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Written By ND

बौद्ध भिक्षुणी का शांति मार्ग

सुख की खोज

Buddhist saint | बौद्ध भिक्षुणी का शांति मार्ग
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बौद्ध संत पटाचारा वणिक-पुत्री थी। मनपसंद युवक से विवाह करने के कारण उसके माता-पिता रुष्ट हो गए और उन्होंने अपनी बेटी से संबंध तोड़ लिए। सुखी दांपत्य जीवन जीते हुए भी उसे अपने माता-पिता की नाराजगी का दुख था।

विवाह के कुछ ही वर्षों में उसने दो पुत्रों को जन्म दिया। फिर एक दिन पटाचारा को विचार आया कि माता-पिता का गुस्सा अब शांत हो गया होगा और नातियों को देखकर प्रेम-भाव उमड़ आएगा। यह सोच वह पति के साथ गृहनगर श्रावस्ती की ओर रवाना हुई।

जब पटाचारा पति एवं बच्चों के साथ वन से जा रही थी तो एक सर्प ने उसके पति को डस लिया। उचित इलाज के अभाव में वह बच न सका और उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। पति-वियोग में विलाप करती पटाचारा बच्चों को लेकर आगे बढ़ी ही थी कि अचानक एक जंगली जानवर उसके एक बच्चे को उठा ले भागा, किंतु वह विचलित न हुई और आगे बढ़ी। लेकिन विपत्तियाँ भी पीछा नहीं छोड़ रही थीं। मार्ग में एक नदी पड़ी और दूसरा बच्चा तेज धार में बह गया।

अब पटाचारा अकेली रह गई, किंतु उसके भाग्य में सुख कहाँ था? वह जब श्रावस्ती पहुँची तो पता चला कि कुछ ही दिन पहले उसके माता-पिता घर की छत गिरने से कालकवलित हो चुके हैं। दुखों के पहाड़ से विचलित हो उठी थी, तभी पता चला कि श्रावस्ती में बुद्धदेव का आगमन हुआ है। वह उनके पास पहुँची और उसने उन्हें अपनी दुःखद कहानी सुनाई।

बुद्धदेव ने उससे कहा, 'पटाचारा, यह संसार नश्वर है। यहाँ कोई किसी का नहीं होता। मनुष्य का जीवन कंटकापूर्ण रहता है और आपदाएँ उसे सतत घेरे रहती हैं। इसलिए मनुष्य को हार न मानकर उनका सामना करना चाहिए।' इस उपदेश का पटाचारा पर असर हुआ। उसने सांसारिक जीवन त्याग कर शाश्वत शांति का मार्ग अपनाने का निश्चय किया और वह बौद्ध भिक्षुणी हो गई।