संयुक्त परिवार, वटवृक्ष की छाँव
मुझे अकेला मत छोड़ो
मौजूदा परिवेश में एकाकी जीवन ने संयुक्त परिवार जैसी वर्षों पुरानी परंपराओं को सामाजिक ताने-बाने से मानो अलविदा कह दिया है। पारिवारिक सुख क्या होता है? यह समझने के लिए आज के मनुष्य को अपने बीते कल से रूबरू होना पड़ेगा। यह सत्य है कि संयुक्त परिवार के सुख दीर्घकालीन होते हैं जिसका अनुभव कठिनाई व दु:ख की घडि़यों में महसूस किया आता है। जब भी परिवार में कोई सुखद प्रसंग आता है तब अपनों की याद बड़ी सताती है। |
विडंबना यह है कि एकांकी जीवन की अवधारणा ने संयुक्त परिवार की व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया है। आजकल के नवविवाहित युगलों को अपने बड़े-बुजुर्गों को साथ रखना अपनी स्वच्छंदता का हनन लगता है। |
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जब भी हम गलतियाँ करते हैं तब हमें मीठी फटकार लगाकर समझाने वालों की याद आती है लेकिन यह तभी संभव है जब हम संयुक्त परिवार का हिस्सा हों। संयुक्त परिवार में सुखी संसार छिपा है, जिसके सुख का लाभ किस्मतवालों को ही मिलता है।हमारे जीवन में कई ऐसी घटनाएँ होती हैं जिनसे हमें सबक मिलता है और अपनी गलतियों का अहसास होता है। यदि समय रहते ही हम अपनी गलतियों को सुधार लें तो शायद हमें बाद में पछताना नहीं पड़ेगा।एक बार प्रकाश अपने पिताजी को वृद्धाश्रम ले जा रहा था, तभी रास्ते में उसकी गाड़ी खराब हो गई और उसने अपने पिताजी को एक पेड़ की छाँव में बैठा दिया। आज वह बड़ा खुश था क्योंकि उसके पिताजी वृद्धाश्रम जो जा रहे थे। थोड़ी देर बाद जब वह लौटा तो पिता से उसकी आँखें चार हुईं। कुछ देर के लिए दोनों ठगे से रह गए। कारण था- पिता का पुत्र के प्रति अगाध स्नेह। प्रकाश को देखते ही उसके पिता की आँखें डबडबा गईं और उनका प्रेम अश्रुओं की धार बन छलक उठा।
सिसकियाँ भरते हुए रूंधे गले से पिता ने प्रकाश को आखिरी बार गले लगाया। उस वक्त वे मानो नि:शब्द हो रहे थे। अपने पिता की इस अवस्था को देखकर प्रकाश को लगा कि उसके पिता वृद्धाश्रम के जीवन के बारे में सोचकर व्यथित हो रहे हैं जबकि सच्चाई यह थी कि वे अपने भाग्य को कोस रहे थे क्योंकि आज उन्हें उनकी करनी का फल मिल रहा था। |
यह सत्य है कि संयुक्त परिवार के सुख दीर्घकालीन होते हैं जिसका अनुभव कठिनाई व दु:ख की घडि़यों में महसूस किया आता है। जब भी परिवार में कोई सुखद प्रसंग आता है तब अपनों की याद बड़ी सताती है। |
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मैं वहाँ आपकी सुख-सुविधाओं का ख्याल रखूँगा' प्रकाश का यह जवाब सुनकर उसके पिता फूट-फूटकर रोने लगे। उस वक्त उनकी आँखों में अपने बीते वक्त की स्मृति छा गई। उन्होंने प्रकाश से कहा- बेटा, कुछ सालों पहले मैंने भी इसी कृत्य को अपने पिता के साथ दोहराया था। विधि का विधान भी कैसा अजीब है कि अतीत में मैंने भी अपने पिता को वृद्धाश्रम छोड़ने से पूर्व इसी पेड़ की छाँव में बिठाया था। जिसकी छाँव में आज हम बैठे हैं। यह सुनते ही प्रकाश का विवेक जाग उठा और उसने पिताजी से घर वापस लौटने की अनुनय-विनय की। उसे पलभर में ही अपना भविष्य आँखों में तैरता नजर आ गया और उसे इस बात का अहसास हो गया कि आज जो व्यवहार वह अपने पिता के साथ कर रहा है। हो सकता है भविष्य में उसके बच्चे भी उसके साथ वैसा ही करें। आज उसे अपने पिता की हालत देखकर 'जैसी करनी वैसी भरनी' की उक्ति चरितार्थ होती नजर आ रही थी।विडंबना यह है कि एकांकी जीवन की अवधारणा ने संयुक्त परिवार की व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया है। आजकल के नवविवाहित युगलों को अपने बड़े-बुजुर्गों को साथ रखना अपनी स्वच्छंदता का हनन लगता है। शायद इसीलिए शरीर के खराब हिस्से की तरह वे उन्हें घर से बाहर निकालकर वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा देते हैं। उस वक्त उन्हें अपने भविष्य का तनिक भी ख्याल नहीं आता। प्रकाश की तरह वे भी भूल कर बैठते हैं इसलिए समय रहते संभल जाएँ और परस्पर सामंजस्य से अपने परिवार को सुखी बनाएँ। तभी तो कहते हैं 'संयुक्त परिवार वटवृक्ष की छाँव', जिसकी छाँव में हजारों छोटे-बड़े पौधे पलते हैं।