असिस्टेंट प्रोफेसर पीयूष गर्ग एवं विद्यार्थी अंशुमान कंबोज ने बनाया मणिपाल इंफॉर्मेशन रोबोट 'माइरो'। 'माइरो' रोबोट के माध्यम से विश्वविद्यालय के बारे में इच्छित जानकारी देने वाला मणिपाल विश्वविद्यालय बना देश का प्रथम निजी विश्वविद्यालय।
मणिपाल विश्वविद्यालय, जयपुर के बीटेक-ईसीई के तृतीय वर्ष के विद्यार्थी अंशुमान कंबोज ने विश्वविद्यालय में ईई, डिपार्टमेंट में कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसर एवं फैकल्टी सुपरवाइजर पीयूष गर्ग के सान्निध्य में मणिपाल इंफॉर्मेशन रोबोट माइरो को 15 दिन के अथक परिश्रम से बनाया है। इस माइरो को बनाने पर मणिपाल विश्वविद्यालय, जयपुर के चांसलर एवं चेयरपर्सन प्रो. के. रामनारायण एवं प्रेसीडेंट, प्रो. संदीप संचेती, प्रो-प्रेसीडेंट, प्रो. एनएन शर्मा, रजिस्ट्रार, प्रो. वंदना सुहाग एवं डीन, इनोवेशन एंड रिसर्च, प्रो. बीके शर्मा ने विद्यार्थी अंशुमान कंबोज एवं फैकल्टी पीयूष गर्ग को बधाई दी है।
क्या है मणिपाल इंफॉर्मेशन रोबोट 'माइरो' :
यह एक ऐसा रोबोट है, जो कि मानव आवाज को पहचानकर अपने चेहरे के मूवमेंट के माध्यम से मणिपाल विश्वविद्यालय, जयपुर के बारे में इच्छित जानकारी आवाज के माध्यम से चाहने वाले व्यक्ति को देता है।
कैसे बनाया 'माइरो' को :
माइरो को बनाने से पहले इसका एक छोटा वर्जन 'एलिस' के नाम से अंशुमान ने पीयूष गर्ग के दिशा-निर्देशन में बनाया एवं इसे एमयूजे में आयोजित एक कांफ्रेंस में प्रदर्शन करने के लिए रखा। यह भी आवाज पहचानकर माइरो के जैसे ही कार्य करने की प्रणाली पर विकसित किया गया था।
पीयूष गर्ग ने बताया कि इसी के चलते मणिपाल विश्वविद्यालय, जयपुर के प्रेसीडेंट प्रो. संदीप संचेती ने गुरु-शिष्य को मिलकर रोबोट का उपयोग सूचना एवं संचार प्रदान करने के उद्देश्य से बड़े स्तर पर तैयार करने को कहा एवं इसका उपयोग मणिपाल विश्वविद्यालय, जयपुर की सूचना को रोबोट के जरिए आवश्यक लोगों तक प्रश्नोत्तरी के माध्यम से पहुंचाने की ठान ली।
ऐसे काम करता है 'माइरो' :
माइरो को सर्वोमोटर के माध्यम से असेम्बल करके बनाया गया है जिसे माइक्रो कंट्रोल के माध्यम से कंट्रोल किया जाता है। इसमें एक आवाज को पहचानने की तकनीक को विकसित किया गया है। प्राथमिक तौर पर माइरो स्लीप मोड की प्रोग्रामिंग पर आधारित है। लेकिन जैसे ही कोई इस माइरो के पास जाता है एवं इसके सामने खड़ा होता है, यह स्वत: ही उस व्यक्ति अर्थात मानव की उपस्थिति को पहचान लेता है एवं उसके द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर देने लगता है।
'माइरो' के मुख्य कार्य :
माइरो एक नई पीढ़ी का पारस्परिक संवाद कायम करने का एक सिस्टम है। इसमें आवाज को पहचानकर उसके प्रति उत्तर देने की क्षमता को विकसित किया गया है। इसके जरिए कोई भी व्यक्ति मणिपाल विश्वविद्यालय, जयपुर में उपलब्ध सुविधाओं एवं सेवाओं के बारे में माइरो जानकारी प्राप्त कर सकता है।
'माइरो' की लागत :
माइरो को मात्र 13,500 रुपए की लागत से बनाया गया है। इसे 3 चरणों में विकसित किया गया है। प्रथम बॉडी, दूसरा सिर एवं तीसरा कपड़े एवं फेस पेंट। बॉडी का स्ट्रक्चर 5 एमएम एवं 10 एमएम की लकड़ी की चिपों से तैयार किया गया है। नट-बोल्ट की सहायता से इसे जोड़कर रोबोट की आकृति दी गई है। इसके साथ ही लकड़ी का हेड बनाकर इसमें आवश्यक इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट जोड़े गए हैं। सिर को लकड़ी एवं प्लास्टिक की बोतलों से मिलाकर बनाया गया है। चेहरे को एल्युमीनियम की शीट को प्रेस कर बनाया गया है। फिनिशिंग टच देने के लिए एक चमकीले पेपर का इस्तेमाल भी इसमें किया गया है। चेहरे को और अधिक खूबसूरत बनाने के लिए मूवमेंटल आईबॉल, डिफरेंट कलर्स का इस्तेमाल किया गया है, साथ ही चेहरे को मानव चेहरे की हरकत देने के लिए लकड़ी, बोतल इत्यादि को इस खूबसूरती से तराशा गया है एवं उन्हें इलेक्ट्रॉनिक तकनीक से इस प्रकार से जोड़ा गया है कि वे आराम से कार्य कर सकें।
'माइरो' के फायदे :
ऐसे माइरो को कोई भी शिक्षण एवं गैर-शैक्षणिक संस्थान अपनी इच्छानुसार डेवलप कर अपने संस्थान की जानकारी 24 घंटे दे सकता है। इससे 24 घंटे में 3 व्यक्तियों का कार्य लिया जा सकता है। मात्र 13,500 रुपए की एक बार की लागत में यह रोबोट लंबे समय तक काउंसलिंग का कार्य इच्छित क्षेत्र में कर सकता है। बस, जरूरत है तो इसमें आवश्यकता के अनुसार प्रोग्रामिंग को परिवर्तित करने की, बाकी सभी चीजें समान रहेंगी।