रविवार, 1 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. प्रादेशिक
  4. Loksabha election in Jammu Kashmir
Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Modified: शुक्रवार, 24 मार्च 2017 (13:02 IST)

पंचों-सरपंचों की मदद के बिना लड़ा जा रहा है लोकसभा चुनाव

पंचों-सरपंचों की मदद के बिना लड़ा जा रहा है लोकसभा चुनाव - Loksabha election in Jammu Kashmir
श्रीनगर। श्रीनगर तथा अनंतनाग लोकसभा सीटों के लिए हो रहे उप-चुनाव की सबसे बड़ी खास बात यह है कि इसमें इस बार पंचों और सरपंचों की शिरकत नहीं है। उन्होंने इसमें शिरकत करने से इंकार इसलिए किया क्योंकि आतंकियों ने उन्हें धमकी और चेतावनी दी थी जिसका पूरा असर उन पर दिख रहा है।
 
लोकसभा चुनावों के प्रचार प्रसार से दूर रहने की घोषणा बकायदा पंचों और सरपंचों द्वारा प्रेस कांफ्रेंस में की जा चुकी है। हालांकि उनके द्वारा यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि वे मतदान से भी दूर रहेंगें या नहीं। दरअसल आतंकियों ने पंचों-सरपंचों में दहशत फैलाने की खातिर चुनावों की घोषणा के साथ ही उन पर हमलों तथा उनकी हत्याओं के सिलसिले को आरंभ कर दिया था।
 
जम्मू कश्मीर पंचायत कांफ्रेंस के अध्यक्ष शफीक मीर कहते थे कि वे इन चुनावों से इसलिए दूर रहेंगें क्योंकि सरकार उनकी रक्षा कर पाने में नाकाम हो रही है। उन्होंने आरोप भी लगाया था कि प्रत्येक चुनाव में राज्य व केंद्र सरकारों द्वारा उन्हें ही बलि का बकरा बनाया जाता रहा है।
 
यह सच है कि कश्मीर में पंचों-सरपंचों को मिलने वाली सुरक्षा नाममात्र की ही है। उदाहरण के तौर पर अगर कुपवाड़ा को ही लें तो 4128 पंच-सरपंच हैं और 12 को ही सुरक्षा मुहैया करवाई गई है। सुरक्षा के मामले पर पुलिस अधिकारी कहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षा मुहैया नहीं करवाई जा सकती और सुरक्षा मुहैया करवाने का एक पैमाना होता है। अधिकारी मानते हैं कि पंचों और सरंपचों ने व्यक्तिगत सुरक्षा गार्ड मांगे थे क्योंकि चुनाव प्रक्रिया आरंभ होने पर उन पर हमले बढ़े थे।
 
राजनीतिक पंडितों के मुताबिक, पंचों-सरपंचों का लोकसभा चुनाव प्रक्रिया से अपने आप को दूर रखना दुखद है क्योंकि देखा जाए तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया इन्हीं से शुरू होती है और उन्हें लोकतंत्र की नींव माना जाता है। ऐसे में उन्हें मनाने के प्रयास नाकाम रहे हैं। इसे आतंकियों की जीत के तौर पर देखा जा रहा है जो चाहते हैं कि मतदाता चुनाव प्रक्रिया से कट जाए।
 
हालांकि आतंकियों के लिए खुश होने का बड़ा कारण नहीं है क्योंकि अतीत में देखा गया है कि आतंकियों की चुनावों से दूर रहने की धमकियां और चेतावनियां अधिक असर नहीं दिखा पाती हैं और लोग मतदान को निकल ही पड़ते हैं। शायद यही कारण था कि लोकसभा चुनावों में किस्मत आजमा रहे नेता और उनके दल पंचों-सरपचों की चुनावों से दूर रहने की घोषणा को इतनी तरजीह नहीं दे रहे हैं।
 
ये भी पढ़ें
चप्पलबाज सांसद गायकवाड़ को एयर इंडिया का बड़ा झटका