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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 19 जनवरी 2024 (12:46 IST)

भारत के 10 प्रमुख राम मंदिर, जानें सबसे पुराना कौन सा?

भारत के 10 प्रमुख राम मंदिर, जानें सबसे पुराना कौन सा? - Ancient Ram Temple
Top 10 Ram Temples: मध्यकाल में आक्रांताओं ने प्रभु श्रीराम और हनुमानजी से जुड़े मंदिर और स्मारकों को ढूंढ-ढूंढकर उनका अस्तित्व मिटाया। आज हमें देशभर में राम और हनुमानजी से जुड़े महत्वपूर्ण स्थान और स्थलों को ढूंढना पड़ता है। अयोध्या के राम मंदिर को छोड़कर हमने ढूंढे हैं ऐसे ही कुछ प्रमुख राम मंदिर और राम से जुड़े स्थल...
 
1. रघुनाथ मंदिर : भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर के जम्मू शहर में स्थित यह राम मंदिर आकर्षक वास्तुकला का नमूना है। इस मंदिर को 1835 में महाराजा गुलाब सिंह ने बनवाना शुरू किया था और इसका पूर्ण निर्माण महाराजा रणजीतसिंह के काल में हुआ। इस मंदिर में 7 ऐतिहासिक धार्मिक स्‍थल मौजूद है। मंदिर के भीतर की दीवारों पर तीन तरफ से सोने की परत चढ़ी हुई है। इसके अलावा मंदिर के चारों ओर कई मंदिर स्थित है जिनका सम्बन्ध रामायण काल के देवी-देवताओं से हैं।
 
2. त्रिप्रायर श्रीरामा मंदिर : यह मंदिर भारतीय राज्य केरल के दक्षिण-पश्चिमी शहर त्रिप्प्रयार (त्रिप्रायर) में स्थित में नदी के किनारे स्थित है। कोडुन्गल्लुर शहर से लगभग 15 किलोमीटर और त्रिशूर से 25 किलोमीटर दूर है। माना जाता है कि इस मंदिर में स्थापित मूर्ति यहां के स्थानीय मुखिया को समुद्र तट पर मिली थी। इस मूर्ति में भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव के तत्व हैं अत: इसकी पूजा त्रिमूर्ति के रूप में की जाती है। मंदिर के परिसर में एक गर्भगृह और एक नमस्कार मंडपम है, जहां रामायण काल के चित्र हैं और नवग्रहों को दर्शाती हुई लकड़ी की नक्काशी और प्राचीन भित्तिचित्र हैं। त्रिप्रायर श्रीराम मंदिर में पारंपरिक कलाओं जैसे कोट्टू (नाटक) का नियमित प्रदर्शन किया जाता है। यह मंदिर अरट्टूपुझा पूरम उत्सव के लिए प्रसिद्ध है। 
 
3. श्रीसीतारामचंद्र स्वामी मंदिर (भद्राचलम) : भगवान राम का यह मंदिर आंध्रप्रदेश के खम्मण जिले के भद्राचलम शहर में स्थित है। कथाओं के अनुसार भगवान राम जब लंका से सीता को बचाने के लिए गए थे, तब गोदावरी नदी को पार कर इस स्थान पर रुके थे। मंदिर गोदावरी नदी के किनारे ठीक उसी जगह पर बनाया गया है, जहां से राम ने नदी को पार किया था। मध्यकाल में रामभक्त कंचली गोपन्ना नामक एक तहसीलदार ने यहां स्थित बांस से बने प्राचीन मंदिर के स्थान पर पत्थरों का भव्य मंदिर बनवाया। मंदिर बनवाने के कारण उनको सभी रामदास कहने लगे। कबीर रामदास के आध्यात्मिक गुरु थे और उन्होंने रामदास को 'रामानंदी संप्रदाय' की दीक्षा दी थी। हैदराबाद या विजयवाड़ा से यहां के लिए नियमित बसें चलती हैं।
 
4. श्रीतिरुनारायण स्वामी मंदिर, मेलकोट, कर्नाटक : मेलकोट या मेलुकोट कर्नाटक के मांड्या जिला तहसील पांडवपुरा का एक छोटा-सा कस्बा है, जो कावेरी नदी के तट पर बसा है। इस स्थान को तिरुनारायणपुरम भी कहते हैं। यह एक छोटी-सी पहाड़ी है जिसे यदुगिरि कहते हैं। यदुगिरि पहाड़ी पर दो मंदिर स्थित है। एक मंदिर भगवान नृसिंह का जो पहाड़ी के रास्ते में पहले पड़ता है और दूसरा चेलुवा नारायण का मंदिर जो पहाड़ी के सबसे उपर स्थित है। यह स्थान मैसूर से 51 किलोमीटर और बेंगलुरु से 133 किलोमीटर किलोमीटर दूर है।
 
