नई दिल्ली। हफिंगटन पोस्ट की भारतीय वेबसाइट (जिसे हफपोस्ट का नाम दिया गया है) ने शुक्रवार को एक लेख प्रकाशित किया जिसमें एक समाचार का शीर्षक था- स्थानीय बच्चों को चुराने के शक में भीड़ ने पशुओं के तीन मुस्लिम कारोबारियों की हत्या कर दी।
इस समाचार में जानबूझकर चालाकी भरा संकेत दिया गया था कि मृतकों की धार्मिक और पेशेवर पहचान का इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना से कोई संबंध था जबकि वे रक्तपिपासु, उत्तेजित भीड़ का शिकार बन गए। इससे एक बात और साफ हो गई कि हाल ही में भारतीय मीडिया कथित तौर पर गौरक्षा पर सतर्कता से जुड़ी कथित कहानियों पर अधिक ध्यान दे रहा है। इस लेख में मृत पशुओं को लेकर गौरक्षा की घटनाओं का उल्लेख किया गया जैसे इन घटनाओं का लेख के मूल विषय से कोई लेना-देना नहीं था।
यह शीर्षक मुख्यधारा के मीडिया से जुड़े गुंडा तत्वों को भड़काने के लिए काफी था, हालांकि इसे नियमित रूप से झूठी बातों को फैलाने का आरोपी पाया गया और जो लगातार समाज में भय को बढ़ावा देता रहा है। सोशल मीडिया में इसकी प्रतिक्रिया इस प्रकार थी:
Mobs are hunting and killing Muslims across India and THERE IS NO JUSTICE FOR THE KILLERS! WAKE UP, GOI!
— Sagarika Ghose (@sagarikaghose) May 19, 2017
Child trafficking rumours, cattle smuggling accusations are excuses. Let’s face it, they were lynched for being Muslims. #NewIndia https://t.co/7ThlbqXcSH
— Aditya Menon (@AdityaMenon22) May 19, 2017
We are scared of ISIS but not the terrorists within us https://t.co/KpufIP4wWU
—Rana Ayyub (@RanaAyyub) May 19, 2017
अब जब कि प्रचारक अपना काम कर चुके हैं, तथ्यों पर गौर कीजिए। इन रपटों में गुरुवार सुबह को ऐसी ही दो घटनाओं की जानकारी दी। गुरुवार सुबह को हुई पहली घटना में बताया गया था कि तीन मुस्लिमों और उनका एक साथी शेख हलीम के शव को शुक्रवार को पाया गया था। इन लोगों के शव जमशेदपुर के पास राजनगर के आदिवासी बहुल इलाकों में पाए गए थे। विदित हो कि इससे पहले क्षेत्र में यह अफवाह भी उड़ी थी कि क्षेत्र में बच्चों को उठाने वाले गिरोह सक्रिय हैं।
एक ऐसी ही दूसरी घटना बैगपेडा के पास के समीपवर्ती क्षेत्रों से हुई थी। इस घटना के तहत गौतम वर्मा, उनके भाई विकास वर्मा और उनके मित्र गंगेश गुप्ता की इसी भीड़ ने मार-मारकर हत्या कर दी थी। ये लोग जब अपनी कार से जमशेदपुर से लौट रहे थे, जिन्हें बच्चे उठाने वाले गिरोह के तौर पर बताया गया। कहा जाता है कि कार में पांच लोग सवार थे जिनमें उनके बड़े भाई उत्तम वर्मा भी शामिल थे और उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया गया था। उनकी 80 वर्षीया दादी भी उनके साथ थीं जिन्हें यह सब अपनी नजरों से देखने की तकलीफ झेलना पड़ी थी।
जमशेदपुर अस्पताल में पत्रकारों की मौजूदगी में बताते हुए उत्तम ने दावा किया था कि वे इस इलाके में उन स्थानों को चिन्हित करने गए थे जहां पर स्वच्छ भारत अभियान के होर्डिंग लगाने थे और वे शौचालय का निर्माण कराने के काम से भी जुड़े हैं। उत्तम ने यह भी कहा कि जब भीड़ आक्रामक हो रही थी तब उस समय पुलिस भी मौजूद थी, लेकिन उसने हमला रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया। इन रपटों के आधार पर कहा जा सकता है कि वहां किसी प्रकार का कोई सांप्रदायिक झगड़ा नहीं था। इस हत्याकांड में पुलिस वालों ने भी किसी धार्मिक कोण को नहीं देखा।
इस तरह की लड़ाइयों में दोनों ही, हिंदू और मुस्लिम, मारे जाते हैं लेकिन हफपोस्ट ने हिंदुओं की मौत को अनदेखा करते हुए अपना पूरा फोकस मुस्लिमों पर ही केन्द्रित रखा। इस तथ्य को दूसरे दिन की सुबह को अपनी हैडलाइंस में बदलाव किया जिसमें कहा गया था: स्थानीय बच्चों के अपहरण के शक में झारखंड में भीड़ ने छह लोगों की हत्या कर दी।
इसके साथ एक स्पष्टीकरण भी छापा गया कि पहले बताई गई घटना में जिसमें तीन मुस्लिम पशु कारोबारियों की हत्या की खबर दी गई थी, उसकी नवीनतम जानकारी इस प्रकार है। लेकिन इससे पहले कि लेख को फिर से एडिट किया गया, जो नुकसान होना था, वह तो हो चुका था। यह बात पूरी तरह से फैल गई थी कि एक भाजपा शासित राज्य में गाय को लेकर मुस्लिमों पर हमला किया गया था।