्रीलंका, तिब्बत, अफगानिस्तान, अरब और फारस तक की यात्राएं कीं। कहा जाता है कि वे मक्का भी गए थे।
 
सिख धर्म के तीन स्वर्णिम सिद्धांत: गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म को 3 सरल, लेकिन शक्तिशाली सिद्धांतों पर स्थापित किया, जिन्हें जीवन का मूल आधार माना जाता है:
 
नाम जपना (Naam Japna): ईश्वर (एक ओंकार) के नाम का लगातार ध्यान और स्मरण करना।
 
किरत करनी (Kirat Karni): ईमानदारी और कड़ी मेहनत से जीवन यापन करना। आलस्य और भीख मांगने को उन्होंने बुरा बताया।
 
वंड छकना (Vand Chakko): अपनी कमाई को जरूरतमंदों के साथ बांटकर खाना। इसी सिद्धांत से 'लंगर' (सामुदायिक रसोई) की प्रथा शुरू हुई, जहां सभी लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ बैठकर भोजन करते हैं।
 
समाज सुधारक और समानता के अग्रदूत: अपने समय में व्याप्त जातिवाद, रूढ़िवादिता और महिलाओं के प्रति भेदभाव को दूर करने में गुरु नानक देव जी का सबसे बड़ा योगदान था: 'मनुष्य की जात सभी एकै पहचानबो': उन्होंने सिखाया कि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं।
 
स्त्री समानता: उन्होंने महिलाओं के सम्मान की पुरजोर वकालत की, यह कहते हुए कि जब राजा और महान लोग महिलाओं से ही जन्म लेते हैं, तो उनकी बुराई क्यों की जाए?
 
करतारपुर की स्थापना: अपनी लंबी यात्राओं के बाद, गुरु नानक देव जी पाकिस्तान में रावी नदी के किनारे करतारपुर नामक एक गांव में बस गए। यहां उन्होंने खेती की और अपने अनुयायियों के साथ रहकर अपने सिद्धांतों के अनुसार जीवन व्यतीत किया।
 
ज्योति जोत: 1539 ईस्वी में इसी स्थान पर वे 'ज्योति जोत' अर्थात् ईश्वर के प्रकाश में विलीन हो गए। उनकी मृत्यु के बाद, उनके हिंदू और मुस्लिम दोनों अनुयायी उनके अंतिम संस्कार के लिए दावा करने लगे थे, जो यह दर्शाता है कि वे दोनों समुदायों के बीच कितने प्रिय थे।
 
गुरु नानक देव जी का जीवन एक ऐसा पुल था जिसने धर्मों और संस्कृतियों को जोड़ा। उन्होंने दुनिया को सिखाया कि ईश्वर एक है और उसे पाने का रास्ता मंदिर या मस्जिद में नहीं, बल्कि सच्चे दिल, ईमानदारी और निस्वार्थ सेवा में है।
 
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