तीन तलाक अध्यादेश पर दारुल उलूम नाराज, जल्द रणनीति तय करेगा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
लखनऊ। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने तीन तलाक को लेकर केन्द्र सरकार द्वारा अध्यादेश जारी किए जाने पर सख्त नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि वह बहुत जल्द इस मामले पर अपनी रणनीति तय करेगा। उधर, प्रमुख इस्लामी शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद ने इस अध्यादेश को मुसलमानों के मजहबी मामलों में दखलंदाजी करार देते हुए इसकी निंदा की है।
एआईएमपीएलबी के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने बताया कि बोर्ड को पहले से ही यह अंदेशा था कि सरकार तीन तलाक के मुद्दे पर अध्यादेश ला सकती है, मगर उस सूरत में इसके प्रभावी होने की मीयाद महज छह महीने होगी। सरकार ने विधेयक में तीन बदलाव जरूर किए हैं लेकिन वे भी संवैधानिक रूप से त्रुटिपूर्ण हैं। हमारे वकीलों की इस पर राय बन चुकी है और बोर्ड इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है।
उन्होंने कहा कि दूसरा रास्ता यह भी है कि जब यह विधेयक दोबारा राज्यसभा में आए तो बोर्ड एक बार फिर विपक्ष के सामने अपनी दलीलें पेश करके इसे पारित होने से रोके। बोर्ड जल्द ही अपनी बैठक में यह तय करेगा कि कौन सा रास्ता अख्तियार किया जाए।
मौलाना रहमानी ने कहा कि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार तीन तलाक के मुद्दे को लेकर मुसलमानों को बरगलाने और दूसरी कौमों में उनकी छवि खराब करने पर आमादा है। सरकार की एक नीति यह भी है कि वह अपनी कुछ हिमायती औरतों को खड़ा करके शरई कानूनों के खिलाफ एक आंदोलन तैयार करे।
सरकार चाहती है कि ऐसी औरतों की तादाद बढ़े और सरकार दम ठोंककर यह कह सके कि हम तो मुसलमानों के बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं। जबकि सचाई यह है कि सरकार तलाक के बाद मुस्लिम औरतों के लिए सभी दरवाजे बंद करना चाहती है।
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार दरअसल तीन तलाक विधेयक में शरई व्यवस्थाओं की अनदेखी करके और निर्णय प्रक्रिया में मुस्लिम पक्ष की राय शामिल ना करके मुस्लिम औरतों को बरगलाते हुए इसका राजनीतिक फायदा लेना चाहती है।
मौलाना रहमानी ने कहा कि कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद तीन तलाक के जो आंकड़े पेश कर रहे हैं, वे दरअसल झूठे हैं। सचाई यह है कि तीन तलाक की कोई लिस्टिंग ही नहीं होती।
इस बीच, दारुल उलूम देवबंद ने तीन तलाक पर केन्द्र सरकार द्वारा अध्यादेश जारी किए जाने पर चिंता जाहिर की है।
इदारे के मोहतमिम मौलाना अब्दुल कासिम नोमानी ने इस अध्यादेश को मुसलमानों के मजहबी मामलों में दखलंदाजी मानते हुए इसकी निंदा की है।
उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान का कानून हमें मजहबी आजादी देता है और तलाक तथा निकाह जैसे मसायल विशुद्ध मजहबी हैं। इनमें किसी भी हुकूमत की दखलंदाजी स्वीकार्य नहीं है। सरकार का यह कदम संविधान की आत्मा के खिलाफ है।
मालूम हो कि तीन तलाक से जुड़े विधेयक पर संसद में आम सहमति नहीं बनने के बाद केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस सिलसिले में एक अध्यादेश को मंजूरी दे दी। अब एक साथ तीन तलाक देने पर तीन साल की जेल का प्रावधान अमल में आ गया है। आगामी लोकसभा चुनाव और कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इस कदम को खासा अहम माना जा रहा है। (भाषा)