रविवार, 28 अप्रैल 2024
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अलका सिन्हा के उपन्यास 'जी-मेल एक्सप्रेस' का लोकार्पण

अलका सिन्हा के उपन्यास 'जी-मेल एक्सप्रेस' का लोकार्पण - Alka Sinha, G mail, express
‘जी-मेल एक्सप्रेस’ पुरुष वेश्यावृत्ति जैसे बेहद अछूते किन्तु जरूरी विषय को केंद्र में लाने की महत्त्वपूर्ण पहल है। अलका सिन्हा को इस उपन्यास के जरिए स्त्री विमर्श, बदलते पारिवारिक मूल्य और बदलते हुए समाज का स्पष्ट चित्रण करने में पर्याप्त सफलता मिली है और इसके लिए वह बधाई की पात्र हैं।
 
उक्त बातें राजधानी दिल्ली के रूसी विज्ञान एवं संस्कृति केंद्र में अलका सिन्हा के उपन्यास ‘जी-मेल एक्सप्रेस’ के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए गोवा की राज्यपाल एवं वरिष्ठ साहित्यकार मृदुला सिन्हा ने कही। उन्होंने कहा कि अलका ने इस उपन्यास में बहुत ही दृढ़ता के साथ एक ऐसे अछूते विषय को उठाया है जिस पर इससे पहले किसी और ने नहीं लिखा है। पुरुष वेश्यावृत्ति कोरी कल्पना नहीं है, यह वास्तविकता है। उसने लीक से हटकर नई बात की है और सबकी आंखें खोली हैं। 
 
इस अवसर पर मुख्य अतिथि एवं प्रसिद्ध कथाकार चित्रा मुद्गल ने कहा कि इस उपन्यास में 21 वीं सदी के आईने से धूल की परतें हटाई गई हैं और समाज को उसका असली चेहरा दिखाया गया है। भाषा का लावण्य अलका की खूबी है और उसने वृहत विषय को सतर्कतापूर्वक बांधा है। इस उपन्यास में पात्रों के भीतर से पात्र निकलकर पाठक के सामने आते हैं जो एक नएपन के साथ पाठकों से जुड़ते हैं। 
 
वहीं वरिष्ठ आलोचक प्रो. राजेन्द्र गौतम ने कहा कि यह उपन्यास जादुई यथार्थ से जुड़ा है जिसमें अलग तरह की फंतासी है। अलका सिन्हा ने समाज का बड़ा ही सटीक सीटी स्कैन किया है। उन्होंने कहा कि चित्रात्मकता इस उपन्यास का महत्त्वपूर्ण भाषिक वैशिष्ट्य है।
 
जेल सुधार विशेषज्ञ, मीडिया विशेषज्ञ और तिनका तिनका डासना की लेखिका वर्तिका नंदा ने उपन्यास में भाषा संबंधी प्रयोग और मीडिया की हड़बड़ी को इंगित करने वाले अंश को बेहद ख़ास माना। उन्होंने कहा कि बदलती हुई भाषिक संरचना के बीच हिंदी के बनते स्वरूप की दृष्टि से भी यह उपन्यास बेहद प्रगतिशील है। शब्द आधुनिक जिंदगी का परिचायक हैं और इस दृष्टि से उपन्यास का शीर्षक भी आधुनिक है। बेहद मुश्किल किन्तु सशक्त विषय पर लिखे गए ‘जी-मेल एक्सप्रेस’ को उन्होंने इस दौर का एक जरूरी उपन्यास माना। 
 
कार्यक्रम के प्रारम्भ में युवा आलोचक दिनेश कुमार ने कहा कि स्त्री-विमर्श के दौर में पुरुष को खलनायक के तौर पर प्रस्तुत किया जाता रहा है जबकि अलका सिन्हा ने प्रचलित स्त्री विमर्श से हटकर धारा के विरुद्ध लिखने का साहस किया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह उपन्यास ऐसे आवश्यक विषय से सम्बद्ध है जिस पर भारतीय समाज बात करने से भी कतराता है। 
 
कार्यक्रम की शुरुआत रूसी विज्ञान एवं संस्कृति केंद्र के चीफ कंसलटेंट (संस्कृति एवं सूचना) अर्सेनी स्टारकोव द्वारा स्वागत भाषण एवं परिचय साहित्य परिषद की अध्यक्ष उर्मिल सत्यभूषण और किताबघर प्रकाशन के प्रबंधक सत्यव्रत द्वारा अतिथियों को पुस्तकें और शाल भेंट कर हुई। कार्यक्रम का संचालन दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज के प्राध्यापक डॉ. विजय कुमार मिश्र और धन्यवाद ज्ञापन कवि अनिल वर्मा ‘मीत’ ने किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान से हुआ।