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Written By Author सुरेश डुग्गर
Last Modified: बुधवार, 19 अक्टूबर 2016 (19:18 IST)

खंडहर में तब्दील हो रहा है कश्मीर

Ruins
श्रीनगर। श्रीनगर से 16 किमी दूर स्थित पंपोर के रहने वाले अब्दुल रशीद ने जैसे ही गोलियों की आवाज सुनी और जैसे ही उसके कानों में यह शब्द पड़े कि आतंकियों ने उसके इलाके में फिदायीन हमला कर दिया है तो उसके हाथ दुआ के लिए उठ गए। यह दुआ अपनी जान को बचाने की खातिर नहीं थी बल्कि अपने मकान को बचाने की खातिर थी।

 
आप हैरान होंगे कि अब कश्मीरी अपने मकान को बचाने की खातिर दुआ क्यों करने लगे हैं। तो यह उनकी मजबूरी है। दरअसल, आतंकवादी फिदायीन हमले के उपरांत किसी भी इमारत में घुस जाते हैं। ऐसे में सुरक्षाबल उस इमारत पर हुए आतंकी कब्जे को खत्म करवाने के लिए मजबूरी में उसे ढहाना पड़ता है। नतीजा कश्मीर खंडहर में बदलता जा रहा है।
 
‘यह सुरक्षाबलों की नई नीति है, ’अब्दुल रशीद कहता है। वह खुदा का शुक्रिया अदा करता है कि पम्पोर गांव में फिदायीन हमला बोलने वाले आतंकी उसके मकान में नहीं घुसे थे बल्कि वे उसके मकान से थोड़ी दूर स्थित उसके रिश्तेदार की इमारत में जा घुसे थे जो अब खंडहर में इसलिए बदल चुकी है क्योंकि आतंकियों को नेस्तनाबूद करने की खातिर सुरक्षाबलों की ओर से मोर्टार तथा राकेटों की अनगिनित बौछार उस पर की जा चुकी है।
 
पहले यह नीति कभी भी सुरक्षाबलों की ओर से नहीं अपनाई गई थी। मगर जबसे आतंकी फिदायीन हमला बोल, सुरक्षाबलों को और क्षति पहुंचाने के इरादों से इमारतों पर कब्जा करने लगे हैं तो सुरक्षाधिकारियों को यह कड़ा फैसला लेना ही पड़ रहा है।
 
परिणामस्वरूप अब इस नीति का जोर शोर से इस्तेमाल हो रहा है कि आतंकी कब्जा समाप्त करने के लिए इमारत को ही उड़ा दो। यह इमारत चाहे आम कश्मीरी नागरिकों की हो, सरकारी हो या फिर सुरक्षाबलों की। कई फिदायीन हमलों के दौरान सुरक्षाबलों को अपनी ही आवासीय कालोनियों के मकानों को तो, कई बार अपने शिविरों के भीतर स्थित अपनी इमारतों को भी ढहाना पड़ा है।
 
पिछले 26 सालों में कितनी इमारतों को इस प्रकार की नीति अपनाते हुए ढहाया जा चुका है कोई आंकड़ा ही नहीं है। यह संख्या अब सैकड़ों में पहुंच चुकी है क्योंकि आए दिन एक दो फिदायीन हमले कश्मीर में अब आम हो चुके हैं।
 
यही कारण है कि अगर किसी क्षेत्र में आतंकियों की ओर से फिदायीन हमला किया जाता है तो उस क्षेत्र की जनता सबसे पहले जान बचाने के लिए नहीं बल्कि अपना मकान बचाने की खातिर दुआ करने में जुट जाती है। ऐसा करना इसलिए भी उनकी मजबूरी बन चुका है क्योंकि अगर मकान तहस नहस हो गया तो सिर छुपाने की जगह कहां मिलेगी। यह कड़वी सच्चाई है कि ऐसे कई परिवार अभी भी सड़कों पर खुले आसमान के नीचे हैं जिनके घर ऐसी ही कार्रवाइयों के शिकार हो चुके हैं।
 
हालांकि सुरक्षाधिकारी इन परिस्थितियों के लिए आतंकियों को ही दोषी ठहराते हुए कहते हैं कि अगर वे इन मकानों में शरण न लें तो ये मकान बच सकते हैं। एक सुरक्षाधिकारी के बकौलः ‘आतंकियों द्वारा जिस मकान में शरण ली जाती है उसे बचाने की हमारी हरसंभव कोशिश होती है। लेकिन अंत में हमें उस पर मोर्टार से हमला इसलिए करना पड़ता है ताकि आतंकी किसी और को क्षति न पहुंचाए तथा उनका खात्मा हो सके। यह बात अलग है कि आतंकियों पर इन बातों का कोई प्रभाव नहीं है और आम नागरिक हैं कि बस अपने मकानों को खंडहरों में तब्दील होते हुए बेबसी से देखने के सिवाय कुछ नहीं कर पाते।