When is Dev Diwali: देव दिवाली कब हैं- देव उठनी एकादशी पर या कार्तिक पूर्णिमा पर?
When is Dev Diwali: परंपरा से कई लोग देव उठनी एकादशी के दिन ही देव दिवाली मान लेते हैं। कई लोग यही समझते हैं कि इसी दिन देव दिवाली रहती है। इसी के चलते ही देव उठनी एकादशी पर सभी घरों में दीपावली जैसी रोशनी रहती है जबकि देव दिवाली और देव उठनी एकादशी दोनों ही कार्तिक के महीने में आते हैं, लेकिन वे अलग-अलग तिथियों पर मनाए जाते हैं और उनका महत्व भी अलग है। देव उठनी एकादशी 1 नवंबर को, 2 नवंबर को तुलसी विवाह और 5 नवंबर को देव दिवाली रहेगी।
1. देव उठनी एकादशी (या देव प्रबोधिनी एकादशी)
तिथि: यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है।
महत्व: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु अपनी चार महीने की लंबी योग निद्रा से जागते हैं (इसलिए इसे 'देव उठनी' कहते हैं)।
प्रारंभ: इस दिन से ही शुभ और मांगलिक कार्यों (जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि) की शुरुआत होती है, जो चातुर्मास के दौरान रुके हुए थे।
संबंधित पर्व: इसी एकादशी के अगले दिन तुलसी विवाह भी मनाया जाता है।
2. देव दिवाली (या देव दीपावली):
तिथि: यह कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। यह दीपावली (अमावस्या) के ठीक 15 दिन बाद आती है।
महत्व: इस दिन को देवताओं द्वारा मनाई गई दिवाली के रूप में जाना जाता है।
कथा: एक प्रमुख मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इस जीत की खुशी में देवताओं ने स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरकर, विशेषकर काशी (वाराणसी) में, दीप जलाकर उत्सव मनाया था।
परंपरा: इसी कारण कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं और इस दिन दीपदान (दीपक जलाना) का विशेष महत्व होता है।
संक्षिप्त में यह कि देव उठनी एकादशी का पर्व कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन रहता है और इसके पीछे कारण यह है कि भगवान विष्णु इस दिन अपनी चार माह की योग निद्रा से जागगते हैं और इसके बाद से ही शुभ कार्यों का प्रारंभ होता है जबकि देव दिवाली का पर्व कार्तिक पूर्णिमा को रहता है और इसके पीछे का कारण यह है कि इस दिन भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर का वध किया गया था इसी की खुशी में देवता गंगा के घाट पर उत्सव मनाते हैं।