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Jivitputrika Vrat 2023 : जीवित्पुत्रिका पर्व आज, पढ़ें जितिया व्रत की कथा, आरती और परंपराएं

Jivitputrika Vrat 2023 : जीवित्पुत्रिका पर्व आज, पढ़ें जितिया व्रत की कथा, आरती और परंपराएं - 2023 Jivitputrika Vrat
Jjiutia vrat 2023 : वर्ष 2023 में जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत आज यानी 6 अक्टूबर, शुक्रवार को रखा जा रहा है। धार्मिक मान्यताओं ​के अनुसार इस दिन गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा करने का विधान है। यह व्रत करने से पुत्र दीर्घायु, सुखी और निरोग रहते हैं। प्रतिवर्ष आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इसे जिउतिया व्रत के नाम भी जानते हैं। 
 
इस दिन माताएं अपनी संतान के स्वास्थ्य, लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना से यह व्रत रखती हैं। आइए जानते हैं इस दिन की आरती, कथा और परंपरा के बारे में... 
 
व्रत की परंपराएं : Jivitputrika vrat traditions
 
1. पौराणिक कथाओं में परंपरा के पीछे जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा में वर्णित चील और सियार का होना माना जाता है।
 
2. सनातन धर्म में पूजा-पाठ के दौरान मांसाहार खाने की मनाही है, लेकिन बिहार में कई जगहों पर इस व्रत की शुरुआत मछली खाकर की जाती है।
 
3. कई स्थानों पर जीवित्पुत्रिका व्रत को रखने से पहले महिलाएं गेहूं के आटे की रोटियां खाने की बजाए मरुआ के आटे की रोटियां खाती हैं। ऐसा सदियों से होता चला आ रहा हैं, लेकिन इस परंपरा के पीछे का कारण ठीक से स्पष्ट नहीं है। 
 
4. इस दिन माताएं उपवास रखकर अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए बांस के पत्रों से पूजन करती है। 
 
5. जितिया व्रत को रखने से पहले नोनी का साग खाने की भी परंपरा है। इस संबंध में माना जाता हैं कि नोनी के साग में कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में होता है। जिसके कारण व्रतधारी को पोषक तत्वों की कमी महसूस नहीं होती है।
 
6. इस व्रत के पारण के बाद महिलाएं जितिया का लाल रंग का धागा गले में पहनती है तथा कई स्थानों पर व्रती महिलाएं जितिया का लॉकेट भी धारण करती हैं।
 
7. जीवित्पुत्रिका व्रत में पूजा के दौरान सरसों का तेल और खल चढ़ाने की मान्यता है और व्रत पारण के बाद यह तेल बच्चों के सिर पर आशीर्वाद के तौर पर लगाया जाता हैं।
 
8. जीवित्पुत्रिका या जिउतिया व्रत में सरगही या ओठगन की परंपरा भी है। इस व्रत में सतपुतिया की सब्जी का विशेष महत्व है। 
 
9. जीवित्पुत्रिका व्रत से एक दिन पहले आश्विन कृष्ण सप्तमी को व्रती महिलाएं मड़ुआ की रोटी व नोनी की साग खाती हैं। रात को बने अच्छे पकवान में से पितरों, चील, सियार, गाय और कुत्ता का अंश निकाला जाता है। 
 
10. जीवित्पुत्रिका व्रत संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए हर साल परंपरा को निभाते हुए मनाया जाता है। यह व्रत छठ पर्व की तरह ही निर्जला और निराहार रह कर महिलाएं करती हैं।
 
पौराणिक कथा : Jivitputrika Vrat Katha
 
जीवित्पुत्रिका या जिउतिया व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद अश्वथामा अपने पिता की मृत्यु की वजह से क्रोध में था। वह अपने पिता की मृत्यु का पांडवों से बदला लेना चाहता था। एक दिन उसने पांडवों के शिविर में घुस कर सोते हुए पांडवों के बच्चों को मार डाला। उसे लगा था कि ये पांडव हैं। लेकिन वो सब द्रौपदी के पांच बेटे थे। इस अपराध की वजह से अर्जुन ने उसे गिरफ्तार कर लिया और उसकी मणि छीन ली।
 
इससे आहत अश्वथामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया। लेकिन उत्तरा की संतान का जन्म लेना जरूरी था। जिस वजह से श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा की गर्भ में मरी संतान को दे दिया और वह जीवित हो गया। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से गर्भ में मरकर जीवित होने के वजह से इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। यही आगे चलकर राज परीक्षित बने। तभी से संतान की लंबी उम्र के लिए हर साल जिउतिया व्रत रखने की परंपरा को निभाया जाता है। 
 
कैसे शुरू हुआ जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत, इस संबंध में एक और कथा मिलती है और उस कथा के अनुसार गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन ने नाग वंश की रक्षा के लिए स्वयं को पक्षीराज गरुड़ का भोजन बनने के लिए सहर्ष तैयार हो गए थे। उन्होंने अपने साहस और परोपकार से शंखचूड़ नामक नाग का जीवन बचाया था। उनके इस कार्य से पक्षीराज गरुड़ बहुत प्रसन्न हुए थे और नागों को अपना भोजन न बनाने का वचन दिया था।
 
पक्षीराज गरुड़ ने जीमूतवाहन को भी जीवनदान दिया था। इस तरह से जीमूतवाहन ने नाग वंश की रक्षा की थी। इस घटना के बाद से ही हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाने लगा। 
 
Jitiya Vrat Aarti : सूर्यदेव की आरती
 
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन ।।
त्रिभुवन-तिमिर-निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सुर-मुनि-भूसुर-वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सकल-सुकर्म-प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत साहज हरत अति मनसिज-संतापा॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान-मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।। 
 
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