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Last Updated :नई दिल्ली , सोमवार, 21 नवंबर 2016 (12:40 IST)

नोटबंदी के बाद असमंजस में हैं सेक्स वर्कर

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नोटबंदी के बाद असमंजस में हैं सेक्स वर्कर - currency ban impact on sex workers
नई दिल्ली। सरकार के हालिया बड़े मूल्य के नोट चलन से बाहर करने के फैसले से कुछ अन्य वर्गों के साथ ही सेक्स वर्कर्स की आजीविका भी बड़े पैमाने पर प्रभावित हुई है। यह वर्ग भारतीय समाज का वह निचला तबका है जिसे वास्तव में समाज का हिस्सा ही नहीं माना जाता।
केंद्र सरकार द्वारा 8 नवंबर की मध्यरात्रि से 500 और 1,000 रुपए के पुराने नोट बंद किए जाने के बाद दिल्ली के जीबी रोड रेडलाइट एरिया में ग्राहकों की आवक कम होने के साथ-साथ सेक्स वर्करों द्वारा की गई उनकी बचत अभी फिलहाल किसी काम की नहीं बची है।
 
यहां एक वेश्यालय में सेक्स वर्कर के तौर पर काम करने वाली रेशमा (बदला हुआ नाम) ने कहा कि लंबे समय से अपने ग्राहकों से बख्शीश में मिलने वाले रुपए को वे अलग से जमा करके रखती हैं। अभी उनकी बचत में करीब 5,000 रुपए के बड़े मूल्य के नोट भी हैं। अभी फिलहाल वे इस बचत का क्या करें, यह उनकी समझ से बाहर है और उनके पास कोई बैंक खाता भी नहीं है। 
 
सेक्स वर्करों के अधिकारों के लिए काम करने वाले गैरसरकारी संगठन ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स (एआईएनएसडब्ल्यू) की अध्यक्ष कुसुम ने कहा कि यह समस्या यहां काम करने वाली करीब 50 प्रतिशत सेक्स वर्करों की है। यहां अधिकतर के पास बैंक खाता नहीं है और इसलिए वे अपनी इस बचत के उपयोग को लेकर असमंजस में हैं। 
 
कुसुम ने कहा कि सेक्स वर्कर अपनी बचत के बारे में अपने वेश्यालय के मालिकों को भी नहीं बता सकते, क्योंकि इससे उन्हें भविष्य में अपनी आय कम होने का डर रहता है। वे अपने इन 500 और 1,000 रुपए के नोटों को चाय की दुकान चलाने वालों इत्यादि के माध्यम से खपा रही हैं। 
 
उन्होंने बताया कि अभी 15 दिन में वेश्यालय मालिकों से मिलने वाले अपने मेहनताने को या तो वे छोटे मूल्य के नोटों में ले रही हैं या उसे बाद में लेने के वादे पर छोड़ दे रही हैं लेकिन ग्राहकों से मिलने वाली बख्शीश का उपयोग जो वह रोजमर्रा के कामकाजों, दवाओं इत्यादि को खरीदने में करती थीं, उसमें उन्हें काफी दिक्कत आ रही है।
 
एक और सेक्स वर्कर शमीम (बदला हुआ नाम) ने बताया कि बैंक खाता नहीं होने की वजह से जहां उन्हें अपने नोटों को बदलने में दिक्कत हो रही है वहीं उनकी कुछ साथियों के खाते गांवों में हैं और अब अपनी बचत के नोटों का इस्तेमाल करने के लिए उन्हें उन्हीं खातों का उपयोग करना पड़ रहा है। 
 
उन्होंने बताया कि इसके अलावा एक और समस्या नए बैंक खाते नहीं खुलवा पाने की है, क्योंकि उन जैसी अधिकतर महिलाओं के पास 'ग्राहक को जानो' नियम (केवाईसी) की पूर्ति करने के लिए मान्य दस्तावेज ही नहीं हैं। इसी के साथ नोटबंदी से रेडलाइट एरिया में ग्राहकों की आवक कम होने से भी सेक्स वर्करों की आजीविका पर फर्क पड़ा है।
 
एआईएनएसडब्ल्यू की कुसुम ने बताया कि दिल्ली के रेडलाइट एरिया में आने वाले अधिकतर ग्राहक आस-पास के राज्यों मसलन हरियाणा, उत्तरप्रदेश के नजदीकी जिलों से आने वाले छोटे कामकाज करने वाले लोग हैं। अब नोटबंदी के बाद उनके स्वयं के रोजमर्रा के खर्च की दिक्कतें हैं तो वे यहां क्यों आएंगे? (भाषा)