10 साल बाद बच्चों ने निभाया पिता से किया वादा, छात्रों की पढ़ाई के काम आएगा मृत शरीर
मेरठ। नेत्रदान की परंपरा से आगे बढ़कर अब लोग अपने देह दान के लिए वसीयत कर रहे हैं। गुरुवार को बड़ौत के रहने वाले जगमाल सिंह का निधन हो गया। उनकी वसीयत के मुताबिक उनके शरीर का अंतिम संस्कार न करके, उनकी बॉडी मेडिकल कॉलेज के छात्रों की पढ़ाई में काम आए।
परिवार ने जगमाल जी की अंतिम इच्छा को सर्वोपरि रखते हुए उनकी मृत देह को शरीर रचना विभाग लाला लाजपतराय स्मारक मेडिकल कॉलेज मेरठ को दान कर दिया। बागपत जिले की तहसील बड़ौत के रहने वाले जगमाल सिंह ने आज से दस साल पहले यानी 2012 में अपनी वसीयत करते हुए अपनी देह मेडिकल कॉलेज मेरठ के नाम कर दी। उनके परिवार में उनके दो बेटे और तीन बेटी हैं।
जगमाल सिंह ने अपने बच्चों से वचन लिया था कि उनके शरीर का अंतिम संस्कार न किया जाए। बेटे-बेटियों ने अपने पिता के देहदान के संकल्प को मानते हुए मेडिकल कॉलेज के शरीर रचना विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. प्रीति सिन्हा को शव सुपुर्द कर दिया। परिवार भी देहदान के इस फैसले को सही मानते हुए कह रहा है कि मानवता की सेवा के लिए देहदान जरूरी है।
डॉ. प्रीति सिन्हा ने कहा कि जगमाल सिंह और उनके परिवार के इस सराहनीय कार्य की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। मेडिकल का शरीर रचना विभाग सदैव उनका आभारी रहेगा। मृतक जगमाल सिंह डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम के अनुयायी रहे हैं जिसके चलते उन्होंने देहदान का संकल्प लिया था।
ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. सुमित उपाध्याय ने कहा कि गुरुजी के द्वारा मानवता के कई कल्याणकारी कार्य किए जा रहे हैं, जिसमें से देहदान भी एक है। गुरमीत राम रहीम सिंह जी इंसा के वचनों पर चलते हुए आज तक कुल 1850 देहदान देश के विभिन्न मेडिकल कॉलेज में किए जा चुके हैं।
मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. आरसी गुप्ता ने कहा कि जगमाल सिंह के परिवारजनों का आभार व्यक्त किया और कहा कि देहदान महादान होता है। मैं स्वयं नेत्र रोग विशेषज्ञ हूं। मैं आमजन से अपील करता हूं कि अधिक से अधिक संख्या में नेत्र दान एवं देह दान करें।
जितनी संख्या में भारत में मृत्यु होती है यदि उनका शत-प्रतिशत नेत्र दान कर दिया जाए तो कार्निया संबंधित अंधता 15 दिनों में पूरे देश से समाप्त हो सकती है इसलिए मैं सभी कौम के लोगों को नेत्र तथा देह दान करने की अपील करता हूं। दुनिया के सभी धर्मों में दान को सर्वोपरि माना गया है। नेत्र दान तथा देह दान की बराबरी दुनिया के किसी धन-दौलत से नहीं की जा सकती है।