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Last Modified: फरीदाबाद (हरियाणा) , सोमवार, 29 जनवरी 2024 (14:43 IST)

बढ़ते जलस्तर से सिकुड़ रहा सुंदरबन द्वीप, विस्थापन की समस्या से जूझ रहे लोग

बढ़ते जलस्तर से सिकुड़ रहा सुंदरबन द्वीप, विस्थापन की समस्या से जूझ रहे लोग - Sundarban island is shrinking due to rising water level
Sundarban island is shrinking due to rising water level : सुंदरबन में जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा प्रभाव गरीब और निचली जाति की महिलाओं पर पड़ता है। यह इलाका जलवायु परिवर्तन के अनुसार सुधार को लेकर अहम सबक भी सिखाता है। पश्चिम बंगाल में स्थित सुंदरबन निचले द्वीपों का एक समूह है और दुनिया में सबसे बड़े मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
 
भारतीय सुंदरबन में मौसुनी द्वीप पर रहने वाले पंचानन दोलुई को बाढ़ और नदी के कटाव के कारण तीन बार घर बदलना पड़ा। वह नदी किनारों के सिकुड़ने के कारण विस्थापन से बचने के लिए हर बार थोड़ा पीछे हटकर अपना घर बनाते हैं। उन्होंने नदी को जमीन के बड़े हिस्से को निगलते देखा है। उन्होंने कहा, हम कहां जाएं? रहने के लिए कोई जगह नहीं है। 
 
पश्चिम बंगाल में स्थित सुंदरबन निचले द्वीपों का एक समूह है और दुनिया में सबसे बड़े मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का प्रतिनिधित्व करता है। यह कई विलुप्तप्राय प्रजातियों का घर है और चक्रवातों, तूफानी लहरों और अन्य पर्यावरणीय खतरों के खिलाफ प्राकृतिक बाधा की तरह कार्य करता है।
 
चीजें तेजी से बदल रही हैं
पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष कल्याण रुद्र ने कुछ द्वीपों के बारे में कहा, कटाव के कारण कई द्वीप मनुष्य के रहने के लिए सुरक्षित नहीं हैं। वर्ष 2019 से 2021 के बीच भारत के पूर्वी तट पर आए चार चक्रवात जलवायु परिवर्तन और समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण सुंदरबन में मौसम की अप्रत्याशित घटनाओं की ओर इशारा करते हैं।
 
सुंदरबन के निवासी जलवायु परिवर्तन के कारण दशकों से विस्थापन की समस्या झेल रहे हैं। लोहाचारा द्वीप 1996 में समुद्र में समाने वाले शुरुआती द्वीपों में से एक था, जिसके निवासियों को पड़ोसी द्वीपों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
 
बार-बार विस्थापन के कारण सुंदरबन में महिला प्रधान घरों की संख्या भारत के किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में अधिक है, लेकिन इन परिवारों को अक्सर कर्ज के बोझ, आश्रितों की अधिक संख्या, आर्थिक तंगी और आजीविका के सीमित साधनों की समस्या का सामना करना पड़ता है।
 
लवणता बढ़ने के कारण खेती में बदलाव की मजबूरी
लवणता प्रतिरोधी धान की खेती इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के अनुसार ढलने का एक महत्वपूर्ण रूप है और इसकी खेती पिछले दशक में तेजी से लोकप्रिय हुई है। बढ़ी हुई लवणता के कारण व्यावसायिक पैमाने पर खारे पानी के झींगा पालन को भी बढ़ावा मिला है जिससे भूमि का क्षरण हुआ है और क्षेत्र के सतत विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
 
झींगा पालन के क्षेत्र में कम वेतन पर मजदूरी करने को मजबूर महिलाओं के स्वास्थ्य पर खारे पानी में छह घंटे तक खड़े रहने और अन्य कारणों से प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
 
बाघों का गुस्सा
वन संसाधनों पर दबाव के कारण मानव और जानवरों के बीच संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ गई है। बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में ऐसी महिलाओं की संख्या अधिक है जिनके पति मछली पकड़ने या शहद इकट्ठा करने के लिए सुंदरबन आरक्षित वन क्षेत्र में गए थे और बाघों द्वारा मारे गए।
 
हाशिए पर पड़े लोगों को कैसे दरकिनार कर दिया जाता है
जलवायु आपदा के बाद क्षेत्र में राहत के प्रयास अक्सर चुनिंदा लोगों तक ही पहुंचते हैं जैसा कि सुंदरबन में चक्रवात अम्फान के बाद महिलाओं के साक्षात्कार से पता चलता है।
 
सुंदरबन में रहने वाली नीला घोष ने अनुसंधानकर्ताओं से कहा, दो कमरे का हमारा मकान ढह गया और पेड़ उन पर गिर गए। हम अपने घर में नहीं जा सके लेकिन राहत सामग्री उन्हीं घरों तक पहुंची जो इससे प्रभावित नहीं हुए थे और जिनके मकान मालिक इन घरों में नहीं रहते। हम हमारे टूटे घरों के बाहर बैठे हैं और हमें बहुत कम धन मिल रहा है।
 
सुंदरबन का भविष्य अधर में लटका
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता जलवायु परिवर्तन के कारण हुए नुकसान के कारण संयुक्त राष्ट्र के हानि एवं क्षति कोष से मदद मिलने के पहले दावेदारों में से एक बनी। इसके लेकर सीओपी28 शिखर सम्मेलन के दौरान सहमति बनी थी। इस कोष में सुंदरबन से जलवायु-विस्थापित आबादी को कवर किया जाएगा। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते खतरों के मद्देनजर भारत के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने 2023 की शुरुआत में एक मसौदा नीति बनाई।
 
प्राधिकरण भारत को जलवायु परिवर्तन के अनुसार ढालने के प्रयासों में इस नीति को आधार बता रहा है लेकिन समस्या यह है कि केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच संबंध विवादास्पद है तथा मई 2021 में चक्रवात यास से हुए नुकसान की समीक्षा के दौरान यह विवाद और बढ़ गया। जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हुई आबादी की मदद करने में इस नीति की प्रभावशीलता परखी जानी अभी बाकी है।
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