5. हरिहरनाथ मंदिर (सोनपुर) : भगवान विष्णु को समर्पित हरिहरनाथ मंदिर का निर्माण भगवान राम ने त्रेतायुग में करवाया था। माना जाता है कि श्रीराम ने यह मंदिर तब बनवाया था, जब वे सीता स्वयंवर में जा रहे थे। सारण और वैशाली जिले की सीमा पर गंगा और गंडक नदी के संगम पर स्थित इस मंदिर का निर्माण राजा मानसिंह ने करवाया। वर्तमान में जो मंदिर है, उसका जीर्णोद्धार तत्कालीन राजा राम नारायण ने करवाया था।
 
6. थिरुवंगड श्रीरामस्वामी मंदिर, जिला कन्नूर, थालास्सेरी (केरल) : केरल के कण्णूर जिले में स्थित थालास्‍सेरी में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया एक प्रसिद्ध किला है। यहां से कुछ दूर ही प्रसिद्ध राम मंदिर है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 2,000 वर्ष पूर्व हुआ था। इससे पहले इस स्थान पर भगवान परशुराम ने एक विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया था। इस स्थान का संबंध अगस्त्य मुनि से भी है। थालास्‍सेरी के सबसे नजदीक स्थित हवाई अड्डा कालीकट इंटरनेशनल एयरपोर्ट 93 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कन्नूर केरल के उत्तरी सिरे में स्थित एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत तटवर्ती नगर है।
 
7. रामभद्रस्वामी मंदिर, तिरुविल्वमल जिला त्रिसूर (केरल) : यहां स्थित रामभद्रस्वामी का मंदिर विश्वप्रसिद्ध है। दूर-दूर से लोग इस मंदिर की भव्यता देखने आते हैं। त्रिसूर से 85‍ किलोमीटर दूर कोच्चि का एयरपोर्ट है। हालांकि त्रिसूर नगर में रेलवे स्टेशन है, जो देश के सभी बड़े स्टेशनों से कनेक्टेड है। त्रिसूर के 47 किलोमीटर दूर स्थित थिरुविल्वमाला (Thiruvilwamala) है।
8. चित्रकूट का राम मंदिर : श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। प्रयाग को वर्तमान में इलाहाबाद कहा जाता है। यहां गंगा-जमुना का संगम स्थल है। हिन्दुओं का यह सबसे बड़ा तीर्थस्थान है। प्रभु श्रीराम ने संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट। यहां स्थित स्मारकों में शामिल हैं- वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम, भरतकूप इत्यादि। चित्रकूट में राम अनुसूया के आश्रम में कई महीनों तक रहे थे। चित्रकूट में ऐसे कई स्थल हैं, जो राम, लक्ष्मण और सीता के जीवन से जुड़े हुए हैं। यह पवित्र स्थल हिन्दुओं के लिए अयोध्या से कम नहीं है। यहां पर रामघाट, जानकी कुंड, हनुमानधारा, गुप्त गोदावरी आदि ऐसे कई स्थल हैं।
 
9. मध्यप्रदेश का रामवन : अत्रि-आश्रम से भगवान श्रीराम मध्यप्रदेश के सतना पहुंचे, जहां 'रामवन' है। मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ क्षेत्रों में नर्मदा और महानदी नदियों के किनारे वर्षों तक उन्होंने कई ऋषि आश्रमों का भ्रमण किया। दंडकारण्य क्षेत्र तथा सतना के आगे वे विराध सरभंग एवं सुतीक्ष्ण मुनि आश्रमों में गए। बाद में सुतीक्ष्ण आश्रम वापस आए। अमरकंटक, शहडोल, पन्ना, रायपुर, बस्तर और जगदलपुर में कई स्मारक विद्यमान हैं। उदाहरणत: मांडव्य आश्रम, श्रृंगी आश्रम, राम-लक्ष्मण मंदिर आदि। दो गुफाओं के नाम 'लक्ष्मण बोंगरा' और 'सीता बोंगरा' हैं।
 
10. पंचवटी में राम : दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम कई नदियों, तालाबों, पर्वतों और वनों को पार करने के पश्चात नासिक में अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। मुनि का आश्रम नासिक के पंचवटी क्षेत्र में था। त्रेतायुग में लक्ष्मण व सीता सहित श्रीरामजी ने वनवास का कुछ समय यहां बिताया। पंचवटी या नासिक से गोदावरी का उद्गम स्थान त्र्यंम्बकेश्वर लगभग 20 मील (लगभग 32 किमी) दूर है। वर्तमान में पंचवटी भारत के महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के किनारे स्थित विख्यात धार्मिक तीर्थस्थान है।
 
भारत का सबसे पुराना मंदिर : भारत का सबसे प्राचीन मंदिर तो अयोध्या में राम मंदिर था जिसे बाबर ने तोड़ दिया था। वर्तमान में भगवान राम का प्राचीन मंदिर रामचौरा मंदिर हाजीपुर में बताया जाता है। रामचौरा मंदिर भारत के बिहार राज्य में हाजीपुर के पास रामभद्र में स्थित भगवान राम को समर्पित एक प्रमुख राम मंदिर है। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार यह मंदिर रामायण काल से ही अस्तित्व में है।
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