श्रीनगर। कश्मीर में धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहे पर्यटन को गति देने के लिए इस बार पर्यटन विभाग पहली अप्रैल से बहार-ए-कश्मीर महोत्सव शुरू करेगा और इसके लिए वह डल किनारे स्थित एशिया के सबसे बड़े ट्यूलिप गार्डन का सहारा लेगा जिसे इस बार 1 अप्रैल को खोलने जा रहा है। विश्वप्रसिद्ध डल झील के किनारे जबरवान पहाड़ी की तलहटी में आबाद इस ट्यूलिप गार्डन में फूल खिलना शुरू हो गए हैं।
गौरतलब है कि 12 हैक्टेयर क्षेत्र में फैले गार्डन में लोग इस वर्ष 60 से अधिक प्रजातियों के 20 लाख ट्यूलिप का दीदार करेंगे। गार्डन को एक नया लुक भी देने के प्रयास किए गए हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटक इस गार्डन की तरफ आकर्षित हो सकें।
पर्यटन सचिव फारुक अहमद शाह कहते हैं कि कश्मीर में बहार का आगाज परंपरागत रूप से अप्रैल में ही होता है इसलिए पहली अप्रैल को ही ट्यूलिप गार्डन को इस साल पर्यटकों के लिए खोला जाएगा। जब्रवान की पहाड़ियों के दामन में डल किनारे स्थित इस बाग में 46 किस्मों के 20 लाख से ज्यादा ट्यूलिप पर्यटकों का स्वागत करेंगे। बहार-ए-कश्मीर महोत्सव पहली से 15 अप्रैल तक चलेगा।
उन्होंने कहा कि इस महोत्सव में पर्यटकों को कश्मीरी व्यंजनों का कश्मीरी अंदाज में मजा लेने और कश्मीरी दस्तकारी को करीब से देखने, समझने व खरीदने का मौका भी मिलेगा। पर्यटन सचिव ने बताया कि बहार-ए-कश्मीर में ट्यूलिप महोत्सव के साथ एक आलमी मुशायरा भी आयोजित किया जा रहा है। इसमें दुनियाभर के नामवर कवि और शायर भाग लेंगे।
उन्होंने कहा कि बीते साल जो हालात रहे हैं, उससे कश्मीर के पर्यटन को खूब नुकसान पहुंचा है। हम पर्यटन क्षेत्र को पुन: पटरी पर लाने के लिए देशी-विदेशी सैलानियों को कश्मीर में लाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रहे हैं। उम्मीद है कि आने वाला पर्यटन सीजन पूरी तरह हिट रहेगा और पर्यटन जगत से जुड़े स्थानीय लोगों को इसका पूरा लाभ मिलेगा।
वे कहते हैं कि कि इस बार मौसम में बदलाव के कारण ट्यूलिप के पूरे फूल खिलना शुरू हो चुके हैं। कुछ किस्में पूरी तरह से खिल चुकी हैं, जबकि कुछ अगले एक-दो हफ्ते तक खिल जाएंगी। तापमान भी बिलकुल अनुकूल है।
वे कहते थे कि अगर मौसम ने इसी तरह साथ निभाया तो इस महीने के अंत तक गार्डन को आम पब्लिक के लिए खोल देंगे। इस बार फूलों की कुछ और नई किस्में उगाई हैं जिनमें स्ट्रांग गोल्ड, टूरिजमा, पर्पल फ्लेग आदि हैं। बीते साल गार्डन में केवल 4 टेरिस गार्डन थे, लेकिन इस साल हमने 2 और टेरिस गार्डन तैयार किए हैं। गौरतलब है कि बीते 2 वर्षों में करीब 10 लाख पर्यटकों ने गार्डन की सैर की थी। इससे लाखों रुपए का राजस्व कमाया था।
डल झील का इतिहास तो सदियों पुराना है। पर ट्यूलिप गार्डन का मात्र 9 साल पुराना। मात्र 9 सालों में ही यह उद्यान अपनी पहचान को कश्मीर के साथ यूं जोड़ लेगा, कोई सोच भी नहीं सकता था। डल झील के सामने के इलाके में सिराजबाग में बने ट्यूलिप गार्डन में ट्यूलिप की 60 से अधिक किस्में आने-जाने वालों को अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रहती हैं। यह आकर्षण ही तो है कि लोग बाग की सैर को रखी गई फीस देने में भी आनाकानी नहीं करते। जयपुर से आई सुनीता कहती थीं कि किसी बाग को देखने का यह चार्ज ज्यादा है, पर भीतर एक बार घूमने के बाद लगता है कि यह तो कुछ भी नहीं है।
सिराजबाग हरवान-शालीमार और निशात चश्माशाही के बीच की जमीन पर करीब 700 कनाल एरिया में फैला हुआ है। यह 3 चरणों का प्रोजेक्ट है जिसके तहत अगले चरण में इसे 1,360 और 460 कनाल भूमि और साथ में जोड़ी जानी है। शुरू-शुरू में इसे शिराजी बाग के नाम से पुकारा जाता था। असल में महाराजा के समय उद्यान विभाग के मुखिया के नाम पर ही इसका नामकरण कर दिया गया था, पर अब यह शिराज बाग के स्थान पर ट्यूलिप गार्डन के नाम से अधिक जाना जाने लगा है।
जब्रवान पहाड़ियों की तलहटी में स्थित ट्यूलिप गार्डन में खिलने वाले सफेद, पीले, नीले, लाल और गुलाबी रंग के ट्यूलिप के फूल आज नीदरलैंड्स में खिलने वाले फूलों का मुकाबला कर रहे हैं। फूलप्रेमियों के लिए ये नीदरलैंड्स का ही माहौल कश्मीर में इसलिए पैदा करते हैं, क्योंकि भारतभर में सिर्फ कश्मीर ही एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां पर मार्च से लेकर मई के अंत तक 3 महीनों के दौरान ये अपनी छटा बिखेरते हैं।
रोचक बात यह है कि पिछले साल ट्यूलिप गार्डन के आकर्षण में बंधकर आने वालों की भीड़ से चकित होकर कश्मीर के किसानों ने भी अब ट्यूलिप के फूलों की खेती में हाथ डाल लिया है। वे इस कोशिश में कामयाब भी हो रहे हैं कि जिन केसर क्यारियों में बारूद की गंध 26 सालों से महक रही हो वहां अब ट्यूलिप की खुशबू भी हो, चाहे वह कम अवधि के लिए ही क्यों न हो?
यह सच है कि अभी तक कश्मीर में डल झील और मुगल गार्डन, शालीमार बाग, निशात और चश्माशाही ही आने वालों के आकर्षण का केंद्र थे और कश्मीर को दुनियाभर के लोग इसलिए जानते थे। लेकिन अब वक्त ने करवट ली तो ट्यूलिप गार्डन के कारण कश्मीर की पहचान बनती जा रही है। चाहे इसके लिए डल झील पर मंडराते खतरे से उत्पन्न परिस्थिति कह लीजिए या फिर मुगल उद्यानों की देखभाल न कर पाने के लिए पैदा हुए हालात कि कश्मीर अब ट्यूलिप गार्डन के लिए जाना जाने लगा है।