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जिम्मी मगिलिगन सेंटर पर पर्यावरण सप्ताह का तीसरा दिन

जिम्मी मगिलिगन सेंटर पर पर्यावरण सप्ताह का तीसरा दिन - Environment Week At Jimmy McGilligan Centre
सनावदिया स्थित जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट में आयोजित यूएनईपी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम सप्ताह के तीसरे दिन इंदौर शहर महिला, पुरुष और बच्चे एकत्रित हुए। पर्यावरण से सम्बंधित व्याख्यानों एवं अन्य आयोजनों की श्रृंखला को आगे बढ़ाते कार्यक्रम का आरंभ गायत्री मंत्रोच्चार एवं भावपूर्ण भजनों के साथ हुआ।
 
इंदौर के प्रतिष्ठित उद्योगपति एवं पर्यावरण तथा वृक्ष प्रेमी श्री अम्बरीष केला ने वृक्षों की महत्ता और पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति और उसके संरक्षण में उनकी भूमिका का वर्णन किया। बचपन से वृक्षों से अपने लगाव को एक तरह से “अनभिव्यक्त रोमांस” की संज्ञा देते हुए उन्होंने विकास के नाम पर उन्हें काटे जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उनहोंने बताया कि प्रतिवर्ष मानव 10 अरब वृक्षों की बलि विकास के वेदी पर देता है और पृथ्वी पर अपने उद्भव के समय से अब तक करीब 54 प्रतिशत जंगल नष्ट कर चुका है।

आगे उनहोंने आम जनता और सरकार में पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता की सराहना भी की और सबका आह्वान किया कि सब मिल कर फिर से एक स्वच्छ एवं स्वस्थ वातावरण बनाने का प्रयास करें और अधिक से अधिक पेड़ लगाएं। स्थिति की गंभीरता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि अगर शीघ्र और सघन प्रयास नहीं किए गए तो सन 2035 तक गंगा जी सूख जाएंगी और नर्मदाजी भी खतरे में होंगी क्योंकि उनका तो अस्तित्व ही वृक्षों से है।
 
अम्बरीष जी ने व्यक्तिगत स्तर पर और सामूहिक आयोजनों द्वारा वृक्षारोपण के अलावा अफ्फोरेस्ट पद्धति से शहरी क्षेत्रों में छोटी-छोटी जगहों पर सघन वन लगाने पर जोर दिया और कहा कि अभी की आपातकालीन स्थिति में स्थिति में ऐसे ही तात्कालिक उपचार की आवश्यकता है। सब की कोशिश होनी चाहिये कि जहां संभव हो वहां पेड़ लगाएं।
 
इसी दिशा में एक और कदम भिचौली स्थित जैविक सेतु के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि यह अपने नाम के मुताबिक ही एक सेतु है जहां जैविक खेती करने वाले अपना उत्पाद सीधे ग्राहक को दे सकते हैं। वह एक सेतु समाज और संस्कृति के बीच भी है और एक सेतु विचारशील लोगों के लिए है जिस से उनके प्रयासों को बल मिले। जैविक खेती ही पृथ्वी और मानव के स्वास्थ्य की सुरक्षा कर सकता है, उन्होंने कहा।

जनक दीदी ने उनके विचारों का समर्थन करते हुए कहा कि पर्यावरण संरक्षण को समाज की आवश्यकताओं से जोड़ना जरूरी है तभी बदलाव आएगा। अपने अनुभव से उन्होंने देखा कि कैसे झाबुआ क्षेत्र की महिलाओं ने सोलर कुकिंग के माध्यम से कटते जंगलों को बचाया और सहजन के वृक्षों से रतौंधी जैसी बीमारी से लोगों को बचाया।
 
श्रीमती रश्मि जोशी ने पर्यावरण को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ते हुए कहा कि आधुनिक युग की अंध दौड़ के पहले भारतीय समाज पूरी तरह से प्रकृति से जुड़ा हुआ था। खान पान, व्रत त्यौहार, वेश भूषा और गीत संगीत, सब ऋतुओं और परिवेश से जुड़े हुए थे। वेदों ने 10 कुंए एक तालाब बराबर, 10 तालाब एक झील बराबर, 10 झील एक बेटे बराबर और 10 बेटे एक वृक्ष बराबर माने थे। 
 
उनकी बातचीत में इस बात पर दुःख झलका कि आज हम अपनी समृद्ध संस्कृति को भूल कर पाश्चात्य रंग में ऐसा रंग गए हैं कि अपनी नैसर्गिक गुणों को भी तभी मान्यता देते हैं जब कोई पश्चिमी शोध उसका अनुमोदन करे। उन्होंने मां अहिल्या के व्यक्तित्व की व्याख्या करते हुए कहा वे एक कुशल शासक होने के अलावा एक अनुकरणीय पर्यावरण प्रेमी एवं भारतीय संस्कृति की पुरोधा थीं। आज आवश्यकता है कि हम सब उनसे प्रेरणा लेते हुए उनके दिखाये मार्ग पर चलें।
 
जनक पलटा ने सबका धन्यवाद करते हुए कहा कि सब अपने अपने स्तर पर योगदान देते रहें और बात से अधिक काम करते हुए एक ऐसी सेना बनाएं जिसका उद्देश्य मालवा की प्रख्यात शब ए मालवा को वापस लाना हो।