प्रयागराज। बदलते परिवेश में मोबाइल और इंटरनेट लोगों की प्रगति के लिए जहां आवश्यक संसाधनों में शामिल हो गया है वहीं दूसरी ओर इसका लोगों के स्वास्थ्य और व्यवहार में इसका प्रतिकूल असर भी पड़ रहा है। मोबाइल के एक सीमा से अधिक प्रयोग से निजात दिलाने के लिए मोतीलाल नेहरु मंडलीय (काल्विन) अस्पताल में प्रदेश का पहला 'मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र' शुरू किया गया है।
मनोचिकित्सक डॉ. राकेश पासवान ने मंगलवार को यहां बताया कि मोबाइल और इंटरनेट लोगों की प्रगति के लिए जहां आवश्यक संसाधनों में शामिल हो गया है, वहीं इसके अधिक प्रयोग से लोगों के स्वास्थ्य में प्रतिकूल असर पड़ रहा है। डॉ. पासवान ने बताया कि मोबाइल के एक सीमा से अधिक प्रयोग से निजात दिलाने के लिए मोतीलाल नेहरु मंडलीय (काल्विन) अस्पताल में प्रदेश का पहला 'मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र' शुरू किया गया है।
उन्होंने बताया कि मोतीलाल नेहरु मंडलीय (काल्विन) अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉ. वीके सिंह के नेतृत्व में गठित राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ कार्यक्रम की टीम कार्य कर रही है। जिसके नोडल अधिकारी प्रयागराज के एडिशनल मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. वीके मिश्रा हैं।
केंद्र के इंचार्ज मनोचिकित्सक डॉ. राकेश पासवान ने बताया कि बच्चों के साथ-साथ वरिष्ठ नागरिकों और महिलाओं, युवाओं में बढ़ती लत की समस्या को देखते हुए अस्पताल में मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र की सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को ओपीडी की शुरुआत की गई है। इसमें मोबाइल और इंटरनेट की लत छुड़ाने के लिए खास ओपीडी शुरू हुई है।
इसमें मरीजों की काउंसलिंग के साथ आवश्यकता पड़ने पर दवाएं भी उपलब्ध कराई जाएंगी। इसके साथ ही कुछ खास थेरेपी योग भी बताया जाएगा। उन्होंने बताया कि मोबाइल के आदी बन चुके लोगों के स्वास्थ्य के साथ ही व्यवहार में भी प्रतिकूल बदलाव देखने को मिल रहा है जिससे लोग चिड़चिड़ेपन और बेचैनी के शिकार हो रहे हैं। इसके लती हुए लोगों में सिरदर्द, आंखों की रोशनी कमजोर होना, नींद न आना, अवसाद, सामाजिक अलगाव, तनाव, आक्रामक व्यवहार, वित्तीय समस्याएं, बर्बाद हुए रिश्ते और मानसिक विकास जैसे कई गंभीर समस्याओं का कारण बनती है।
स्वस्थ, समृद्ध और शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए इस लत को दूर करना महत्वपूर्ण है। सेलफोन के आदी लोग लंबे समय तक काम पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम नहीं होते हैं। बहुत अधिक स्क्रीन समय मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम हो जाती है।
डॉ. पासवान ने बताया कि मोबाइल की लत से पीड़ित लोग नोमोफोबिया से पीड़ित होते हैं। यह हमारे स्वास्थ्य, रिश्तों के साथ-साथ काम पर भी असर डालता है। मोबाइल फोन दुनियाभर के किसी भी व्यक्ति के साथ तुरंत जुड़ने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। वे हमें किसी भी आवश्यक जानकारी को खोजने में मदद करते हैं और मनोरंजन का एक बड़ा स्रोत हैं।
उन्होंने कहा कि यह आविष्कार हमें सशक्त बनाने के उद्देश्य से किया गया था, लेकिन यह कुछ ऐसा है, जो हमारे ऊपर हावी हो रहा है। उन्होंने बताया कि हाइड्रोफोबिया, एक्रोफोबिया और क्लेस्ट्रोफोबिया के बारे में सुना होगा लेकिन क्या नोमोफोबिया के बारे में सुना है। यह एक नए तरह का डर है जो मनुष्यों में बड़ी संख्या में देखा जाता है।
नोमोफोबिया 'कोई मोबाइल फोन, फोबिया' नहीं है। यह एक तरह से मोबाइल फोन के बिना होने का डर है। मोबाइल फोन के आदी किशोर सबसे खराब हैं। वे अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते। मोबाइल की लत उनके ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को कम करती है और चीजों को समझने की उनकी क्षमता को कम करती है।
डॉ. पासवान ने बताया कि अध्ययनों से पता चलता है कि जो लोग दिन में कई घंटों तक अपने मोबाइल फोन पर बात करते हैं, उनमें मस्तिष्क कैंसर विकसित होने की संभावना अधिक होती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि मोबाइल फोन मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने वाली रेडियो तरंगों का उत्सर्जन करते हैं। हालांकि कई वैज्ञानिक और चिकित्सा व्यवसायी इस खोज से सहमत नहीं हैं।